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१. ११. २०१७

इस माह-

1
अनुभूति में- शुभम श्रीवास्तव ओम, मयंक अवस्थी, सुशील कुमार, त्रिलोचना कौर और  मुक्तिबोध की रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह आने वाले सर्दी के मौसम के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं-लोबिया के कवाब

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २४ उपाय- १४- नशे से दूर रहें

बागबानी- के अंतर्गत घर की सुख स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये शुभ पौधों की शृंखला में इस पखवारे प्रस्तुत है- १४- जेड पौधा

भारत के सर्वश्रेष्ठ गाँव- जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं- ४- असोला-फतेहपुर बेरी - जहाँ हर लड़का पहलवान है।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (नवंबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया?...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- जगदीश पंकज की कलम से वेदप्रकाश शर्मा वेद के नवगीत संग्रह- ''अक्षर की आँखों से'' का परिचय।

वर्ग पहेली- २९५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यू.एस.ए. से
देवी नाँगरानी की कहानी-
परछाइयों के जंगल

माँ को बड़ी मुश्किल से सहारा देकर बस में चढ़ाया और फिर मैं चढ़ी। बस धक्के के साथ आगे बढ़ी तो माँ गिरते-गिरते बची। मैं भी उसे न सँभाल पाई। एक दयावान वृद्ध ने अपने स्थान से उठकर उसे बैठने के लिए कहा और माँ एक आज्ञाकारी बालक की तरह सीट पर बैठ गई। मैंने टिकट लिया और उसके साथ सटकर खड़ी हो गई। ‘टैंकबंड’ बस स्टॉप पर उतरना था। कंडक्टर ने दो बार जोर से पुकारा 'टैंकबंड, टैंकबंड' पर मैं अतीत की खलाओं में खोई रही, जब इसी तरह सहारा देकर माँ ने मुझे पहले चढ़ाया था और बाद में वह खुद चढ़ी थी। बस चलने लगी थी, पर फिर पाया कि कुछ छूट गया था, कुछ नहीं बहुत कुछ छूट गया था। पिताजी जो साथ आए थे, पीछे रह गए थे। हड़बड़ी में वे चढ़ ही नहीं पाये या...! माँ का चेहरा ज़र्द, आँखें फटी फटी, गुमसुम आलम में वह बड़बड़ाते हुए अचानक चिल्लाने लगी- 'अरे बस रोको, बस रोको, मुनिया के पिता पीछे रह गए हैं। अरे भाई रोको मुझे उतरने दो, वे पीछे रह गए हैं।' आवाज शोर में लुप्त सी हो गई और बस हवाओं से बातें करती टैंकबंड बस स्टॉप पर...आगे-
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विश्वंभर विज्ञ की
लघुकथा- बचाओ
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रचना प्रसंग में कुमार रवीन्द्र का आलेख-
आँगन आँगन बिखरे गीत
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आज सिरहाने पंकज सुबीर
का कहानी संग्रह- चौपड़े की चुड़ैलें
*

विज्ञानवार्ता में डॉ गुरुदयाल प्रदीप से जानें-
सूँघने में छुपे रहस्य और नोबेल पुरस्कार

पिछले माह-

रघुविन्द्र यादव की लघुकथा
उपकार का बदला
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रवीन्द्र उपाध्याय का आलेख-
द्यूत-क्रीडा इतिहास के पन्नों से

*

महेन्द्र भानावत से संस्कृति में
गोवर्धन-पूजा, गोबर और गो संस्कृति
*

चिरंतन से पर्व परिचय में जानें
दीपोत्सव के प्रारंभ का इतिहास

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
जयनंदन-की-कहानी- छठ तलैया

सुगनी जो रोब हुई वियोग से
आदित होऊ न सहाय
सुगवा जो मारबो धनुख से
सुगा गिरे मुरुझाय

दशहरा के बाद कातिक हेलते ही हुलसी मम्मा (दादी) के भीतर अपने आप छठी-मैया के गीत बजने और उसी तर्ज पर होंठ फड़फड़ करने लगे हैं। बार-बार उसका ध्यान उसी पर जाकर टिकने लगा है। कैसे निभेगा ई बच्छर (इस वर्ष) मैया का बरत उसकी जर्जर बूढ़ी देह से और कैसे वह इस पराधीन शहर में भिड़ा पायेगी कोई जुगत? गाँव में रहती तो कोई न कोई रास्ता वह निकाल ही लेती। जबसे उसने अपनी सास द्वारा हस्तांतरित कई पुश्तों से चले आ रहे इस व्रत को घर की अन्य जिम्मेदारियों के साथ ग्रहण किया है तब से आज तक एक बार भी नागा नहीं किया। हालाँकि पिछले साल उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया था, फिर भी उसने जोखिम उठाकर किसी तरह पूरा कर लिया। मगर इस बीच उसकी असमर्थता ने उसे बड़ी तेजी से बहुत बुरा दबोचा है।...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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