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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
सुभाषचंद्र लखेड़ा की लघुकथा- साँप


वर्षों बाद आज इस मंदिर के पास से गुजरते हुए कनेर के पीले फूल देख मुझे स्वस्तिका याद आ गई। दरअसल, हमारा घर इस मंदिर वाली गली में है और मैंने अपने जीवन के प्रथम इक्कीस वर्ष इसी गली में गुजारे हैं । बाद में एक फ़ेलोशिप मिलने के कारण मैं अमेरिका चला आया और आज लगभग आठ वर्ष बाद मुझे अपने इस कसबे में आने का मौका मिला।

खैर, स्वस्तिका की याद आना स्वाभाविक था। आखिर, मुझसे आयु में यही कोई लगभग दो वर्ष छोटी स्वस्तिका के साथ मैंने अपने बचपन के सुनहरे दिन बिताये थे। यूँ उससे मिलने की इच्छा तो निरंतर बनी रही किन्तु इस कसबे में उस ज़माने में किशोर युवक - युवतियों का मेलजोल संशय की निगाह से देखा जाता था।

अक्सर मैं जब कभी मंदिर आता था, स्वस्तिका को देखने का मन करता था। लेकिन एक दिन मेरी इस इच्छा की अकाल मृत्यु हो गई। मैं तब बारहवीं कक्षा में था। एक दिन जब मैं मंदिर के पास से गुजर रहा था, मैंने कनेर के पेड़ों के उस झुरमुट में स्वस्तिका और रोहित को बातचीत करते हुए देख लिया। रोहित के पिता की इसी कसबे में हलवाई की दुकान थी और वह मेरी कक्षा में ही था। रोहित उन युवकों की टोली का मुखिया था जिन्हें इस कसबे के लोग लफंगा मानते थे। बहरहाल, मुझे उस दिन से स्वस्तिका से कुछ अलगाव सा महसूस होने लगा था। कनेर के फूलों के बारे में मेरा सारा ज्ञान आज भी उतना ही है जितना मुझे बचपन में स्वस्तिका से मिला था। एक दिन जब वह कनेर के फूल तोड़ रही थी तो मैंने उससे पूछा था कि वह इन फूलों का क्या करेगी? उसने मुझे बताया था कि शिव भगवान की पूजा के लिए कनेर के फूलों का उपयोग किया जाता है। उसका यह भी कहना था कि शिव पूजा में कनेर के फूलों के अर्पण से इंसान की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। उन्हीं दिनों मुझे उससे यह जानकारी भी मिली कि कनेर के पेड़ों के पास साँप नहीं आते हैं और इसके बीज जहरीले होते हैं।

बहरहाल, मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि उस दिन मेरा बारहवीं कक्षा का रिजल्ट आया था और मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था। घर में खुशी का माहौल था कि तभी किसी ने आकर स्वस्तिका की मौत की सूचना दी। अभी दो दिन पहले तो मैंने उसे कनेर के फूल तोड़ते देखा था फिर वह यूँ अचानक कैसे मर गई? बाद में घर में माँ - बाप के बीच होने वाली खुसर - पुसर से पता चला कि उसकी मौत कनेर के बीज खाने से हुई थी। अपने हमउम्र साथियों से यह भी मालूम हुआ कि स्वस्तिका माँ बनने वाली थी। मेरे लिए यह अनुमान लगाना मुश्किल न था कि यह सब किसकी वजह से हुआ था।

आज इन फूलों को देखकर स्वस्तिका की याद तो आई लेकिन न जाने क्यों इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद उसकी मासूमियत याद कर यकायक मेरी आँखें नम हो चली हैं। उसका कहना था कि कनेर के पेड़ों के पास साँप नहीं आते हैं। काश, उसे किसी ने वक़्त रहते यह समझा दिया होता कि इंसानी साँप तो कहीं भी पहुँच जाते हैं तो मुझे पूरा यकीन है कि आज वह किसी मंदिर में कनेर के फूलों से शिव पूजा कर रही होती।

३० जून २०१४

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