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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से राजेश जैन की कहानी हिस्सेदारी


सड़क एकदम सपाट और सीधी थी। कार की उन्मुक्त रफ़्तार में एक मस्ती-सी थी। कम लेकिन सधी हुई रफ़्तार का उनके लिए अद्भुत नशीला आनंद था। ऐसे क्षणों को वे स्वादिष्ट चनों की तरह टूँगते थे और राहत महसूस करते। यात्रा और अबाध गति उनके लिए सच्चा रिलेक्सेशन था। यह उन्हें अपने जीवन का दार्शनिक सत्य लगता था। ज़िंदगी भी इसी कार की तरह बढ़ती रहे तो वह सफलता है- उपलब्धि है।

ज़िंदगी की यात्रा में भी उन्होंने अपने आपको उसी तरह सुरक्षित और सुविधा संपन्न कर लिया है- जिस तरह कार में वे फिलहाल हैं. . .सीट पर आराम से ड्राइव करते हुए। आसपास के दृश्यों से आनंद निचोड़ते हुए. . .सार्वजनिक सड़क पर कार के अंदर डेढ़ मीटर बाई दो मीटर की चलती-फिरती जगह उनकी अपनी थी. . .सिर्फ़ उनकी जहाँ वे उन्मुक्त मन उड़ान भर सकते थे। कोई शेयर करने वाला नहीं और न ही कोई कानूनी बाध्यता।

ऐसे वातावरण में उनका चिंतन मुखर हो उठता। वे विचारों के समुद्र में तैरने लगते। जानते भी हैं कि इसी बीहड़ मनःस्थिति में भटके हुए अनेकों बार कई महत्वपूर्ण तर्कों, योजनाओं और निष्कर्षों से उनका सामना हुआ है। एकाएक कोई निष्कर्ष उन्हें इस तरह मिला जैसे कोई कीमती वस्तु हाथ लग गई हो।

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