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३. ३. २०१४

इस सप्ताह-

1अनुभूति में-
कल्पना रामानी, नवीन चतुर्वेदी, केशव शरण, महावीर उत्तरांचली और अभिनव कुमार सौरभ की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

नौका वाला चौराहा, बोट राउंड अबाउट, शिप राउंड अबाउट या कश्तीवाला इशारा, शारजाह का एक शांत मगर महत्वपूर्ण स्थल है। ...आगे पढ़ें

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- होली की तैयारी में चटपटी चाट के लिये विशेष रुप से बनाए गए दही और सोंठ के बताशे

आज के दिन (३ मार्च को) १८३९ में उद्योगपति जमशेदजी टाटा, १९५५ में अभिनेता जसपाल भट्टी, १९६७ में संगीतज्ञ शंकर महादेवन और ...

हास परिहास के अंतर्गत- कुछ नये और कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी का आनंद...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- ३२  विषय- 'शादी उत्सव गाजा बाजा' में रचनाओं का प्रकाशन प्रारंभ हो गया है। टिप्पणी के लिये देखें- विस्तार से...

पुरानी लघु कथाओं- के अंतर्गत प्रस्तुत है १ मई २००३ को प्रकाशित बसंत आर्य की लघुकथा एक दर्द अपना-सा

वर्ग पहेली-१७५
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में भारत से
रेणु सहाय की कहानी- रेत का महल

सारा जंगल लाल नजर आ रहा था। यहाँ के जंगलों में पतझड़ से पहले पेड़ों के पत्ते लाल हो जाते हैं, जैसे पके हुए फल और फिर कुछ दिनों के बाद सारे पत्ते झड जाते हैं और सिर्फ ठूँठ रह जाते हैं। जब सारा जंगल लाल हो जाता है तो बड़ा मनमोहक लगता है। इस दृश्य को देखने के लिये सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। ऐसा दृश्य शुभ्रा ने किसी फिल्म में देखा था और आज सामने देख कर रोमांचित हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे किसी जश्न की तैयारी हो और चारों ओर कोलाहल मचा हो। पेड़, पत्ते आपस में बातें कर रहे हों, खिलखिला रहे हों। ऐसे में तरुण के साथ होने से मन प्रफुल्लित हो रहा था। हलके गुलाबी रंग के शर्ट और जीन्स में बड़े हैंडसम लग रहे थे तरुण। गुलाबी रंग के कपड़े तरुण को बहुत पसंद हैं शायद। उसने एक बार पूछा भी था, तो वह मुस्कुरा के रह गए। पता नहीं हर वक्त यह रिचर्ड क्यों लगा रहता है। उसे समझ में नहीं आता क्या, यह हमारा पारिवारिक कार्यक्रम है और फिर हमारी नई- नई शादी हुई है, हमें भी एक दूसरे का साथ चाहिये। आगे-
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करुणाकांत चौबे की लघुकथा
लैपटॉप
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मोहनचंद मंटन की कलम से-
सरस्वती संपादक के रोचक प्रसंग
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योगेश प्रवीण का संस्मरण
गन्ने में शेर
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पुनर्पाठ में- प्रभात कुमार से जानें
जीवनरक्षक छतरी और गर्मी का शीशमहल1

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पिछले सप्ताह- शिवरात्रि के अवसर पर


नागार्जुन का व्यंग्य
बम भोलेनाथ
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डॉ चन्द्रिका प्रसाद शर्मा की कलम से
बटेश्वर नाथ महादेव
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पूजा प्रजापति का आलेख
शिव और ताण्डव

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पुनर्पाठ में- उषा खुराना का आलेख
मारीशस में शिवरात्रि

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समकालीन कहानियों में भारत से
मंजु मधुकर की कहानी- त्रिनेत्र को चुनौती

कभी सुना था कि भोले शंकर का तीसरा नेत्र भी है, क्रोध में आने पर ही प्रकट होता है और अपनी क्रोधाग्नि से समस्त ब्रह्मांड हो भस्म कर देता है। परंतु यह क्या, कामदेव को भी तो भस्म किया था, फिर वह क्यों किसी-न-किसी पर सवार हो न उम्र देखते हैं, न समय, न ही परिवेश। ऐसा भान होता है कि पल-प्रतिपल वह भोले बाबा को उकसाते रहते हैं कि लीजिए, मैं अनंग हुआ तो क्या, आप मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सके और न कभी मेरा अहित करने में सफल हो सकेंगे। जब मैं अंगीय था तो केवल आप ही मेरे बाणों से घायल हुए, परंतु अब तो अंग-विहीन हो अनंग बन समस्त ब्रह्मांड को कँपाता रहूँगा। कई बार तो किसी-न-किसी पर यूँ सवार हो जाते हैं कि स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा है जया के बड़े भैया का। जया अपने सरकारी विशाल बँगले के बाह्म बरामदे में बैठी सामने दीवार पर टँगी भोले शंकर की तस्वीर के त्रिनेत्र को देखती सोच रही थी, जहाँ किसी श्रद्धालु चित्रकार ने... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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