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					इस सप्ताह- 
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					 अनुभूति 
					में-
					नवरात्र के अवसर पर 
					मातृशक्ति को समर्पित नए पुराने रचनाकारों की अनेक विधाओं में 
					रची रससिद्ध रचनाएँ।  | 
				 
				 
 
                      
                
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                  - घर परिवार में  | 
				 
                
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					रसोईघर में- नवरात्र के शुभ अवसर पर हमारी शेफ शुचि 
								द्वारा तैयार- व्रत के फलाहारी व्यंजनों की शृंखला 
					में इस सप्ताह प्रस्तुत हैं-
					साबूदाने का 
					पुलाव  | 
                 
                
                  | 
                  
					 
                  
					बचपन की 
					आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में 
					संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
					
					शिशु के साथ नवरात्र।
					
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      सुनो कहानी- छोटे 
		बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के पाक्षिक स्तंभ में 
		इस बार प्रस्तुत है कहानी- 
		सुलेख।  | 
                 
                
                  | 
               
				- रचना और मनोरंजन में  | 
                 
                
                  | 
                 					
									 
      
				
					साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक 
		समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये 
				
					यहाँ देखें  | 
				 
                
                  | 
                   
                  
                  
					नवगीत की पाठशाला में- 
                  कार्यशाला-२४ के विषय की घोषणा हो गई 
					है। विस्तार से जानने के लिये पाठशाला के इस पृष्ठ को 
					देखें। 
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					लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- 
				प्रस्तुत है पुराने अंकों से 
					१६ मई २००६ को प्रकाशित भारत से 
				गिरिराज किशोर की कहानी—"माँ 
				आकाश है"। 
				
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		वर्ग पहेली-१०३ 
				गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल 
		और रश्मि आशीष के सहयोग से 
                  
                  
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                   सप्ताह 
					का कार्टून-             
					 
             
					
					          कीर्तीश 
					की कूची से  | 
                 
                
                  | 
                                       
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					साहित्य एवं 
					संस्कृति में-   | 
                   
                  
                    | 
                     
					नवरात्र के अवसर 
					पर 
					मातृशक्ति को समर्पित  
					विशेषांक में
					समकालीन कहानियों के अंतर्गत भारत से  
					प्रकाश गोविंद की कहानी-
					संकल्प 
                    
					
                    
					  
                    
                    मैं जब भी नदी के किनारे खडे़ 
					होकर अनवरत शांत बहती हुई नदी को देखता हूँ, तो बरबस मुझे माँ 
					की याद आ घेरती है। सादगी और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति जैसी 
					मेरी माँ। उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा अद्भुत रहस्य समाया 
					रहता, जिसको शब्दों में तो नहीं समझाया जा सकता, लेकिन उनके 
					स्वभाव की सरलता और मन की विशालता उनसे मिलकर साफ-साफ अनुभव की 
					जा सकती है। मेरी माँ ने मेरे लिए हर कदम पर कितना संघर्ष किया 
					है, मेरे लिए किस कदर त्याग किया है, यह सिर्फ मैं जानता हूँ 
					या फिर ईश्वर। सच तो यह है कि माँ ने कभी भी अपनी तकलीफ का 
					अहसास मुझे नहीं होने दिया। उन्होंने कभी भी अपने मुँह से यह 
					नहीं कहा कि मेरी खातिर उन्होंने कितना कुछ सहन किया है। मुझे 
					गाँव का अपना टूटा-फूटा घर आज भी याद है। घर के अंदर खिड़की से 
					लगा वह छोटा-सा हिस्सा क्या मैं कभी भूल सकता हूँ, जहाँ मुझे 
					बिठाकर वे कपड़ों की सिलाई करती थीं।
					आगे- 
					
					*
      गुरदीप सिंह पुरी की 
		लघुकथा- माँ 
		
					* 
							
      प्रेमपाल शर्मा का संस्मरण 
		माँ और मेरी शिक्षा 
		* 
					
					पूर्णिमा वर्मन का आलेख 
					
					डाकटिकटों पर क्रांतिकारी वीरांगनाएँ 
					
					* 
                    
      पुनर्पाठ में- कलादीर्घा के अंतर्गत- 
		माँ- विभिन्न कलाकारों की तूलिका से   | 
                   
                  
                    | 
                     
                    
					
					अभिव्यक्ति समूह 
					की निःशुल्क सदस्यता लें।  | 
                   
                   
                 
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                    पिछले-सप्ताह- | 
		 
		
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					१ 
					जवाहर चौधरी का व्यंग्य 
		लेओजी लेओजी लेओ बैंक लोन 
		
					* 
							
      डॉ. राजेन्द्र गौतम से रचना प्रसंग 
		नवगीत का 
		सौंदर्यबोध 
		* 
					
					डॉ. प्रेमशंकर का नगरनामा 
					हम फिदाए लखनऊ 
					
					* 
                    
      पुनर्पाठ में डॉ. गुरुदयाल सिंह प्रदीप  
		की विज्ञान वार्ता- 
		जैविक 
		एवं रासायनिक हथियार 
		* 
                    समकालीन कहानियों में भारत से  
					सुधा गोयल की कहानी-
					
					मृत्युपर्व 
                    
					
                      
                    
                    अम्मा का मर जाना लगभग तय हो 
					चुका है। अम्मा है अस्सी, पाँच पचासी की। भला और कितना जिएगी! 
					अपने सामने भरा-पूरा परिवार है। नाती-पोते, पड़ोते, बेटे-बहुएं। 
					अम्मा-अम्मा कहकर गाहे-ब-गाहे सभी अम्मा के दर्शन कर जाते हैं। 
					क्या पता कब अम्मा की आँख मुँद जाए और मन में अम्मा से न मिल 
					पाने का दुख कचोटता ही रहे! अम्मा जैसे एक तीर्थ हो गई हैं। सब 
					अम्मा के पाँव छूते हैं। अम्मा अपने झुर्रीदार सख्त चमड़ी जैसे 
					पाँवों को (जिन पर खाल की मामूली-सी पर्त है) अपनी तार-तार 
					पीली पड़ी सफेद धोती में छुपाने का असफल-सा प्रयास करती हैं। 
					ऐसे अवसरों पर अपनी दीर्घायु के कारण अम्मा को अक्सर संकुचित 
					हो जाना पड़ता है। पोपले मुँह से आशीष निकलने की जगह अपनी 
					जिंदगी की बेबसी पर उनकी आँखें भर जाती हैं। जुबान तालू से 
					चिपट जाती हैं ऐसा नहीं कि अम्मा आशीर्वाद देना नहीं जानतीं या 
					भूल गई हो।
					आगे-  | 
		 
		
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					अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ  | 
		 
		 
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