4. इंटरनेट, ई-मेल और वेब
पब्लिशिंग
आज विंडोज़ का अधुनातन 'वर्शन' (version)
है विंड़ोज़ 2000। इसे 'विंडोज़ एनटी 5.0' कहा जाता है। इसी के अनुरूप माइक्रोसॉफ्ट
कंपनी ने एम.एस. ऑफ़िस के अंतर्गत 'ऑफ़िस 2000' भी रिलीज़ किया है। इसमें विश्व की
सभी जटिलतम लिपियों को समाहित किया गया है। इनमें प्रमुख हैं - अरबी, हिब्रू, थाई,
देवनागरी और तमिल। वस्तुत: अभी तक 'विंडोज़' के अंतर्गत विभिन्न भाषाओं में मात्र
कुंजीयन (keying)
की सुविधा वैकल्पिक रूप में मौजूद थी, किंतु 'विंड़ोज़ 2000' के आगमन के कारण
स्थानीय भाषाओं में 'इंटरफेस' की सुविधा भी उपलब्ध हो गई है अर्थात अब हम देवनागरी
में न केवल संदेशों का आदान-प्रदान कर सकते हैं, बल्कि पाठों के कुंजीयन के साथ-साथ
'मेन्यु' (menu)
भी देवनागरी में देख सकते हैं। 'युनिकोड' पर आधारित होने के कारण इसमें 'इस्की'
कोडिंग प्रणाली का समावेश भी अनायास ही हो गया है। यद्यपि ई-मेल और वेब प्रकाशन की
सुविधा 'विंड़ोज़-95' और 'विंड़ोज़-98' में भी उपलब्ध थी, लेकिन अब ये कार्य बहुत
सरलता से भारतीय लिपियों में भी किए जा सकेंगे।
सी-डैक द्वारा विकसित 'आई-लीप', 'लीप-ऑफ़िस
2.0' तथा आर.के.कंप्यूटर्स द्वारा विकसित 'सुविंड़ोज़' 2.0' के माध्यम से न केवल
ई-मेल के संदेशों का आदान-प्रदान देवनागरी में किया जा सकता है, बल्कि वैब-पेज भी
हिंदी में लिखा जा सकता है, किंतु जहाँ आई-लीप और 'लीप-ऑफ़िस 2.0' में यह सुविधा
सभी भारतीय भाषाओं में सुलभ हैं, वहाँ 'सुविंड़ोज़ 2.0' में यह सुविधा केवल
देवनागरी में हैं, किंतु सी-डैक द्वारा 'हॉटमेल' के समकक्ष हिंदी और मराठी में 'मल्टीमेल'
की सुविधा भी प्रदान की गई है। यह निश्चय ही क्रांतिकारी कदम है। इसके माध्यम से न
केवल संदेशों का आदान-प्रदान हिंदी में किया जा सकता है, बल्कि 'कमांड' और 'मेन्यु'
भी हिंदी में ही दिए गए हैं। उपयोक्ता अपना 'पासवर्ड' भी हिंदी में दे सकता है।
इंटरनेट पर इसका पता इस प्रकार है :
http:\\www.gist.cdac.org
रोमन लिपि के बढ़ते प्रभाव के कारण
विश्व की अनेक लिपियाँ समाप्तप्राय हो गई हैं, किंतु भारतीय भाषाओं के संदर्भ में
स्थितियाँ इतनी निराशाजनक नहीं हैं। सी-डैक ने इस क्षेत्र में भी चुनौती को स्वीकार
किया है और मल्टी-मीडिया वीडियो कार्यों की एक पूरी श्रृंखला विकसित कर दी है। इसके
अंतर्गत 'लिप्स' (Language
Independent Program Sub–titles) नाम से एक
सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है, जिसके माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं में फ़िल्मों के
उप-शीर्षक (Sub–titles)
हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में तैयार किए जा सकते हैं। इसके फलस्वरूप अपने
ड्राइंग-रूम में बैठकर अपनी पसंद की किसी भी भारतीय भाषा में विदेशी फ़िल्में भी
देखी जा सकती हैं। टीवी पर भारतीय भाषाओं में समाचार-वाचन के लिए 'मल्टी प्रॉम्प्टर
(Multi-Prompter)
का विकास किया गया है जिसके ज़रिए समाचार-वाचक बिना काग़ज़ देखे समाचार पढ़ सकता है
और स्क्रालिंग की गति को आवश्यकतानुसार नियंत्रित भी कर सकता है। 'मूव(Move)' (Multiscript
Oneline Video Editor) एक ऐसा बहुभाषी अक्षर
जनरेटर है, जिसके ज़रिए दूरदर्शन और फ़िल्मों में पात्रों के नाम भारतीय भाषाओं में
अंकित किए जा सकते हैं। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में 'बटरफ्लाई (Butterfly)
नाम से डबिंग स्टेशन भी विकसित किया गया है और हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में
सीडी बनाने के लिए 'केमेलियन (chameleon)'
नामक साफ्टवेयर का विकास किया गया है। इसकी सहायता से किसी भी वीडियो को 'सीडी' में
रूपांतरित किया जा सकता है।
इसके अलावा, 'मोटरोला' कंपनी ने सन
1997 में देवनागरी और गुजराती में पेजर का निर्माण भी किया है और भारतीय भाषाओं में
पेजर टैक्नोलॉजी के विकास के लिए ('ISCLAP(
Indian Standard Code for Language Paging) के
मानक का विकास किया था और यह मानक ISCII
के ही अनुरूप है। इसके ज़रिए संदेशों का आदान-प्रदान पेजर पर भी हिंदी, मराठी और
गुजराती में करना संभव हो गया है।
5. कृत्रिम बुद्धि (Artificial
Intelligence) पर आधारित विशेषज्ञ
प्रणालियों (Expert Systems)
का विकास
कंप्यूटर टैक्नोलॉजी के अंतर्गत
प्राकृतिक भाषा संसाधन (Natural
Language Processing) के क्षेत्र में विश्वभर
में अनेक विशेषज्ञ प्रणालियों (³expert
systems) का विकास किया गया है, जिनके माध्यम
से कंप्यूटर साधित भाषा शिक्षण, मशीनी अनुवाद और वाक्-संसाधन (Speech
Processing) से संबंधित विभिन्न अनुप्रयोग
विकसित किए गए हैं। इस संबंध में आई.आई.टी, कानपुर के सहयोग से हैदराबाद
विश्वविद्यालय में 'अनुसारक' नाम से एक ऐसी स्वचलित मशीनी अनुवाद प्रणाली का विकास
किया गया है जिसके माध्यम से विभिन्न भारतीय भाषाओं में परस्पर 'शाब्दिक अनुवाद' की
व्यवस्था है। यह तो स्पष्ट ही है कि सभी भारतीय भाषाओं में वाक्य विन्यास एक जैसा
है। यदि कहीं कुछ अंतर हैं भी तो वह अंतर इतना बड़ा नहीं हैं कि उससे 'अर्थ' का
'अनर्थ' हो जाए। यही कारण है कि अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद के लिए 'अनुसारक'
प्रणाली सफल सिद्ध नहीं हो पाई है, किंतु भारतीय भाषाओं के संदर्भ में यह प्रणाली
अपनी सीमाओं के बावजूद काफ़ी हद तक सफल मानी जा सकती है। आजकल यह कार्य आई.आई.टी
हैद्राबाद में प्रो. राजीव संगल के निर्देशन में किया जा रहा है। अब तक 'अनुसारक'
प्रणाली तेलुगु-हिंदी, कन्नड़-हिंदी, बंगला-हिंदी, मराठी-हिंदी और कुछ हद तक
पंजाबी-हिंदी में भी विकसित की गई है।
इसके अलावा, राजभाषा विभाग, गृह
मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से सी-डैक के 'ए ए आई' ग्रुप ने भी 'मंत्र' (Machine
assisted Translation Tool) नाम से एक ऐसी
स्वचालित मशीनी अनुवाद प्रणाली विकसित की है जिसके माध्यम से नियुक्ति और पदोन्नति
से संबंधित भारत के राजपत्र की अधिसूचनाओं को अंग्रेज़ी से हिंदी में अनूदित किया
जा सकता है। यद्यपि इसका प्रयोग-क्षेत्र अत्यंत सीमित है, किंतु अधिसूचनाओं की जटिल
वाक्य रचनाओं को देखते हुए यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। इंटेल कंपनी की अनुशंसा
पर 'स्मिथसोनियन' संस्था ने इसे सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यंत साहसिक
और सराहनीय कदम के रूप में स्वीकार किया है। इसके अलावा, इसी ग्रुप ने राजभाषा
विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से 'लीला प्रबोध' और 'लील प्रवीण' नामक
स्वयं शिक्षक पैकेज भी विकसित किए हैं। ये पैकेज पूर्णत: मल्टीमीड़िया कंप्यूटर
प्रणाली पर आधारित हैं और इनमें ध्वनि (speech),
चित्रों (graphics)
और एनिमेशन का भरपूर उपयोग किया गया है। इनमें अनेक प्रकार के वीडियो क्लिपिंग्स भी
रखे गए हैं ताकि शिक्षार्थी बड़े जीवंत रूप में और सहजता से इसके ज़रिए हिंदी सीख
सकें। 'हिंदी प्रवीण' का निर्माण भी अंतिम चरण में हैं।
6. हिंदी और अन्य भारतीय
भाषाओं में कंप्यूटर संबंधी विभिन्न अनुप्रयोग
भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर
टैक्नोलॉजी के विकास के कारण आज जटिल से जटिल कंप्यूटर संबंधी अनुप्रयोगों में
हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का व्यापक रूप से प्रयोग किया जा रहा है। भारतीय रेल
द्वारा आरक्षण व्यवस्था के कंप्यूटरीकरण के कारण आम आदमी को बहुत सुविधा हो गई है
और अब यह सुविधा एक विशेष टैक्नोलॉजी के माध्यम से हिंदी में भी सुलभ करा दी गई है।
इस कार्य में 'सी एम सी' और 'क्रिस' जैसी वैज्ञानिक संस्थाओं का प्रमुख योगदान है।
भारत में होने वाले आम चुनावों के लिए करोड़ों मतदाताओं की सूचियाँ कंप्यूटर के
माध्यम से हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में तैयार की गई हैं। भारतीय चुनाव आयोग
द्वारा वितरित अधिकांश परिचय-पत्र भी भारतीय भाषाओं में तैयार किए गए हैं।
महाराष्ट्र बिजली बोर्ड की रसीदें कंप्यूटर के माध्यम से मराठी में छापी जा रही
हैं। उड़ीसा के पटवारी अपनी ज़मीन से संबंधित रिकार्ड कंप्यूटर पर उड़िया में तैयार
कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अनेक सरकारी कार्य क्रमश: तेलुगु और तमिल
में संपन्न किए जा रहे हैं।
आज अनेक गौरव-ग्रंथ और
महत्वपूर्ण सूचनाएँ भी सीडी के रूप में भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होने लगी हैं।
इनमें प्रमुख हैं : सी-डैक द्वारा विकसित 'ज्ञानेश्वरी' भारतीय चुनाव आयोग द्वारा
तैयार की गई मतदाता सूचियाँ, कुछ निजी संस्थाओं द्वारा विकसित 'पंचतंत्र की कथाएँ'
और गेटवे मल्टीमीडिया इंडिया लिमिटेड, अहमदाबाद द्वारा विकसित विशाल
अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश।
7. निष्कर्ष:
आज हम अगली सदी और सहस्त्राब्दि (millennium)
की दहलीज़ पर खड़े हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम हिंदी और अन्य भारतीय
भाषाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करें और उनका सामना करने के लिए
आवश्यक उपाय करें। इस संदर्भ में मैं कुछ सुझाव उपस्थित विद्वज्जनों के सामने रखना
चाहूँगा। मुझे विश्वास है कि यदि हमने इन सुझावों और प्रस्तावों के अनुरूप अपनी
कार्य योजना बनाई तो नई सदी और सहस्त्राब्दि में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का
भविष्य निश्चय ही उज्ज्वल होगा:
1. हिंदी के प्रमुख गौरव-ग्रंथों (classics)
को चिह्नित करना और उन्हें सीडी के रूप में उपलब्ध कराना।
2. हिंदी में ओ.सी.आर.(Optical
Character Recognition) का निर्माण।
3. अधिक से अधिक वैब ठिकानों में यथासंभव अधिकारिक सामग्री हिंदी और अन्य भारतीय
भाषाओं में उपलब्ध कराना।
4. हिंदी में स्पीच इनपुट-आउटपुट सिस्टम विकसित करना।
5. पूर्णत: स्वचालित कंप्यूटर साधित मशीनी अनुवाद प्रणाली का विकास।
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