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१. १०. २०१९

इस माह-

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अनुभूति में-

दीपावली की जगमग में नहाई विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की अनेक रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- दीपावली के विशेष अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- मिठाइयों और नमकीनों की एक अद्भुत संग्रह

स्वास्थ्य में- २० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- १८ सैर सपाटे में आनंद लें

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-  कुछ उपयोगी सुझाव- १०

कलम गही नहिं हाथ में- अभिव्यक्ति के उन्नीसवें जन्मदिन का अवसर और नवांकुर पुरस्कारों की घोषणा

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (अक्तूबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- आचार्य संजीव वर्मा सलिल की कलम से अशोक अज्ञानी के नवगीत संग्रह- अपने शब्द गढ़ो का परिचय। 

वर्ग पहेली- ३१८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति के अंतर्गत- दीपावली विशेषांक में

समकालीन कहानियों में इस माह प्रस्तुत है- भारत से चंद्रभान तिवारी की कहानी- सदमा खुली खिड़की का

शहर की गली के आमने सामने दो घरों के बीच मुश्किल से चार पाँच गज का फासला होगा। पहली मंज़िल की दो खिड़कियाँ भी आमने सामने ही खुलतीं थीं। एक खिड़की में से सामने दीवार से लटका बड़ा सा शीशा दिखाई देता था। इस कमरे में बाक़ी चीज़ें भी बहुत कम थीं। एक चारपाई, दो कुरसियाँ, एक पुराना सा टेबल, एक आले में दो चार किताबें, कंघी, तेल और दीवार पर दो चार तस्वीरें, टोकरी में दो चार कपड़े। एक छोटा सा कमरा था। इसमें सिवाय एक लड़की और एक वृद्ध महिला के कोई मूरत कम ही दिखाई देती थी। वह खिड़की के पास बैठी रहती कभी किताब पढ़ती कभी सिर झुकाये बैठी रहती और कभी शीशे के सामने स्वयं को निहारती रहती। बहुत देर तक बालों में कंघी किया करती। आईना भी उसके चहरे को निहारता रहता। उसका चेहरा किसी देवी की मूर्ति से कम न था।वह दिन में कई बार कंघी किया करती थी। उसके बाल लंबे भी बहुत थे। अगर किसी ने रोशनी में देखे होते तो उनकी चमक का अंदाज़ा हो जाता लेकिन इस में कोई संदेह नहीं कि उसे अपने बालों पर बड़ा नाज़ था। आगे-
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के.पी.सक्सेना का व्यंग्य
दगे पटाखों की महक
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मृदुला सिन्हा का साहित्यक निबंध-
कार्तिक हे सखि पुण्य महीना
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प्रमिला कटरपंच से
पर्व-परिचय- लोक-पर्व साँझी
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चंद्र शेखर का आलेख
सत्य का दीया तप का तेल

पुराने अंकों-से---

पर्यटन में
जैसलमेर के विषय में विशेष लेख
सोने के शहर में रेत के सपने

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हास्य व्यंग्य में
काका हाथरसी का व्यंग्य
प्यार किया तो मरना क्या

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घर परिवार में
नन्हें बच्चों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
जब बिस्तर खिलौनों से भर जाए  
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साहित्य संगम में
गुलाबदास ब्रोकर की गुजराती कहानी- आखिरी झूठ
रूपांतरकार हैं प्रमिला राजे

कितनी सुंदर है वह बात करने का मौका मिल जाए तो मज़ा आ जाए। नरेश घिया ने अपने आप से कहा। और बात करने के इरादे से उसने अपनी ओर बढ़ती हुई लड़की की तरफ मुसकरा कर देखा। उसके चेहरे पर भी मुस्कुराहट थी। वह कह रही थी "मैं आपके पास आ ही रही थी।" "सचमुच मुझे बहुत खुशी हुई मिस "नंदिता मेहता।" उसने वाक्य पूरा किया। ''कल की गोष्ठी में मुझे आप का व्याख्यान बहुत पसंद आया,'' फिर अचानक वह आत्मविभोर हो कर बोली --''मुझे इतना पसंद आया कि मैंने सोचा अगर मैं खुद आकर आपका अभिनंदन नहीं करती हूँ, तो अपनी नज़रों में ही गिर जाऊँगी।''
नरेश ज़रा झुककर बोला,''थैंक्यू थैंक्यू थैंक्यू, मिस।''
''नंदिता, नंदिता मेहता नहीं मिस्टर घिया।''
''पर आपने गलती की न, मिस नंदिता।''
''मैंने गलती की? कौन-सी?
''मेरा नाम मिस्टर घिया नहीं, नरेश है।''
''ओह, सॉरी, हाँ मैं अपनी खुशी ही आपके सामने व्यक्त करना चाहती थी।'' ... आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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