हास्य व्यंग्य | |
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जब से अमेरिका आया हूँ गोल्फ खेलने का शौक हो गया है। ज़रा मौसम खुला देखा नहीं कि गोल्फ कोर्स की तरफ़ रवाना। क्या डिग्निटी वाला खेल है साहब। क्या तो खामोशी, और क्या तो ग्रीनरी... और एक्सरसाइज़ की एक्सरसाइज़। 18-19 होल का कोर्स। बॉल एक बल्ले बीस। अकेले खेलो। सामने किसी दूसरे की भी ज़रूरत नहीं। किसी प्रोफ़ेशनल का स्कोर हाथ में और एक होल से दूसरे होल की तरफ़ चलते चलो। बॉल को हिट करते हुए बॉल हिले न हिले मिट्टी ज़्यादा उड़े तो भी चिंता नहीं कोई देखकर खी-खी कर हँसने वाला भी नहीं। कैडी साथ में हो तो उसकी ट्रेनिंग है कि हँसना नहीं है। इस तरह खेलने वाले का आत्मविश्वास बढ़ जाता है। यह आत्मविश्वास फिर जीवन के दूसरे पहलुओं में भी नज़र आता है। आत्मविश्वास बढ़ानेवाला खेल है यह। जब मैं अपने ग्लव्ज़ के ले गोल्फ कोर्स में जाता हूँ सच पूछे वर्ल्ड पावर महसूस करता हूँ। मुझे तो लगता है कि वर्ल्ड पावर बनने के लिए गोल्फ खेलना चाहिए...। तभी तो अमेरिकी इसे खेलते हैं। दिस इज़ दि अलटिमेट गेम। खेलते हुए लगता है नेचर, ब्रह्मांड, ब्रह्म के साथ सीधे मैच हो रहा है। यह खेल है या बिल्स। लोग कहते हैं संगीत साधना है, मैं कहता हूँ गोल्फ साधना है, खेल-का-खेल, साधना-की-साधना।
लेकिन साहब पिछले हफ़्ते अपने पर अजीब गुज़री, अपना
बचपन का लंगोटिया ब्रह्मस्वरूप उर्फ़ पिल्लू भारत से आया हुआ था। मैं उसे अपनी
गोल्फ क्लब में ले गया और बता रहा था, 'आदमी एटम बम बनाने से सुपर पावर नहीं बनता,
उसके लिए गोल्फ खेलना भी आना चाहिए। जैसे अमरीकी प्रेसीडेंट खेलते हैं। न्यूक्लिअर
क्लब की सदस्यता लेने से पहले गोल्फ क्लब के सदस्य तो बनो। ब्रह्मस्वरूप ने हरा-भरा
मैदान क्या देखा- अपनी जेब से छोटी-सी लकड़ी का एक टुकड़ा निकाला और बोला, 'ज़रा
अपना डंडा देना।' मैंने पूछा, 'क्या मतलब? बोला, 'गुल्ली-डंडा खेलेंगे।` गुल्ली कोर्स सुनकर मेरे मुँह का ज़ायका कुछ ऐसा
बिगड़ा कि उसके बाद 'टी` पर बॉल रखूँ तो गुल्ली नज़र आए...। ब्रह्मस्वरूप बोलता जा रहा था प्रेमचंद जी ने कहानी लिखी गुल्ली-डंडा पहली ही लाइन 'हमारे अंग्रेज़ दोस्त मानें न मानें, मैं तो यह ही कहूँगा, गुल्ली डंडा सब खेलों का राजा है। न लान की ज़रूरत है, न कोर्ट की, न नेट की, न थापी की। मज़े से किसी पेड़ से एक टहनी काट ली, गुल्ली बना ली, और दो आदमी भी आ गए तो खेल शुरू।' भारत में आबादी बढ़ रही है, हरियाली कम हो रही है, हालत यह हो गई है गुल्ली-डंडा खेलने तक के मेदान नहीं रहे। गोल्फ कल्चर हमारी गुल्ली कल्चर को रौंदती जा रही है। हमने आपके देश में एक गुल्ली कोर्स बनाने का सुझाव क्या रख दिया जनाब कल्चरल शॉक से उबर नहीं पा रहे। वैसे वह बता दूँ गुल्ली कोर्स हो तो लोगों का पेट भी न निकले...क्यों कि डंडे से दूरी नापते हुए अच्छी कसरत हो जाए...। |
२४ फरवरी २००७ |