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					समकालीन कहानियों में इस माह प्रस्तुत है यू.एस.ए. से  
					डॉ. 
                    राम गुप्ता  की कहानी- 
                    
                    'शौर्यगाथा'
 
					 झाँसी से क़रीब १५०
किलोमीटर और कानपुर से लगभग 
इतनी ही दूर है महोबा। इस कस्बानुमा शहर को देख कर सोच भी नहीं सकते कि यह अपने 
अतीत में इतिहास की विशाल धरोहर समेटे है। एक समय था जब महोबा की संपन्नता और 
समृद्धि दिल्ली से होड़ लेती थी। या यह कहिए कि दिल्ली इसकी वैभवता के सामने टिक 
सकती थी। ये है उस देस और राज का परिचय-
"उस विश्रुत जुझौती में- वेत्रवती-तीर पर, नीर धन्य जिसका,
गंगा-सी पुनीत जो, सहेली यमुना की है, किंतु रखती है छटा दोनों से निराली जो।जिसमें प्रवाह है, प्रपात हैं और हृद हैं, काट के पहाड़ मार्ग जिसने बनाए हैं,
देवगढ़-तुल्य तीर्थ जिसके किनारे हैं। देव श्री मदनवर्मा सदन सुकर्मों के राजा हैं,
राजधानी है महोबे में। वही मदनवर्मन जिसको सवाई जयसिंह सिद्धराज "देखता था विस्मय से श्रद्धा से भोगी है 
मदनवर्मा किंवा एक योगी है।" शक्तिशाली चंदेल राज की डोर मदनवर्मन से यशोवर्मन 
द्वितीय और उससे दो वर्ष के स्वल्प काल के बाद परमादिदेव (परमालदेव) के हाथों में 
आई।
					
					आगे...
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                      भूपेंद्र सिंह कटारिया का व्यंग्य- हमारे नेता 
					जी
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                    डॉ. सी.पी.त्रिवेदी की कलम सेसांस्कृतिक विरासत का अंग अशोक स्तंभ
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                            गोपीचंद श्रीनागर का आलेखडाकटिकटों में राष्ट्र चिह्न
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      राजेश्वर प्रसाद नारायण से जानें वंदे मातरम् की कहानी
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