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साहित्यिक निबंध


समय का समरूप बरगद
-डॉ राजकुमार मलिक

 


भारतीय बरगद का पेड़ फाइकस बैंगा‍लेंसिस, जिसकी शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्‍से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। जड़ों से और अधिक तने और शाखाएं बनती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्‍वर माना जाता है और यह भारत के इतिहास और लोक कथाओं का एक अविभाज्‍य अंग है। आज भी बरगद के पेड़ को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिन्‍दु माना जाता है और गाँव की परिषद इसी पेड़ की छाया में बैठक करती है। यह पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इस पर अनेक जीवों और पक्षियों का जीवन निर्भर रहता है। यह पेड़ कभी नष्ट नहीं होता है।

समय का समरूप

बरगद समय का समरूप वृक्ष है। समय पीछे अतीत को छोड़ता है और भविष्य की ओर बढ़ता है। समय वर्तमान में तो हमारे सामने रहता ही है। यही हाल बरगद का है। वह न जाने कब से पृथ्वी में बहुत गहरे अपनी जड़ें जमाए, एक के बाद एक शाखा को बढ़ाता है और उससे विकसित अपनी जड़ों को पृथ्वी में स्तंभ के रूप में गाड़ता है और आगे बढ़ता जाता है। कलकता में विक्टोरिया मेमोरियल के पास शताब्दियों से खड़ा बरगद अपने हजारों तनों, शाखाओं और जड़ों से भूत-वर्तमान-भविष्य तीनों कालरूपों को प्रतीकार्थ देता देखा जा सकता है। संभवत: इसीलिए इसका उपयोग लौकिक तथा पारमार्थिक दोनों रूपों में होता है।

भारतीय संस्कृति में वटवृक्ष

प्रलयकाल में जब सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तब भगवान माधव-मुकुंद बालरूप में जहाँ निश्चिंत शयन करते दिखाई दिए थे, वह वटवृक्ष का एक पत्ता ही था- ऐसा पुराण बताते हैं- ‘जगत वंटे तं पृथुमं शयानं बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि’। गीता में भगवान ने कहा है कि मैं वृक्षों में वट वृक्ष हूँ। वटवृक्ष की अनश्वरता, उसकी सुदीर्घ- जीविता इसे धार्मिक- आध्यात्मिक संदर्भों से जोड़ती है। सावित्री-सत्यावन की कथा में मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की जो अभिलाषा अभिव्यक्त हुई थी, उसे लोकमानस ने वट-सावित्री-कथा से जोडक़र अमरत्व की प्राप्ति की दिशा में धार्मिकता से सम्पन्न कर दिया है। प्रयाग में संगम के पास एक अक्षयवट अभी भी विद्यमान है जिसकी छाया में तमाम ऋषि पर्व पर एकत्रित हुए थे और भारद्वाज ऋषि ने उस पावन रामकथा को सुनाया था, जिसे तुलसीदास ने लोकभाषा में निबद्ध किया था। तुलसी दास कथा के आरंभ में इस वटवृक्ष का गुणानुवाद करना नहीं भूले थे। प्राचीन ऋषि जब सृष्टि की चर्चा करते थे, तो उनको यही वटवृक्ष उपयुक्त अप्रस्तुत के रूप में मिलता था, जिसकी जड़ें ऊपर और शाखाएँ नीचे की ओर कल्पित की गईं थीं। वटवृक्ष की महिमा लौकिक भी है। इतिहास, लोककथा, आयुर्वेद, वनस्पतिशास्त्र आदि में इसकी चर्चा फैली हुई है। दैनिक जीवन में जब लोक किसी प्रेरणादायी व्यक्ति, संरक्षण, आचार्य का विवरण देना चाहता है, तो उसके व्यक्तित्व को ‘वटवृक्ष’ कहकर संतुष्ट होता है। नागार्जुन जैसे जुझारू तथा लोक से एकरस रचनाकार के लिए लोक ‘बाबा बटेसरनाथ’ के बिना अधूरा है।

अजब पेड़ की गजब कहानी

पेड़ों के साथ कई दिलचस्प कहानियाँ जुड़ी हैं। यह संसार बड़ा रोचक और तिलस्मी है। अब बरगद को ही लें। यह पेड़ इतना व्यापक घेरा बना लेता है कि यह किसी जंगल-सा आभास देता है। कहा जाता है कि भारत पर आक्रमण करने आए सिकंदर की सात हजार सैनिकों वाली सेना को जब एक बार बारिश से बचने की जरूरत पड़ी, तो उसने एक बरगद के नीचे शरण ली। उन विदेशी सैनिकों को यह जानकर बेहद अचरज हुआ कि वे जहाँ खड़े थे, वह कोई जंगल नहीं बल्कि एक ही पेड़ का घेरा था! निरंतर अपना घेरा बढ़ाने के कारण ही बरगद को अमरत्व, दीर्घायु और अनंत जीवन के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। इसे विस्तारवादी मानसिकता का प्रतीक भी कहा जा सकता है।

सदा विकासशील

कवि एडवर्ड थॉम्पसन ने बरगद की तुलना नित नई जमीन हड़पकर अपना साम्राज्य फैलाने वाले राजा से की है। उसके राजमहल में नए-नए कक्ष और स्तंभ स्थापित करने की भूख कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। जो भी हो, बरगद यह संदेश तो देता ही है कि जीवन सदा चलायमान और परिवर्तनशील है। लेकिन जड़ें जमाने का अर्थ जड़वत होना नहीं है। जरा बरगद को अच्छी तरह देखिए, क्या आसन जमाए बैठे किसी धीर-गंभीर ज्ञानी बुजुर्ग का आभास नहीं देता यह? जिसके कदमों में बैठने मात्र से शांति का आभास हो। बच्चों के लिए तो इसकी जटाएँ ‘टारजन’ बनने की प्रैक्टिस करने के लिए आदर्श सुविधा प्रदान करती हैं।

वृक्ष या बड़ा बुजुर्ग

इंडोनेशिया में बरगद को पेड़ों को बड़ा-बुजुर्ग मानते हुए इन्हें बड़ी श्रद्धा से देखा जाता है। रास्ते में कोई बरगद दिख जाए, तो वाहन सवार उसका अभिवादन करने के लिए हॉर्न बजाकर निकलते हैं। चीन में तो करीब हजार साल पहले फुझू नामक शहर के महापौर को बरगद इतना रास आया कि उन्होंने नागरिकों को फरमान जारी कर दिया कि वे हर जगह बरगद लगाएँ। नतीजा यह हुआ कि शहर का नाम ‘बरगदों वाला शहर’ पड़ गया।

अमेरिका में बरगद

भारतीय बरगद ने कुछ ज्यादा ही लंबा सफर तय किया है। १८७३ में यह अमेरिका के हवाई द्वीप जा पहुँचा। तब यह आठ फुट ऊँचा था और इसका एक ही तना था। आज यह ५० फुट से ज्यादा कद हासिल कर चुका है और इसके १२ तने हैं। जाहिर है, लंबे सफर के बाद अमेरिका की आबोहवा इसे रास आ गई है।

धार्मिक आस्था

मान्यता है कि अक्षय वट की रक्षा तीनों देव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) करते हैं। इसके मूल में चौमुखी ब्रह्म, मध्य में भगवान विष्णु और अग्रभाग में त्रिलोकी नाथ शिव का वास माना जाता है। इस कारण बरगद की विशेष रूप से पूजा होती है। महाभारत में भी इसकी चर्चा की गई है। महर्षि वाल्मीकि और तुलसीदास के अलावा मेदिनी कोश में अक्षय वट के बारे में बताया है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में प्रयाग के पास एक बेहद पुराने और पवित्र वट वृक्ष का उल्लेख किया है। कुरुक्षेद्ध में वट वृक्ष के नीचे ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। आज भी वट सावित्री त्योहार के दिन भारतीय महिलाएँ न केवल इसकी पूजा करती हैं, बल्कि व्रत भी रखती हैं। हिंदू धर्म में विशेष स्थान देकर इसकी रक्षा की कामना की गई है। भारत के अलावा, श्रीलंका, जावा, सुमात्रा, चीन, जापान, नेपाल, मलेशिया आदि में भी इसे काफी महत्व प्रदान किया गया है। बरगद के पेड़ को हिंदू और बौद्ध धर्मों में बहुत अहम स्थान दिया गया है। हिंदू इसे वटवृक्ष भी कहते हैं। भगवान बुद्ध ने जिस बोधिवृक्ष के नीचे बुद्धत्व प्राप्त किया था, वह बरगद का पेड़ ही था।

अब बुढ़ापा रोकेगा बरगद

अपने कई चिकित्सीय गुणों के कारण आयुर्वेद चिकित्सा और भारतीय जीवन पद्धति का चहेता रहा बरगद अब बुढ़ापा भी रोकने में कारगर साबित होगा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में चल रहे शोध में में सामने आया है कि इसकी हवाई जड़ों में एँटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा होता है। यानी आयुर्वेदिक औषधि की खान माने जाने वाले बरगद पर अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी फिदा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जैव रसायन विभाग के अध्यक्ष प्रो. बेचन शर्मा के अनुसार यहाँ किए जा रहे प्रयोग अगर सफल रहे, तो यकीनन बरगद इंसान में बुढ़ापा रोकने का सर्वसुलभ व सस्ता उपाय साबित होगा। उन्होंने बताया कि शरीर के अंदर विभिन्न मार्गों से स्वतंत्र मूलक या फ्री रैडिकल्स पहुंचते रहते हैं। यह विषाक्त फ्री रैडिकल्स विभिन्न बीमारियों व असामान्य शारीरिक स्थितियों के कारक होते हैं। इसमें शरीर में झुर्रिया पडऩा, नींद न आना, बालों का जल्दी झडऩा या सफेद पड़ जाना, पसीना आना, सहनशक्ति की कमी, बेवजह उत्तेजना, निर्णय लेने की अक्षमता, संवेदनशीलता का कम हो जाना जैसी स्थितियाँ शामिल हैं। शरीर के उम्रदराज दिखने के पीछे भी इन्हीं फ्री रेडिकल्स को जिम्मेदार माना जाता है। प्रो. शर्मा के अनुसार शरीर की कोशिकाएँ एँटी ऑक्सीडेंट्स के माध्यम से इन फ्री रेडिकल्स का प्रबंधन करती हैं।

एक वृक्ष अनेक नाम

प्राचीन साहित्य में इस पेड़ के कई नाम दिए गए हैं जैसे-न्यग्रोध, बहुपाद, रक्तफल, शुंगी, शिग्रक्षीरी। हिंदी में बरगद, बंगाली में वटवृक्ष, पंजाबी में बूहडा, मगधी में बट, गुजराती में बडबडला, सिंधी में नुग, मलयालम में आल-फेरा, फारसी में दरख्तेरीश, अरबी में जालूज्जवानिब, कबीरू, अश्जार और अंग्रेजी में इसे बनयान ट्री कहा जाता है।

३० मई २०११

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