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 १५. १०. २०१६

इस पखवारे-

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अनुभूति-में
- दीपावली की जगमग से सुशोभित विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की  ढेर-सी मनभावन रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि लाई हैं दीपावली के अवसर पर विशेष रूप से अभिव्यक्ति के पाठकों के लिये- बादाम की खीर

फेंगशुई में- २४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं- २०- फेंगशुई मोमबत्तियाँ

बागबानी- के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव- २०- लक्ष्मी का वरदान मनीप्लांट

सुंदर घर- शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- २०- फीरोजी का स्वप्निल संसार

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१५ अक्तूबर को) शंकर (शंकर जयकिशन), अब्दुल कलाम आजाद, डॉ. नटेशन रमणी, डॉ. रमन, मीरा नायर... विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- जगदीश पंकज तथा वेद प्रकाश शर्मा की कलम से मयंक श्रीवास्तव के नवगीत संग्रह- ठहरा हुआ समय का परिचय।

वर्ग पहेली- २७८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
प्रवीणा जोशी की कहानी उमंग की रोशनी

‘अनु, अब उठ जाओ, आठ बज गए हैं।’
माँ की आवाज कानों में पड़ी तो अनुप्रिया तुरंत उठ बैठी। उसे याद आया आज तो उसकी ड्यूटी रामलीला मैदान में लगी है और उसे दस बजे हर हाल में पहुँचना होगा, क्‍योंकि आज धनतेरस है। खरीददारी के लिए लोगों की भीड़ इस दिन से लेकर दीपावली तक जमकर रहेगी। ऐसे में हम पुलिसवालों को अपनी तरफ से बिना किसी दिन छु‍ट्टी किए अलग अलग जगह बारह बारह घंटे ड्यूटी के लिए तैयार रहना होगा। क्‍या पुरुष और क्‍या महिला कांस्‍टेबल, सभी की खाट खड़ी रहेगी। जैसे त्‍योहार के दिन हमारे लिए बने ही न हों। हर समय खड़े रहो आम जनता की चौकसी में। लोग, लोग और लोग, हर जगह लोग। उस समय जनसंख्‍या वृद्धि करने वालों कोसने का मन करता है। यह सब उधेड़बुन में लगी अनु उठकर फ्रेश हुई और अपनी ताजी-धुली प्रेस की हुई कांस्‍टेबल की वर्दी को अजीब सी नजरों से घूरते हुए पहनने लगी। सोच रही थी कि पहनूँ तो मुसीबत और न पहनूँ तो मुसीबत।... आगे-
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राजेन्द्र वर्मा का व्यंग्य
लक्ष्मी से अनबन
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सुशील उपाध्याय का संस्मरण
गाँव में रामलीला
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मीरा ठाकुर के साथ देखें
दीपावाली इतिहास के झरोखे से
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पुनर्पाठ में अभिव्यक्ति के पन्नों से
दीपावली से संबधित ढेर-सी रोचक व उपयोगी सामग्री

पिछले पखवारे-

डॉ. सरोजिनी प्रीतम का व्यंग्य
फिर से सुर्खियों में
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सतीश जायसवाल की नगरनामा
इलाहाबाद अब उदास करता है
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चीन से गुणशेखर की पाती
स्त्रीशक्ति भारत और चीन
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पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी सड़क की तेज गली में'' का दूसरा भाग

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुधा अरोड़ा की कहानी उधड़ा हुआ स्वेटर

यों तो उस पार्क को लवर्स पार्क कहा जाता था पर उसमें टहलने वाले ज्यादातर लोगों की गिनती वरिष्ठ नागरिकों में की जा सकती थी। युवाओं में अलस्सुबह उठने, जूते के तस्मे बाँधने और दौड़ लगाने का न धीरज था, न जरूरत। वे शाम के वक्त इस अभिजात इलाके के पंचसितारा जिम में पाए जाते थे- ट्रेडमिल पर हाँफ-हाँफ कर पसीना बहाते हुए और बाद में बेशकीमती तौलियों से रगड़-रगड़ कर चेहरे को चमकाते और खूबसूरत लंबे गिलासों में गाजर-चुकन्दर का महँगा जूस पीते हुए। लवर्स पार्क इनके दादा-दादियों से आबाद रहता था। सुबह-सबेरे जब सूरज अपनी ललाई छोड़कर गुलाबी चमक ले रहा होता, छरहरी-सी दिखती एक अधेड़ औरत अपनी बिल्डिंग के गेट से इस पार्क में दाखिल होती, चार-पाँच चक्कर लगाती और बैठ जाती। अकेली। बेंच पर। वह बेंच जैसे खास उसके लिए रिज़र्व थी। तीन ओर छोटे पेड़ों का झुरमुट और सामने बच्चों का स्लाइड और झूला, जिसके इर्द-गिर्द जापानी मिट्टी के रंगबिरंगे सैंड पिट खाँचे... आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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