अन्य देशों के शीर्षस्थ
नेताओं के संदेश पढ़े जा रहे हैं। सूरीनाम की सरकार ने डाक टिकट
जारी किए हैं। उद्बोधन में दोनों देशों के प्रगाढ़ संबंधों
और भाषाई सौहार्द्र के पुराने रिश्तों का उल्लेख बारबार किया
जा रहा है।
भारत के राजमंत्री अपने भाषण में कहते हैं 21 वीं
शताब्दी में हिन्दी के समक्ष एक ओर जहां अनेक चुनौतियां हैं,
वहीं इसके लिए अवसर भी बहुत है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी का
रिश्ता हिन्दी से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। हिन्दी को हम संयुक्त
राष्ट्रसंघ की सातवीं भाषा बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मॉरिशस
में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना हो ही चुकी है।
पोलैण्ड से आए प्रोब्रिस्की का
मर्मस्पर्शी उद्बोधन लोगों के मन को छू रहा है, वे कह रहे हैं,
हम जो हैं भाषा के कारण है। भाषा की भूमिका हमारे जीवन में
बुनियादी है। विदेशों में हम हिन्दी का व्यवहार मित्र भाषा के रूप
में करते हैं। उनके अनुसार हिन्दी भाषा का प्रयोग दो प्रकार के
लोग करते हैं हिन्दी मातृ भाषी और हिन्दी मित्र भाषा भाषी . .
.श्रोता करतल ध्वनि से प्रसन्नता ज़ाहिर कर रहे हैं।
भीड़ फिर कटती है . . .ऊपर हॉल में
सूरीनाम के राष्ट्रपति वेनेत्शियान, श्री दिग्विजय सिंह और उनके
नेतृत्व में आया शिष्टमंडल तथा भारतीय संसद सर्वश्री
वेदगोपाल रेड्डी के साथ कनवेन्शन हाल में 'विश्व हिन्दी पुस्तक
मेला हमारी धरोहर : हिन्दी हमारी भाषा' प्रौद्योगिकी का
उद्घाटन करते हैं। भूतपूर्व निदेशक, राज भाषा रेलवे बोर्ड
माइक्रोसॉफ्ट भाषा कन्सल्टेन्ट श्री विजय कुमार मलहोत्रा जी
कम्प्यूटर सेशन और पुस्तक प्रदर्शनी के बारे में सूरीनाम के
राष्ट्रपति वेनेत्शियान और जनता को विस्तारपूर्वक बताते हैं।
राष्ट्रपति वेनेत्शियान प्रसन्नतापूर्वक सिर हिलाते हुए कहते हैं,
'सूरीनाम में भाषा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत काम है, आशा
है भविष्य में हमें आप लोगों का सहयोग और मार्गदर्शन
मिलता रहेगा।' विजय जी मुस्करा कर उनके विचारों का स्वागत करते
हैं। नीचे हॉल में कोई अन्य कार्यक्रम चल रहा है। होटल
तोरारिका के एनेक्सी में कॉन्फ्रेन्स की तैयारी हो रही है। भीड़ फिर
कटती है। लोग बिखरने लगते हैं।
सारे दिन कोईनकोई कार्यक्रम
चल रहा है। लोग अपनीअपनी पसंद के कार्यक्रम में रूचि ले रहे
हैं। कुछ सैलानी तबियत के लोग हैं सूरीनाम के अन्य पर्यटन के
स्थलों का आनंद लेना चाहते हैं। वे चुपचाप कैमरा कंधे पर
लटकाए हॉल में से खिसक लेते हैं।
अशोक चक्रधर होटल तोरारिका के
एनेक्सी के एक कमरे में 4 जून से प्रतिदिन 'न्यूज़बुलेटिन'
निकालने के लिए प्रेस ऑफिस बना चुके हैं। अशोक जी और उनके
सहयोगियों को रिपोर्ट तैयार करने और व्यवस्थित होने कुछ
आरंभिक कठिनाइयां आ रही हैं। कभी फोटो कॉपियर की परेशानी है
तो कभी कम्प्यूटर की तो कभी समय से रिपोर्ट नहीं आ पा रही है।
डिजीटल कैमरा का प्रयोग हो रहा है। देखतेदेखते धीरेधीरे सब
कुछ व्यवस्थित होने लगता है।
चार डेस्क टॉप कम्प्यूटर, प्रिंटर के
साथ कमरे में लग गए हैं, सभी कम्प्यूटर पर एक साथ काम हो रहा
है। अशोक चक्रधर, राजमनी, घनश्याम, अनिल शर्मा कम्प्यूटर पर
बैठे रातरात भर न्यूज तैयार कर रहे हैं (4 जून से)। रिपोर्टर
पद्मेश गुप्त और अनिल शर्मा न्यूज़ रूम से निकल कर मुस्तैदी से
फोटो ले रहे हैं और 'रयूटर' की तरह प्रतिपल का रिपोर्ट न्यूज रूम
को भेजते जा रहे हैं। केबीएलसक्सेना जी न्यूज़ रूम का
प्रबंधन अपने हाथ में ले लेते हैं तो सबके खानेपीने का
प्रबंध, फोटो कॉपी करना, न्यूज़ पेपर को बाइंड करना, डिस्पैच
करना आदि कार्य व्यवस्थित रूप से कुछ स्थानीय लड़कों के साथ
होने लगता है।
कभीकभी मैं भी न्यूज़ रूम का चक्कर लगा लेती
हूं, देखती हूं रात के 230 बजे हैं, अशोक चक्रधर, अनिल शर्मा,
सक्सेना जी और राजमनी अभी भी न्यूज़ तैयार करने में लगे
हुए हैं। अशोक जी चार दिन से सोए नहीं हैं। मेरे मन में उनके
लिए प्यार और आदर दोनों ही भाव उमड़ते हैं। मैं उनके लिए
खाने का कुछ सामान लाती हूं। अशोक जी मेरा मन रखने के लिए एक
टुकड़ा उठा कर मुंह में रख लेते हैं, पर साथ में यह भी कहते हैं,
"उषा जी यदि मैंने भोजन कर लिया तो नींद आने लगेगी,
अभी काम बहुत है।"
काश! मैं उनका हाथ बटा सकती। अशोक जी मेरे मन की बात समझ
जाते हैं और कहते हैं आप ज़रा सक्सेना जी का हाथ बटा दीजिए,
इस समय कोई और न्यूज़ पेपर को स्टेपल करने वाला नहीं हैं।
और मैं थोड़ी देर सक्सेना जी का हाथ बटाती हूं तभी कुछ बालक
आ जाते हैं और मेरी छुट्टी हो जाती है।
होटल के आरामदेह बिस्तर पर मुझे
नींद नहीं आती है, सोचती हूं यह जो ये लोग इतनी मेहनत कर
रहे हैं उसको कोई मान्यता मिलेगी क्या? फिर सोचती हूं
'करमण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचनः' . . .न्यूज़ पेपर बदस्तूर
निकल रहा है, न्यूज़ रूम में संतोष की लहर उठती हैं। मंत्री जी का
शिष्टमंडल समाचार पत्र से अत्यंत प्रभावित लगता है। मंत्री जी
स्वयं एक रात आ कर लोगों को दिनरात एक करते देख जाते हैं।
होटल तोरारिका के कॉन्फ्रेंस हॉल
में दो सत्र बराबरबराबर समांतर कक्ष में चल रहे हैं। कक्ष
नं1 में 'विश्व हिन्दी : चुनौतियां और समाधान' पर
देशविदेश के विद्वान चर्चा कर रहे हैं। सत्र के बीज व्याख्यान
में रूसी विद्वान वारान्निकोव रूस में हिन्दी फिल्मों की लोकप्रियता
के बाबत बता रहे हैं तो मॉरिशस के राजनारायण अपने देश में क्रियोल
की लोकप्रियता के कारण चिंता प्रगट कर रहे हैं। यूकेहिन्दी
समिति के अध्यक्ष पद्मेश गुप्त बड़ी आशा से कह रहे हैं विश्व हिन्दी
सम्मेलन में पारित प्रस्तावों को कार्यान्वन के लिए एक स्थाई
समिति के गठन की आवश्यकता है साथ ही वह यूकेहिन्दी समिति
द्वारा किए जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों को भी रेखांकित कर रहे हैं। सत्र
में पोलैण्ड से आई दानंता स्ताशिक, हंगरी की मारिया नेज्येशी,
उजबेकिस्तान के प्रोआज़ाद और सांसद नवल किशोर जी ने
अपनेअपने विचार प्रभाव पूर्ण ढंग से प्रगट कर रहे हैं।
समानांतर सत्र में 'हिन्दी बोलियों
और सृजनात्मक' लेखन पर विस्तृत चर्चा हो रही है। नेदरलैण्ड से
पधारे मोहन कांत गौतम अपने बीज व्याख्यान में कह रहे हैं हिन्दी
और उसकी अन्य बोलियों में कोई तनाव नहीं होना चाहिए।
फिज़ी के प्रोसुब्रमणियम कह रहे हैं फिज़ी में राजनीतिक
समस्याओं के कारण लोग हिन्दी भाषा पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।
सत्र में भारत की श्रीमती मृदुला सिन्हा, उषा किरण, श्री मधुकर
उपाध्याय, भगवत रावत नेदरलैण्ड के डानारायण मथुरा श्याम
नारायण आदि जोरदार शब्दों में अपनेअपने विचार प्रगट कर रहे
हैं।
तीसरे सत्र में 'हिन्दी पत्रकारिता : नई
शताब्दी की चुनौतियां' पर विस्तृत चर्चा चल रही है अनेक वरिष्ठ
पत्रकार उत्तेजना के साथ भाग ले रहे हैं। व्याख्यान चल रहा है।
डामहीप सिंह चुनौतियों का संदर्भ लेते हुए कह रहे हैं
लोकप्रिय पत्रिका का विकास हुआ है किन्तु साहित्यिक व वैचारिक
पत्रकारिता नष्ट हो रही है। वह कह रहे हैं जब मॉरिशस और सूरीनाम
जैसे हिन्दी बहुल देशों में हिन्दी का कोई अखबार नहीं निकल रहा
है तो विश्व स्तर पर हिन्दी पत्रकारिता कैसे विकसित होगी। डावेद
प्रकाश वैदिक बीजव्याख्यान में कहते हैं हमें अंग्रेजी की
निर्धारित भूमिका को तोड़ना होगा तो पाचजन्य के संपादक कहते
हैं हिन्दी के नाम पर करोड़ो रूपए कमाने वाले अखबारों के कोई
संवाददाता पड़ोसी देशों में नहीं भेजे जाते हैं। हिन्दी अखबार
अंग्रेजी अखबारों के शीर्षकों का धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं।
पत्रकार श्री ओम थनवी, मॉरिशस के वीरसेन जागासिंह, मध्य
प्रदेश के रामशरण जोशी, सूर्यकांत बाली, श्री शंभुनाथ सिंह,
श्री मनोहर पुरी आदि अपनेअपने विचार उत्तेजक और प्रेरणादायक
शब्दों में अभिव्यक्त कर रहे हैं। लोग तरूण विजय द्वारा वितरित
विस्फोटक लेख पर आपत्ति प्रगट कर रहे हैं। सत्र के अध्यक्ष श्री प्रभाष
जोशी, पूंजी प्रेरित भूमंडलिकरण के बजाए श्रम के भूमंडलिकरण
के प्रयास पर ज़ोर दे रहे हैं और कह रहे हैं संचार तथा
प्रौद्योगिकी के विस्फोट के युग में हिन्दी की भूमिका पर विशेष
विचार करना आवश्यक है . . .
कल की तरह आज फिर विभिन्न कक्षों
में सत्र चल रहे हैं। एक सत्र चुन कर मैं वहां थोड़ी देर बैठती
हूं। पर मन कुछ और जानने सुनने को कर रहा है। अतः मैं एक सत्र
से दूसरे सत्र में चुपचाप जा कर बैठ जाती हूं। कुछ नोट्स लेती
हूं। फिर सोचती हूं आज सत्रों में न बैठ कर कुछ लोगों से बात
चीत की जाए अथवा पत्रकारों और मिडिया द्वारा चल रहे इंटरव्यू का ही
ज़ायज़ा लिया जाए। मीडिया सेन्टर में आयोजित पत्रकार सम्मेलन
में विदेश मंत्रालय के सचिव जेसीशर्मा एक उत्तेजक प्रश्न के
उत्तर में कह रहे हैं, सातवां विश्व हिन्दी सम्मेलन, भारत और
सूरीनाम संबंधों में एक नए अध्याय का आरंभ है। सूरीनाम में
रहनेवाले 90 प्रतिशत लोग हिन्दी का प्रयोग करते हैं। इसलिए
सम्मेलन के आधारभूत संरचना में कमियां होते हुए भी यहां के
लोगों के हिन्दी और संस्कृति के प्रति लगाव को देखते हुए ही हमने
यहां सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया है। वे कह रहे हैं
यहां के दूतावास में मात्र 5 अधिकारी हैं फिर भी इस आयोजन में
कुछ ऐसी उपलब्धियां हुई हैं जो उल्लेखनीय हैं। इसी बीच
'भारतीय संस्कृत संबंध परिषद' की महानिदेशक सूर्यकांति त्रिपाठी
जी दिख जाती हैं, उनकी उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सांस्कृतिक
कार्यक्रम गीतसंगीत, नाटक, नृत्य, सभी कलात्मक आयोजनों
के पीछे उनके चयन और उनकी सूझबूझ की दिशानिदेश है।
सूर्यकांति त्रिपाठी जी अत्यंत सहजसरल किन्तु प्रभावशाली
गरीमामयी सौम्य महिला हैं जो स्वयं नहीं बोलती, उनकी
उपस्थिति बोलती है। बातचीत के दौरान सूर्यकांति त्रिपाठी जी
अत्यंत सधे हुए शब्दों में कहती हैं, सम्मेलन भारतसूरीनाम
के बढ़ते हुए सांस्कृतिक और भाषई संबंधों का प्रतीक है।
मीडिया हाल से बाहर निकलती हूं तो
पुष्पिता जी व्यस्त सी कुछ लोगों को कुछ समझातीकहती हुई तेज़ी
से निकल जाती है। पुष्पिताजी सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की
सूरीनामी संयोजक है। उनके ही घर आदरणीय विद्यानिवास मिश्र
जी और प्रभात जी ठहते हुए हैं। सोचती हूं पुष्पिता जी कैसे इतने
सारे काम एक साथ कर लेती है। मेहमान नवाज़ी, सम्मेलन का
संयोजन और उत्कृष्ट लेखन। उनकी तीन पुस्तकें सूरीनाम की कथा
कहती हैं जो सम्मेलन की सूरीनाम स्मारिका हैं।
उन्हीं के पीछेपीछे मैं भी हाल में
पहुंचती हूं हॉल के लंबे रिसेप्शन टेबल पर कार्यक्रम के
सूचनापत्र, भारतीय 'सांस्कृतिक सम्बंध परिषद द्वारा प्रकाशित
स्मारिकाओं की प्रतियां, गगनांचल के दो भाग, पुष्पिता जी द्वारा
संकलित पुस्तकें तथा बहुत सी पत्रपत्रिकाएं जो इस अवसर के लिए
विशेषकर प्रकाशित की गई है, रखी है। फिजी के भारतीय उच्चायोग
से सहायता के लिए आई मोहिनी हिंगोरानी जी अपने
सहयोगियों के साथ यहां का कार्यभार पिछले चार रोज़ से
संभाल रही हैं। उनके जिम्मे बहुत सारे काम है। वही रिसेप्शनिस्ट
हैं वही लोगों का रजिस्ट्रेशन कर रही हैं, वही लोगों को
स्वागत बैग आदि भी दे रही हैं। लोग उनसे उलझ पड़ते हैं। वह
थक भी जाती है तो भी मुस्कराते हुए लोगों को स्मारिका की
प्रतियां पकड़ा देती हैं।
|
|
सम्मेलन
में अपना पेपर पढ़ती लेखिका |
|