अगर आप बकरी की लेंड़ी के
ऊपर भाषा से अलंकृत कोई कविता लिखते हैं तो क्या आप उम्मीद
कर सकते हैं कि उसे कोई प्रकाशक या संपादक प्रकाशित कर आपको
उपकृत करेगा? संभवतः नहीं।
परंतु निजी ब्लॉगों के
ज़रिए आप इंटरनेट पर इस तरह की तमाम प्रयोग धर्मी रचनाओं
को धड़ल्ले से प्रकाशित कर सकते हैं। और, न सिर्फ़
प्रकाशित कर सकते हैं, बल्कि इस तरह की आपकी ऑफ़-बीट रचनाओं
और सर्वथा नवीन रचनाशैली के प्रशंसकों और पाठकों की कतारें
भी लग सकती हैं। और, जो बकरी की लेंड़ी पर कविता का जो उदाहरण दिया गया है,
वो कोई काल्पनिक नहीं है। बकरी की लेंड़ी
http://azdak.blogspot.com/2007/06/blog-post_14.html
नामक यह कविता, मशहूर साहित्यकार और फ़िल्म समीक्षाकार
प्रमोद सिंह ने अपने ब्लॉग 'अजदक' पर लिखा और उस कविता पर
बहुत से पाठकों ने उत्साहजनक टिप्पणियाँ भी कीं. जिनमें
शामिल हैं – हिंदी के स्थापित और बहुचर्चित व्यंग्यकार
आलोक पुराणिक – जिनकी तारीफ़ के ये शब्द थे –
''क्या कहने, लिटिल लेंड़ी में क्या अनुप्रास अलंकार साधा
है प्रमोदजी। वाह, वाह''
निजी ब्लॉगों पर संपादक,
प्रकाशक और मालिक स्वयं रचनाकार होता है। अतः यहाँ प्रयोग
अंतहीन हो सकते हैं, प्रयोगों की कोई सीमा नहीं हो सकती।
यही कारण है कि जहाँ आलोक पुराणिक
http://alokpuranik.com/
नित्य प्रति अपनी व्यंग्य रचनाओं को अपने ब्लॉग में
प्रकाशित करते हैं तो दूसरी ओर भारतीय प्रसाशनिक सेवा की
लीना महेंदले
http://hai-koi-vakeel-loktantra-ka.blogspot.com
सामाजिक सरोकारों से संबंधित अपने अनुभवों को लिखती हैं।
हिंदी ब्लॉगों की संख्या में पिछली छमाही में तेज़ी से
वृद्धि हुई है। पत्रकारों व स्थापित लेखकों के आने से
ब्लॉगों के पाठक संख्या में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है।
प्रिंट मीडिया में भी हिंदी ब्लॉगों के चर्चे होने लगे
हैं। कथादेश में अविनाश नियमित कॉलम लिखते हैं। कादंबिनी
का अक्तूबर अंक हिंदी ब्लॉग विशेषांक था, जिसमें बालेंदु
दाधीच
www.balendu.com/hindi_blogs_article_by_balendu_sharma_dadhich.htm
ने विस्तार से, बड़े ही शोधपरक अंदाज़ में हिंदी ब्लॉगों
के बारे में बताया है।
आज हिंदी ब्लॉग जगत विषयों
की प्रचुरता से संबन्न हो चुका है, और इसमें दिन प्रतिदिन
इज़ाफ़ा होता जा रहा है। इरफान का ब्लॉग सस्ता शेर
http://ramrotiaaloo.blogspot.com/ प्रारंभ होते ही
लोकप्रियता की ऊँचाइयाँ छूने लगा। इसमें उन आम प्रचलित शेरों,
दोहों, और तुकबंदियों को प्रकाशित किया जाता है, जो हम आप
दोस्त आपस में मिल बैठकर एक दूसरे को सुनाते और मज़े लेते
हैं। ऐसे शेर किसी स्थापित प्रिंट मीडिया की पत्रिका में
कभी प्रकाशित हो जाएँ, ये अकल्पनीय है। सस्ता शेर में
शामिल शेर फूहड़ व अश्लील कतई नहीं हैं, बस, वे अलग तरह
की, अलग मिज़ाज में, अल्हड़पन और लड़कपन में लिखे, बोले
बताए और परिवर्धित किए गए शेर होते हैं, जो आपको बरबस ठहाका
लगाने को मजबूर करते हैं।
तकनालाजी पर भी हिंदी
ब्लॉग लिखे जा रहे हैं। ई-पंडित
http://epandit.blogspot.com/
सेल गुरु
http://cell-guru.blogspot.com/
और दस्तक
http://nahar.wordpress.com/
नाम के चिट्ठों में तकनालाजी व कंप्यूटरों में हिंदी में काम करने के बारे में
चित्रमय आलेख होते हैं। हालाँकि तकनालाजी विषयों पर अभी
हिंदी में ब्लॉग कम हैं। बहुतेरे हिंदी ब्लॉग कविता, हिंदी
साहित्य, व्यंग्य और कहानी पर ही हैं। बहुत से ब्लॉगों में
समसामयिक घटनाओं पर त्वरित टिप्पणियाँ प्रकाशित की जाती
हैं।
कुछ हिंदी ब्लॉग सामग्री
की दृष्टि से अत्यंत उन्नत, परिष्कृत और उपयोगी भी हैं।
जैसे, अजित वडनेकर का शब्दों का सफर
http://shabdavali.blogspot.com/
. अपने इस ब्लॉग में अजित हिंदी शब्दों की उत्पत्ति के
बारे में शोधपरक, चित्रमय, रोचक जानकारियाँ देते हैं जिसकी
हर ब्लॉग प्रविष्टि गुणवत्ता और प्रस्तुतिकरण में लाजवाब
होती हैं। इस ब्लॉग की हर प्रविष्टि हिंदी जगत के लिए एक
घरोहर के रूप में होती हैं। मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर
के पत्रकार रमाशंकर अपने ब्लॉग सेक्स क्या
http://sexkya.blogspot.com/
में यौन जीवन के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियाँ
देते हैं। बाल उद्यान
http://baaludyan.blogspot.com/
में बाल रचनाएँ होती हैं तो रचनाकार
http://rachanakar.blogspot.com/
में हिंदी साहित्य की हर विधा की रचनाएँ।
अर्थ शास्त्र, शेयर बाजार संबंधी गूढ़ जानकारियाँ अपने
अत्यंत प्रसिद्ध चिट्ठे वाह मनी
http://wahmoney.blogspot.com/
में कमल शर्मा नियमित प्रदान करते हैं। वे अपने ब्लॉग
में निवेशकों के लाभ के लिए समय समय पर टिप्स भी देते हैं
कि कौन से शेयर ख़रीदने चाहिए और कौन से निकालने। शेयर
मार्केट में उतार चढ़ाव की उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ
अब तक पूरी खरी उतरी हैं।
चूँकि ब्लॉग प्रकाशनों
में संपादकीय कैंची सर्वथा अनुपस्थित होती है, अतः हिंदी
ब्लॉग जगत भी भविष्य में अवांछित, अप्रिय सामग्रियों से
भरने लगेगा इसमें कोई दो मत नहीं। हालांकि इस तरह की ब्लॉग
सामग्री हाल फिलहाल नगण्य ही है, मगर जब यह माध्यम चहुँ ओर
लोकप्रिय होने लगेगा तो इसमें फूहड़ता का समावेश अवश्यंभावी
है। कुछ ब्लॉग पोस्टों में बेनामी टिप्पणियों के माध्यम से
इसका आग़ाज़ हो ही गया है।
क्या आपको भड़ास, कबाड़खाना, अखाड़े का उदास मुदगर,
नुक्ताचीनी, नौ-दौ-ग्यारह, विस्फोट, आरंभ, उधेड़-बुन,
बतंगड़, चवन्नी चैप, खंभा इत्यादि नामों में कोई चीज़ एक-सी
नज़र आती है? जी हाँ, ये सभी हिंदी ब्लॉगों के नाम हैं और
इनमें से तो कई बेहद प्रसिद्ध और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले
हिंदी ब्लॉगों में से हैं। उदाहरण के लिए, हिंदी के पहले
ब्लॉग का नाम ही है – नौ दो ग्यारह!
और, अब तो हिंदी में लिखे
जा रहे इन ब्लॉगों को रोमन (अंग्रेज़ी) लिपि में
http://chitthagajat.com
पर तो पढ़ा ही जा
सकता है, भारतीय भाषाओं की अन्य लिपियों
http://bhomiyo.com/xliteratepage.aspx
पर मसलन गुजराती,
बंगाली, पंजाबी, तेलुगु इत्यादि में भी पढ़ा जा सकता है।
तो फिर देर किस बात की? सैकड़ों की संख्या में नित्य
प्रकाशित हिंदी ब्लॉगों की सामग्रियों का रसास्वादन लेने
के लिए इन ब्लॉग अड्डों में अभी ही जा देखें-
http://chitthajagat.in
, http://blogvani.com,
http://narad.akshargram.com
२४ जनवरी
२००७
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