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२५. १०. २०१०

सप्ताह का विचार- दूसरों के सुख में अपनी समृद्धि देखना ही समृद्धि का आदर्श नियम है। इसे स्वार्थ के लिये बदला नहीं जा सकता। -श्री परमहंस योगानंद

अनुभूति में- विमलेश चतुर्वेदी विमल,-जेनी-शबनम, रामावतार त्यागी और संतोष गोयल की रचनाएँ तथा वर्षा से संबंधित कार्यशाला-१० के चुने हुए गीत।

सामयिकी में- सहकारी आंदोलन द्वारा कृषकों के जीवन में सुधार की कहानी कहता अशोक बजाज का लेख- छत्तीसगढ में कृषि विकास के बढ़ते चरण

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- चेहरे, हाथों और पैरों पर थोड़ा सा एरंड तैल (कैस्टर ऑयल) लगा कर हल्की मालिश करने से झुर्रियाँ दूर होती हैं।

पुनर्पाठ में- समकालीन कहानियों के अंतर्गत १६ मई २००२ को प्रकाशित अश्विन गांधी की कहानी 'पिजा की पुकार'।

क्या आप जानते हैं? ५००० वर्ष पूर्व जब विश्व में अधितकर सभ्यताएँ खानाबदोश जीवन व्यतीत कर रही थीं भारत में सिंधु-घाटी समृद्धि के शिखर पर थी।

शुक्रवार चौपाल- लगता है कि इस साल छुट्टियाँ कुछ ज्यादा हो रही हैं। पिछले सप्ताह शुभाशीष दशहरे की छुट्टी पर घर गए थे। इस बार... आगे पढ़े

नवगीत की पाठशाला में- इस सप्ताह भी कार्यशाला- ११ के नवगीतों का प्रकाशन जारी रहेगा। गीत अभी भी भेजे जा सकते हैं। आगे पढ़ें...


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
करवाचौथ के अवसर पर समकालीन कहानियों में भारत से मनमोहन भाटिया की कहानी रिश्ते

सुबह का समय था। ऑफिस जाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। खाने की मेज पर नाश्ते का इंतजार सुबह का अखबार पढ़ कर हो रहा था। पत्नी शर्मिला रसोई में नाश्ते के साथ ऑफिस ले जाने का लंच का टिफिन भी पैक करने में व्यस्त थी। मध्यवर्गीय परिवार की तो लिखने-पढ़ने की मेज और खाने की मेज एक ही होती है। शुक्र है कि कुछ समय पहले खाने की मेज खरीदी, वरना बिस्तर पर ही नाश्ता, खाना, सोना सब कुछ होता था।
"अखबार बंद करो, नाश्ता तैयार है।" शर्मिला ने रसोई से आवाज दी और ट्रे में नाश्ता सजा कर ले आई। ब्रेड मक्खन के साथ आलू के चिप्स देखकर सुनील चहक उठा, "आज तो एकदम छुट्टी के दिन वाला नाश्ता बना दिया। मजा आ गया।"
"आज मेरा व्रत है, खाना सीधे शाम को ही बनाऊँगी, सोचा सुबह कुछ हल्का और नया बना दूँ आपके लिये।
पूरी कहानी पढ़ें...
*

पं. वेदप्रकाश शास्त्री का व्यंग्य
मेरा करवाचौथ का व्रत
*

दीपिका जोशी की कलम से-
पर्व परिचय: करवाचौथ
*

कला दीर्घा में
विभिन्न कलाकारों की कूची से- करवाचौथ
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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

पिछले सप्ताह

हरि जोशी का व्यंग्य
कार्यालयों की गति
*

रश्मि सिंह का आलेख
माउसलेस- एक अदृश्य कंप्यूटर माउस
*

देवेंद्र चौबे की कलम से-
मुक्तछंद के प्रथम कवि महेश नारायण
*

पर्यटक के साथ करें
बात बर्लिन की

*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
इला प्रसाद की कहानी एक अधूरी प्रेमक
था

मन घूमता है बार-बार उन्हीं खंडहर हो गए मकानों में, रोता-तड़पता, शिकायतें करता, सूने-टूटे कोनों में ठहरता, पैबन्द लगाने की कोशिशें करता... मैं टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ती हूँ लेकिन कोई ताजमहल नहीं बनता!
ये पंक्तियाँ मेरी नहीं, निमिषा की हैं। मैने जब पहली बार उसकी डायरी के पन्ने पर ये पंक्तियाँ पढ़ीं तो चकित रह गई थी। यह लड़की इतना सुन्दर लिख सकती है! उसका उत्साह और बढ़ा था, उसने कुछ और पन्ने चुन- चुन कर मुझे पढ़ाए थे।
हम तो डूबने चले थे मगरसागरों में ही अब गहराइयाँ नहीं रहीं!
"कैसे लिख लेती हो तुम ऐसा?" मैने प्रशंसा की थी। उसने कुछ शरमा कर अपनी डायरी बंद कर दी थी। .
पूरी कहानी पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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