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३०. ६. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
प्रदीप कांत, अनिरुद्ध सेंगर, नरेश अग्रवाल, आराधना द्विवेदी और पंकज कोहली की  रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- भुट्टों के मौसम में मक्के के स्वादिष्ट व्यंजनों के क्रम में- उबले भुट्टे

गपशप के अंतर्गत- हवाई जहाज की यात्राएँ आजकल आम हैं, उड़ान में कानदर्द की समस्या विशेष रूप से बच्चों को सताती है, पर क्यों? जाने विस्तार से...

जीवन शैली में- शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं। १४ प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं

सप्ताह का विचार में- देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। -प्रेमचंद

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं कि आज के दिन (३०  जून को) १९२८ में कल्याण जी, १९३४ में वैज्ञानिक चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव, १८२३ में  दिनशॉ पेटिट...

लोकप्रिय उपन्यास (धारावाहिक) - के अंतर्गत प्रस्तुत है २००५ में प्रकाशित सुषम बेदी के उपन्यास— 'लौटना' पहला भाग

वर्ग पहेली-१९१
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
प्रतिभा की-कहानी-- अपराध बोध

मैं हवाई जहाज से उतरते ही एक अजीब चिपचिपाहट में घिर गया था। बस बंबई की सबसे खराब चीज़ मुझे यही लगती है। एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही सामने कंपनी की गाड़ी थी। मैं फटाफट उसमें बैठ गया और वह दुम दबाकर भाग खड़ी हुई। बंबई में कुछ नहीं बदला था फिर भी बहुत कुछ बदल गया था। कार कालिमा में लिपटी सड़क को रौंदती हुई, बंबई के लोगों को पीछे धकेलती हुई भागे जा रही थी। बीच, इमारतें, पेड़, लोग सब पीछे छूटते जा रहे थे। दोपहर के दो बजे थे। बीच सुस्ता रहा था। सूरज और समुद्र में द्वंद्व युद्ध चल रहा था। लहरें आ-आकर बार-बार झुलसी रेत को लेप कर रही थीं, उसके ज़ख्मों को सहला रही थीं। बंबई की रफ्रतार शाम और रात की बजाय इस समय कुछ कम थी या शायद चिपचिपाहट की नदी ने सबकी रफ्तार को कुछ कम कर दिया था। कितनी अजीब बात है, मेरे लिए बंबई नया नहीं है, मैं हर महीने यहाँ आता हूँ, लेकिन आज बंबई बिल्कुल नया शहर लग रहा है जैसे मैं पहली बार यहाँ आया हूँ... आगे-
*

सुभाषचंद्र लखेड़ा की
लघुकथा- साँप
*

शिवचरण चौहान की कलम से
लाल डब्बे की आत्मकथा
*

वैद्य अनुराग विजयवर्गीय का आलेख
दूब तेरी महिमा न्यारी
*

पुनर्पाठ में- शैल अग्रवाल
की कलम से- सुर सावन

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पिछले सप्ताह-  

सुशील यादव का व्यंग्य
तेरे डॉगी को मुझ पे भौकने का नईं
*

अमिताभ सहाय से जानें
सिक्कों और नोटों की कहानी
*

डॉ. दया ललित श्रीवास्तव का आलेख
अग्नि- सभ्यता के विकास की महत्वपूर्ण कड़ी
*

पुनर्पाठ में- महावीर प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध- महाकवि माघ का प्रभात वर्णन

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
राहुल यादव की-कहानी-- बिल्ला और शेरा

कहानी का शीर्षक पढ़ कर आपको ऐसा लग रहा होगा कि हो न हो ये सत्तर के दशक की किसी फिल्म के खलनायक हैं, लेकिन बिल्ला और शेरा किसी हिंदी फिल्म के खूँखार खलनायक नहीं बल्कि मेरे बचपन के वे दो मित्र हैं जिनके बिना मेरे बचपन की कहानी अधूरी है। गाँव में हमारे घर के पिछवाड़े में एक छोटा सा तालाब था। छोटा तालाब तो क्या उसे बड़ा गड्ढा ही समझ लीजिए। उसके पास में ही कनेर के फूल के साथ साथ ढेर सारे सरकंडे की झाड़ियाँ भी थीं। सरकंडा खोखले तने वाली एक झाड़ी थी जिसकी तलवार बना के मैंने और रमेश ने न जाने खेल खेल में कितने संग्राम लड़े हैं। ठंडी के दिनों में एक दिन शाम को यूँ ही हमारा युद्धाभ्यास का खेल जोर शोर से जारी था कि हमने तालाब के किनारे झाडियों में दो पिल्लों को देखा। दोनों कीचड में सने हुए थे और उन्हें देख कर लगता था कि पैदा हुए मुश्किल से बस एक या दो दिन हुए होंगे। बचपन में मुझे कुत्तों से बहुत डर लगता था इसलिए मैंने रमेश को मना किया कि उन्हें मत छू, हो सकता है कि... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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