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16. 7. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह—
समकालीन कहानियों में भारत से राजेश जैन की
दो अंकों में समाप्य लंबी कहानी हिस्सेदारी का पहला भाग
सड़क एकदम सपाट और सीधी थी। कार की उन्मुक्त रफ़्तार में एक मस्ती-सी थी। कम लेकिन सधी हुई रफ़्तार का उनके लिए अद्भुत नशीला आनंद था। ऐसे क्षणों को वे स्वादिष्ट चनों की तरह टूँगते थे और राहत महसूस करते। यात्रा और अबाध गति उनके लिए सच्चा रिलेक्सेशन था। यह उन्हें अपने जीवन का दार्शनिक सत्य लगता था। ज़िंदगी भी इसी कार की तरह बढ़ती रहे तो वह सफलता है- उपलब्धि है। ज़िंदगी की यात्रा में भी उन्होंने अपने आपको उसी तरह सुरक्षित और सुविधा संपन्न कर लिया है- जिस तरह कार में वे फिलहाल हैं. . .सीट पर आराम से ड्राइव करते हुए। आसपास के दृश्यों से आनंद निचोड़ते हुए. . .

*

हास्य-व्यंग्य में
गुरमीत बेदी का नज़र में अजूबे और भी हैं इंडिया में!

भारतीय जनता भी अजब-ग़ज़ब है, जो नहीं करना हो वो करती है और जो करना हो वो नहीं करती है। शायद इसी कारण हमारे देश में प्रजातंत्र नामक जीव बचा हुआ है और वो भोलाराम हो गया है, जो अपने भोलेपन में भूल जाता है कि जो सच्चे मन से उसकी सेवा कर रहे हैं उनकी भी सेवा कर ले। भोलाराम तो आजकल ऐसे लोगों की सेवा कर रहा है जो सेवा के नाम पर उसका मेवा खा रहे हैं और देशहित के नाम पर उससे सेवा करवा रहे हैं। ऐसे सेवक छींक भी दे तो अखबार को जुकाम हो जाता है। इनकी समाधियाँ बनाई जाती हैं और इनकी शहादत को याद करते हुए सर झुकवा दिए जाते हैं।

*

धारावाहिक में
ममता कालिया के उपन्यास दौड़ का सातवाँ और अंतिम भाग
राकेश कहते हैं, ''बच्चे अब हमसे ज़्यादा जीवन को समझते हैं। इन्हें कभी पीछे मत खींचना।'' रात को पवन का फ़ोन आया। माता पिता दोनों के चेहरे खिल गए।
''तबीयत कैसी है?''
''एकदम ठीक।'' दोनों ने कहा। अपनी खाँसी, एलर्जी और दर्द बता कर उसे परेशान थोड़े करना है।
''वी.सी.डी. पर पिक्चर देख लिया करो माँ।''
''हाँ देखती हूँ।'' साफ़ झूठ बोला रेखा ने। उसे न्यू सी.डी. में डिस्क लगाना कभी नहीं आएगा। पिछली बार पवन माइक्रोवेव ओवन दिला गया था। फ़ोन पर पूछा, ''माइक्रोवेव से काम लेती हो?''
''मुझे अच्छा नहीं लगता। सीटी मुझे सुनती नहीं, मरी हर चीज़ ज्यादा पक जाए। फिर सब्ज़ी एकदम सफ़ेद लगे जैसे कच्ची है।''
''अच्छा यह मैं ले लूँगा, आपको ब्राउनिंग वाला दिला दूँगा।''

*

इतिहास के अंतर्गत
हेमंत शर्मा का आलेख पूरब में ऑक्सफ़ोर्ड
18 वीं शती के साठवें दशक में संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर विलियम म्योर ने पूरब में ऑक्सफ़ोर्ड को बनाने की तमन्ना पाली। 1869 में योजना बनी और काम शुरू होते सत्तर का दशक आ पहुँचा। 9 दिसंबर 1873 को गवर्नर के नाम पर इस संस्था के पहले खंड म्योर कॉलेज की आधारशिला रखी गई। विश्वविद्यालय का स्थापत्य पूरा होने में 12 वर्षों का लंबा समय लगा। 23 सितंबर 1887 को जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय को मान्यता मिली उस समय यह कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास विश्वविद्यालयों के बाद उच्च अध्ययन के लिए उपाधि प्रदान करने वाला भारत का चौथा विश्वविद्यालय बन गया।

*

आज सिरहाने
अभिरंजन कुमार का कविता संग्रह उखड़े हुए पौधे का बयान
अभिरंजन कुमार के कविता संग्रह 'उखड़े हुए पौधे का बयान' को पढ़ते हुए मुख्य बात जो सामने आती है, वह यह है कि यदि कवि पत्रकार भी है, तो उसमें समाज को देखने की दृष्टि सामान्य लेखक से भिन्न अवश्य होगी। इतना ही नहीं, उसके अंतर में जो विश्लेषणात्मक तर्क शक्ति है, वह भी किसी व्यक्ति, समाज या देश को एक अलग नज़रिये से देखती होगी। 'उखड़े हुए पौधे का बयान' की ज़्यादातर कविताओं में एक गरमाहट भरी चेतना है। इनमें इतनी आग है कि अभिरंजन सिर्फ कवि नहीं, एक आंदोलनकारी की शक्ल में सामने आते हैं। अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाते हुए उन्होंने सबकी ख़बर ली है और किसी को नहीं बख़्शा है।

 

गोपाल सिंह नेपाली,
ऋषभ देव शर्मा, हरे राम समीप, पवन चंदन और सावित्री तिवारी आज़मी की नई रचनाएँ

विश्व हिंदी सम्मेलन
खबरी नारद की गप्पी गारद से सम्मेलन की टनाटन ख़बरें
6- सम्मेलन के अंतिम दिन की ख़बरें
5- सम्मेलन के दूसरे दिन की ख़बरें
4- सम्मेलन के पहले दिन की ख़बरें
3- चाय गरम
2- हिंदी के स्वर कंप्यूटर पर
1- विश्व हिंदी सम्मेलन का आधा परचम अंग्रेज़ी में

यह भी जानें
1-हिंदी के स्वर कंप्यूटर पर - एक परिचय
2-आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आधिकारिक जालघर
1

-पिछले अंकों से-
कहानियों में
अविजित-आशुतोष कुमार झा
लड़का, लड़की, इंटरनेट-कोल्लूरि सोम शंकर
बसेरा- शैल अग्रवाल
अंतिम तीन दिन- दिव्या माथुर

पेड़ कट रहे है- सुमेर चंद

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हास्य व्यंग्य में
हिंदी के शहीद-डॉ प्रेम जनमेजय
खुशी का ठिकाना-अविनाश वाचस्पति
बड़ी बेइंसाफ़ी है!- मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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विश्व हिंदी सम्मेलन अंक में
उषा राजे सक्सेना की कहानी मित्रता
प्रेम जनमेजय का व्यंग्य हिंदी के शहीद
अशोक चक्रधर का दृष्टिकोण बोल मेरी मछली कितनी हिंदी
जयंती प्रसाद नौटियाल का शोध अध्ययन विश्व में हिंदी पहले स्थान पर
*

साहित्यिक निबंध में
डॉ पद्मप्रिया का आलेख
मुक्तिबोध की अधूरी कहानियाँ और लंबी कविताएँ

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फुलवारी में
बच्चों के लिए मौसम की जानकारी
बर्फ़ क्यों गिरती है?

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साहित्य समाचार में
*
हिंदी विज्ञान लेख प्रतियोगिता-2007
* कैनबरा ऑस्ट्रेलिया में काव्य संध्या
* अभिरंजन कुमार के कविता संग्रह 'उखड़े हुए पौधे का बयान' का लोकार्पण
* विश्व विरासत बना ऋग्वेद

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सप्ताह का विचार
मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है। -सत्य साईं बाबा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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