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७. ३. २०१

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
रामस्वरूप सिंदूर, शाहिद नदीम, सुधा अरोड़ा, मंजु मिश्रा और शरद पटेल की रचनाएँ।

- घर परिवार में

सप्ताह का व्यंजन- इतालवी भोजन के अंतर्गत गृहलक्ष्मी प्रस्तुत कर रही हैं व्यंजन विधि- मैकरोनी क्रीम चीज़ और कार्न सॉस के साथ

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का दसवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- स्वस्थ त्वचा का घरेलू नुस्खा

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ मार्च से १५ मार्च २०११ तक का भविष्य फल

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- नोटपैड या टेक्स्ट फाइल पर काम करते समय F5 'की' दबाकर जहाँ भी आवश्यकता हो, तात्कालिक समय और तिथि...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला १४ में रचनाओं का प्रकाशन प्रारंभ हो गया है। अगर अभी तक रचना नहीं भेजी है तो शीघ्र भेज दें... आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली-०१९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपालइस सप्ताह चौपाल में प्रेमचंद गाँधी के नाटक एक अनूठी प्रेम कहानी का दूसरा भाग पढ़ा जाना था। मालूम नहीं इस बार क्यों... आगे पढ़ें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
सुनील कुमार श्रीवास्तव की कहानी वापसी

सर्वेश्‍वर राय के गाँव के लिए वाराणसी से आखिरी सीधी बस अपराह्न दो बजे होती थी, जो शाम पाँच बजे मुगलसराय को पीछे छोड़ती हुई बिहार की सीमा में प्रवेश करती और करीब घंटे भर बाद उनके गाँव को छूती हुई पूर्व में डिहरी-ऑन-सोन तक चली जाती। पिछले पन्‍द्रह वर्षों में उन्‍हें जब-जब गाँव जाना हुआ, इस बस ने उनकी यात्रा काफी व्‍यवस्थित रखी। लेकिन इस बार उन्‍हें सपरिवार वाराणसी पहुँचने पर पता लगा कि अब वह सीधी बस सेवा बंद हो गई है। उत्‍तर प्रदेश की बसें राज्‍य की सीमा तक जाती हैं और नौ बजे रात तक वहाँ पहुँचती हैं। सवारियों को आगे ले जाने के लिए अब बिहार की अपनी बसें हैं। लेकिन शाम पाँच बजे के बाद वहाँ से कोई बस नहीं जाती। इस व्‍यवस्‍था से उन्‍हें खासी दिककत पेश आई, लेकिन उत्‍तर प्रदेश सीमा से आगे आखिरी बस उन्‍हें मिल गई। सड़क काफी टूट चुकी हे और लंबी-लंबी दूरियों तक...  पूरी कहानी पढ़ें...
*

भारती पंडित की लघुकथा
गुरु दक्षिणा
*

ईश्वर भट्ट का आलेख
तटीय कर्नाटक की लोककला- यक्षगान

*

सुधा अरोड़ा का दृष्टिकोण
महिलाएँ- शिक्षा और आत्मनिर्भरता के बाद
*

पुनर्पाठ में विश्वनाथ सचदेव का आलेख
बिन चिड़िया का जंगल

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पिछले सप्ताह-


धीरेन्द्र शुक्ला का व्यंग्य
खेल घोटालों का 
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टीम अभिव्यक्ति की
श्रद्धांजलि चाचा अनंत पई को
*

फुलवारी में बच्चों के लिये-
आविष्कारों की कहानी
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानी निःशंक

वह घर पहुँचकर अनमनी और उदास तो थी ही, एक नि:संग सी व्यर्थता और खालीपन का बोझ भी उसे अन्दर ही अन्दर शिथिल किये था। अच्छा होता, वह घर से जाती ही नहीं। फिर एक प्रतिरोध उठा- क्यों नहीं जाती। नकाबों को ढोते-ढोते कब तक जीना होगा। पर नकाब उतर जाने से भी क्या बेचैनी मिट जाती है ? वह अपने आप में बड़ी अव्यवस्थित थी। दो बार बाहर यूँ ही बरामदे में जाकर देख आयी कि दरवाज़ा ठीक से बंद तो है। दरवाज़ों के पल्लों पर अन्यथा मिट्टी की परतें दिखाई देने लगी थीं। परदों का चितकबरापन मुँह चिढ़ा रहा था। धूप की वजह से उनका रंग उड़ा-उड़ासा लगने लगा था। आज तो वे नितांत बेरंग लग रहे थे। ध्यान नहीं जाता तो सब ठीक लगता है पर एक बार कहीं मन के कोने में खटका हो गया तो बात उतरती ही नहीं।  पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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