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फुलवारी

<                               सुलेख                         >

गीतू और मीतू पाठशाला पहुँचे। गीतू को लिखना पसंद है, मीतू को पढ़ना।
चलो सुलेख लिखते हैं- गीतू ने कहा।
सुलेख क्या ? मीतू ने पूछा।
जब हम अक्षरों को धीरे धीरे सुंदर बनाकर  लिखते हैं तब उसे सुलेख कहते हैं। गीतू ने बताया।

अच्छा, और जब अध्यापिका बोलती है और हम उसे सुनकर लिखते हैं उसको क्या कहते हैं? मीतू ने फिर पूछा
उसको श्रुतिलेख कहते हैं- गीतू ने कहा।
अच्छा अच्छा मुझे सुलेख और श्रुतिलेख दोनो पसंद नहीं है। मुझे केवल कहानी पढ़ना पसंद है। मीतू ने कहा, और वह एक किताब खोलकर पढ़ने लगी।

क्या तुम्हें सुंदर लिखावट अच्छी लगती है? गीतू ने पूछा।
हाँ बहुत जैसे तुम साफ-साफ सुंदर-सुंदर लिखती हो वैसी लिखावट मुझे पसंद है।
रोज सुलेख लिखने से ही तो लिखावट सुंदर होती है। गीतू बोली।
अच्छा फिर तो मैं भी सुलेख लिखूँगी मीतू ने कहा।
गीतू सुलेख लिखने लगी और मीतू एक नया कागज लाकर सुलेख लिखने की तैयारी करने लगी।

- पूर्णिमा वर्मन

१५ अक्तूबर २०१२

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