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                       साल 
						में एक बार छोटा आता ही है परिवार सहित। और जब भी छोटा आता 
						है बड़े के दिमाग में एक तनाव बना रहता है। ये तनाव तब तक 
						बना रहता है जब तक छोटा इस घर में रहता है। यह बात वह किसी 
						से कहता नहीं, किसी को मालूम भी नहीं होने देता, अपनी 
						पत्नी को भी नहीं। 
						ये तनाव क्यों होता है जानता है वह। 
                      जैसे ही फोन पर कबर मिलती है 
						कि छोटा आ रहा , तब घर का नक्शा ही बदल जाता है। पूरे घर 
						की साफ-सफाई होती है सोफे के कवर और खिड़कियाँ, दरवाजे के 
						पर्दे बदल दिये जाते हैं। ये सब माँ ही करती है। उसकी समझ 
						में नहीं आता कि क्यों? बैंक 
						में मैनेजर है छोटा। ऊँची पोस्ट पर है। ऊँची सोसायटी में 
						उठता बैठता है, शायद इसी वजह से। छोटा चाय नहीं, काफी पीता 
						है। बच्चे हार्लिक्स पीते हैं। खाने पीने पर खास ध्यान 
						दिया जाता है। माँ उसके ही बच्चों में खोई रहती है। 
						 
                      इस बीच वह यह भी महसूस करता है 
						कि जब तक छोटा इस घर में रहता है उसका महत्त्व कम हो जाता 
						है। किसी भी बात के लिये उससे सलाह नहीं ली जाती, नही उससे 
						कुछ पूछा जाता है। पिताजी बैठे बैठे छोटे से ही बतियाते 
						रहते हैं। यदि वह वहाँ पहुँच जाए तो चुप हो जाते हैं। बस, 
						यही कारण है उसके तनाव का, वह महसूस करता है। 
                      मोटर साइकिल स्टैंड पर खड़ी 
						करते हुए उसने देखा कि छोटा और पिताजी ड्राइंग रूम में 
						बैठे हुए बातें कर रह हैं। सामने टीवी चल रहा है। माँ उठकर 
						दरवाजे पर आ गयी। माँ ने पूछा, "आज 
						बहुत देर कर दी, कहाँ था? 
                      "कहीं 
						नहीं, यहीं ऐसे ही।" कहता हुआ 
						वह अपने कमरे की ओर बढ़ गया। वह साफ झूठ बोल गया। तनाव की 
						वजह से वह पिक्चर हाल में जाकर बैठ गया था। पिक्चर छूटने 
						के बाद भी वह इधर-उधर घूमता रहाष रात के पूरे ग्यारह बजे 
						तक। 
                      वह कमरे में घुसा। बच्चे सो 
						चुके थे। उसकी पत्नी पलंग पर लेटी हुई कोई मैगजीन पढ़ रही 
						थी। कपड़े उतार कर वह बाथरूम में फ्रेश होने चला गया। वहाँ 
						से आया तो तौलिये से हाथ मुँह पोंछते हुए पत्नी से बोला,
						"खाना लगा दो... बहुत भूख लगी 
						है।" 
						"अकेले ही खाओगे?" पलंग 
						से उठती हुई पत्नी बोली। 
						"क्यों"? 
						"पिताजी और भाई साहब भी बिना 
						खाना खाए बैठे हैं अभी तक... उन्होंने भी खाना नहीं खाया 
						है। कब से तुम्हारी राह देख रहे हैं।" 
						पत्नी ने कहा। 
						"अरे, 
						उन्हें खा लेना चाहिये था।" 
						कभी तुम्हारे बगैर खाया है उन्होंने सब एक साथ ही तो खाते 
						हैं। पत्नी ने कहा और खाना लगाने चली गई। 
						 
						वह ठगा सा खड़ा रह गया उसका गहरा तनाव बर्फ बनकर पिघल गया।
						 
						खाना खाने के बाद वह पूरी तरह तनावमुक्त था। 
                      २३ जनवरी २०१२  |