अभिव्यक्ति में पूरन सरमा की रचनाएँ
व्यंग्य में
होली की
हड़ताल
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पूरन
सरमा
जन्म- १४ मार्च १८५५ को
चुरू, राजस्थान, भारत में।
शिक्षा- एम.ए. (हिंदी), पत्रकारिता में स्नातकोत्तर
डिप्लोमा।
कार्यक्षेत्र-
चार दशकों से हिंदी एवं राजस्थानी लेखन में प्रवृत्त।
व्यंग्य लेखन के लिए अनेक बार पुरस्कृत एवं सम्मानित।
व्यंग्य मूल विधा, लेकिन उपन्यास एवं नाटक भी लिखे।
प्रकाशित कृतियाँ-
व्यंग्य संग्रह- एक थी बकरी, आत्महत्या से पहले, स्वयंवर
आधुनिक सीता का, तैमूरलंग का तोहफा, इक्कीसवीं सदी का
साहित्यकार, घायल की गति घायल जाने, नए नेता का चुनाव, गली
वाले नेताजी, अफसर की गाय, मेरी लघु व्यंग्य रचनाएँ, बड़े
आदमी, मुख्यमंत्री दिल्ली गए, दफ्तर में वसंत, साहित्य की
खटपट, मेरी व्यंग्य रचनाएँ व घर-घर की रामलीला
उपन्यास- समय का सच एवं बाल-साहित्य की लगभग बीस पुस्तकों
का प्रकाशन।
पुरस्कार व सम्मान-
राजस्थान साहित्य अकादमी के ‘कन्हैयालाल सहल पुरस्कार’ से
व्यंग्य के लिए सम्मानित। ‘समय का सच’ उपन्यास माध्यमिक
शिक्षा बोर्ड, राजस्थान के अनिवार्य हिंदी पाठ्यक्रम में
सात वर्षों तक पढ़ाया गया।
संप्रति- स्वतंत्र लेखन। |