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३०.. २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
रमेश रंजक, बसंत ठाकुर, श्रीकांत सक्सेना, ऋता शेखर मधु और शांति सुमन की  रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दियों के मौसम में पराठों के क्या कहने ! १५ व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला- भरवाँ पराठों में इस सप्ताह प्रस्तुत हैं- बाजरे के भरवाँ पराठे।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें यदि शिशु एक साल का है-  भूख में कमी

बागबानी में- कंपोस्ट का कमाल- बगीचे या घास के मैदान को हराभरा बनाना हो तो कम्पोस्ट से बेहतर कोई साधन नहीं। इसे साल में दो तीन बार...  

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ फरवरी से १५ फरवरी २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

सप्ताह का विचार- जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है। - कहावत

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-२० में संक्रांति के उत्सव का आनंद बाँटते नवगीतों का प्रकाशन इस सप्ताह पूरा हो जाएगा-  

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- ९ अक्तूबर २००४ को प्रकाशित, भारत से तरुण भटनागर की कहानी— धूल की एक परत

वर्ग पहेली-०६६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से प्रभु जोशी
की कहानी सविता बनर्जी - एक डायरी का नाम

परसों दिन भर इन्दौर के टेम्पो, टैक्सियों में, सिटी बसों और उनके स्टाप्स पर घूमते हुए मैंने लगभग हर उस लड़की से बेसाख्ता पूछा, जो एक नजर में दूर से सलीकेदार जान पड़ती थी कि-‘क्या आप सविता बनर्जी हैं?‘ और, शाम होते-होते मुझे किसी भी लड़की से पूछने के पहले दहशत होने लगी थी, इस बात को सोचकर कि वह बेलिहाज हो कर इनकार देगी।
यह बात शुक्रवार की शाम की है। इन्दौर में मुझे धुआँरी शामें, शोर और भीड़ के बीच होल्करों के, राजबाड़े की पुरानी इमारत की दीवारें देखकर हमेशा लगता है, जैसे सामन्त-समय की मुँडेर पर बैठा इतिहास बहुत खामोश होकर वक्त की रफ्तार का जायजा ले रहा है।
मैं राजवाड़े से जी.पी.ओ. (जनरल पोस्ट ऑफिस) की तरफ जाने के लिए एक तिपहिया टेम्पो में बैठा ही था कि अचानक सिटी बस आ गई। बस को आता देखकर सहसा मेरे सामने की सीट से एक साँवली-सी दोशीजा आँखों वाली लड़की उठी और टेम्पो से लगभग कूद कर बाहर हो गयी।
विस्तार से पढ़ें...
*

राज चड्ढा का व्यंग्य
आग तापने का सुख
*

पत्रकार डॉ. सौरभ मालवीय का आलेख
समाचार पत्रों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उपेक्षा...

*

कला और कलाकार में
डॉ. लाल रत्नाकर से परिचय
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह-

1
पवन शर्मा की लघुकथा
तनाव
*

पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी की
डायरी के पन्नों से- भुज का भूकंप

*

अनिल मिस्त्री का दृष्टिकोण
पुरानी सोच का आदमी

*

पुनर्पाठ में माधवी वर्मा का आलेख
स्वर साम्राज्ञी सुरैया

*

समकालीन कहानियों में भारत से
विभारानी की कहानी अभिनेत्रियाँ

देर हो चुकी थी। नागम्‍मा जल्‍दी-जल्‍दी कपड़ा मार रही थी कि पीतल के नटराज नीचे गिरे – घन्न्न्न्न्.... जोरदार आवाज हुई। जयलक्ष्‍मी घबड़ाकर बाहर निकली –
‘क्‍या तोड़ दिया?’
‘कुछ नहीं... नटराज गिर पड़े।’
‘संभालकर बाबा! कितनी बार समझाऊँ?’‘हाथ ही तो है न माँ! हो जाता है।’ जयलक्ष्‍मी के भाषण से नागम्‍मा चिढ़ती है। नागम्मा की दलील से जयलक्ष्‍मी चिढ़ गई -‘एक तो गलती, ऊपर से गलथेथड़ी। सॉरी तो इन लोगों की जीभ पर है ही नहीं।’ नागम्‍मा के हाथ फिर से मशीन की तरह चलने लगे। आठ बजे उसे दफ्तर पहुँचना होता है-‍ पैसेज की सफाई, क्यूबिकल्स की सफाई, केबिन की सफाई, बाथरूम की सफाई, केबिन के अफसरों के लिए पानी। कान्ट्रैक्‍ट पर है वह। सब कुछ करते-धरते दस बज जाते हैं। दफ्तर के कैंटीन में ही वह नाश्‍ता करती है। कांट्रैक्टर से उसे यूनीफॉर्म मिली हुई है – साड़ी!
विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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