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९. ६. २०१४

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में-

संध्या सिंह, देवेश देव, भास्कर चौधरी, रचना श्रीवास्तव और नीरज त्रिपाठी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- भुट्टों के मौसम में मक्के के स्वादिष्ट व्यंजनों के क्रम में- मकई और पालक की सब्जी

गपशप के अंतर्गत- क्या आपने कभी यह सोचा है कि सुबह सुबह हम अपने साथ कैसा व्यवहार करते हैं। शायद नहीं। विशेष जानकारी- स्फूर्तिदायक सुबह

जीवन शैली में- ऊर्जा से भरपूर जीवन शैली के लिये सही सोच आवश्यक है, इसलिये याद रखें-  सात बातें जिनके लिये झिझक नहीं होनी चाहिये

सप्ताह का विचार में- बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। - विष्णु शर्मा

- रचना व मनोरंजन में

आज के दिन (९ जून को) १९४९ में पुलिस अधिकारी किरन बेदी, १९७७ में अभिनेत्री अमीषा पटेल, १९८१ में सितार वादक अनुष्का शंकर...

लोकप्रिय उपन्यास (धारावाहिक) - के अंतर्गत प्रस्तुत है २००४ में प्रकाशित स्वदेश राणा के उपन्यास— 'कोठेवाली' का चौथा भाग

वर्ग पहेली-१८८
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यूएई से
पूर्णिमा वर्मन-की-कहानी--जड़ों से उखड़े

दुबई हवाई अड्डे से शारजाह में अपने घर वाली बिल्डिंग तक पहुँचने में घड़ी देखकर १८ मिनट लगे थे। नेहा ज़रा चौंकी थी- इतनी जल्दी हम एक शहर से दूसरे शहर आ गए? उत्तर प्रदेश में तो एक गाँव भी पार नहीं होता इतनी देर में। हाँलाँकि बोली कुछ नहीं, सामान ऊपर पहुँचाना था, नाथूर सामान की ट्रॉली लिए खड़ा था, प्रकाश ने परिचय करवाया, ‘यह है नदीम, इस बिल्डिंग का नाथूर, यानी केअर टेकर।' सहारनपुर के ही किसी गाँव का था सो प्रकाश से बड़ी दोस्ती हो गई थी उसकी। एक लिफ़्ट से ट्रॉली में लदकर सामान ऊपर गया साथ ही दूसरी लिफ़्ट से नेहा और प्रकाश। पल भर में वे लोग छठी मंज़िल पर इस ६०२ नंबर के फ्लैट में आ गए। फ्लैट में पहुँचे तो एक बार पूरे घर का मुआयना कर नेहा बाहर ड्राइंगरूम में आ बैठी, जहाँ से बाहर सबकुछ साफ़ दिखाई देता था। काँच की बड़ी खिड़की के आगे एक बालकनी थी और वहाँ से दूर दूर तक जहाँ भी नज़र जाती थी रेत के सिवा एक बड़ी पक्की ज़मीन और सुनसान पड़ी एकमंज़िली इमारत के सिवा... आगे-
*

प्रमोद यादव का व्यंग्य
कहानी सपनों की
*

डॉ अशोक उदयवाल से
स्वाद और स्वास्थ्य में- कद्दू एक लाभ अनेक
*

रंगमंच के अंतर्गत
विदेसिया- भिखारी ठाकुर की अद्भुत देन

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पुनर्पाठ में- रजनी गुप्ता के उपन्यास
कहीं कुछ और- से परिचय

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पिछले सप्ताह-

प्राण शर्मा की लघुकथा
सोने की बालियाँ
*

पीयूष द्विवेदी भारत का रचना प्रसंग
लोक काव्यों में सर्वाधिक चर्चित- कहमुकरी
*

ज्योति खरे के साथ पर्यटन
तमिलनाडु में महाबलीपुरम की ओर
*

पुनर्पाठ में- डॉ. गुरुदयाल प्रदीप से
विज्ञान वार्ता- गरमाती धरती और लापरवाह हम

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से मनीष-कुमार-श्रीवास्तव-की-कहानी--मैं-वो-और-मेरी-साइकिल

पाँच बड़े भाई-बहनों में मैं सबसे छोटा किन्तु सबमें जवान होने का रोमानियत भरा अहसास सबसे पहले मुझे होना अजीब सी बात है! सबसे बड़े भाई ने ८० के शुरूआती वर्षों में गुल्लक फोड़कर पिताजी से ‘हाईस्कूल’ पास होने के एवज में ‘नई साइकिल’ की दरख्वास्त लगाई और हाईकमान ने भी आदर्श पिता की भूमिका निभाते हुए अपनी थोड़ी सी तनख्वाह से कुछ और पैसे मिलाकर भाई को नीले रंग की २० इंच की साइकिल खरीद दी, शर्त यह कि "सब भाई-बहन चलायेंगे वो भी बिना झगड़ा किये।" समझौते के निष्कर्ष तक कभी न पहुँचने वाली पाकिस्तान और भारत सरीखी अर्न्तराष्ट्रीय पॉलिसी का अजीब नमूना पिताजी ने घर में ही हमसे शर्त के रूप में रख दिया। किन्तु मैं और मुझसे ठीक बड़े इस बात से आश्स्वत थे कि हमें कहाँ साइकिल की गद्दी यूज़ करनी है, हमें तो कैंची ही चलानी है चिंतित हों बड़ी दीदी और बड़े भाई लोग जिन्हें रोस्टर बनाकर साइकिल का पूरा प्रयोग करना है वो भी "बिना झगड़ा किये?" खैर शर्त का आंशिक पालन करते हुए मैं भी बड़ा हो गया...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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