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संस्मरण

हिन्दी दिवस
के अवसर पर विशेष

 

यादें सूरीनाम और सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन की(4)


स्वागत मेज़ के सामने 'प्रभात प्रकाशन' के प्रभात जी अपने पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाते हैं। पुस्तकें प्रदर्शन और बिकने के लिए आई हैं। प्रभात जी थोड़ी देर के लिए लघु–शंका निवारण के लिए प्रसाधन कक्ष में जाते हैं, लौटने पर पाते हैं, वहां से सभी पुस्तकें जा चुकी हैं वह अचंभित खड़े रह जाते हैं। बाद में पता चला सम्मेलन में आए हुए लोगों ने उन पुस्तकों को स्मारिका और निःशुल्क समझ अपनी थैलियां भर ली! मैंने प्रभात जी से जब इस हादसे के लिए दुःख प्रगट किया तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा,
"नहीं, कोई बात नहीं, पुस्तकें थीं। अच्छा है जो लोग ले गए हैं वे पढ़ेंगे, तो हिन्दी का प्रचार होगा।"
प्रभात जी के अच्छे–सुंदर संस्कारों और प्रसन्न–स्वभाव को मैंने मन–ही–मन नमन किया।

दिन में एक ही साथ भिन्न–भिन्न कमरों में सत्र चल रहे हैं। आज मुझे भी अपना पर्चा पढ़ना है। विषय हैं 'भारतवंशी बहुल देशों में हिन्दी की स्थिति' मंच पर उत्तरप्रदेश विधान सभा अध्यक्ष श्री केसरीनाथ त्रिपाठी, आदरणीय विद्यानिवास मिश्र जी, कमल किशोर गोयंका जी आदि बैठे हुए हैं, मैं मंच पर आलेख पढ़ने आती हूं, गोयंका जी कहते हैं आपके पास दो मिनट का समय हैं, मैं इसरार करती हूं मुझे पांच मिनट चाहिए . . .गोयंका जी के साथ अध्यक्ष जी भी मुस्करा कर हामी भर देते हैं, श्रोता ताली बज़ा कर मेरा उत्साह बढ़ाते हैं। मुझे अपनी चिंता जोरदार शब्दों में श्रोताओं और हिन्दी के समर्थकों तक पहुंचानी हैं। मातृभाषा को लेकर मेरी बहुत सी चिंताएं हैं किन्तु देवनागरी यानी लिखित हिन्दी के प्रति मेरी चिंता बहुत गहरी है। देवनागरी धीरे–धीरे घर की देहरी से उठती जा रही है। यदि भाषा संकलित नहीं होती, लिखी नहीं जाती है तो उसका दस्तावेज़ कैसे रहेगा? विश्वजाल (इंटरनेट) बात–खिड़की (इंटरनेट–चैट) पर हिन्दी रोमन में लिखी जाती है। भारत के बड़े शहरों में विदेशों में पत्र–व्यवहार, बही खातों में, पढ़ने–लिखने, सब में अंग्रेजी का प्रयोग दिनों–दिन बढ़ता जा रहा है। यदि हम सतर्क नहीं हुए तो हिन्दी भविष्य में संस्कृत की तरह पुस्तकालयों की ही शोभा बढ़ाएगी। लोग मेरी चिंता से सहमत है मुझे अनुभूति होती है . . .

शाम को भी लगातार कोई–न–कोई उच्चकोटि का सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा है। आई•सी•सी•आर• अपने उत्कृष्ट चुनिंदा कलाकारों और कार्यक्रम को ले कर आई है। वस्तुतः आई•सी•सी•आर• की चयन समिति बधाई की पात्र हैं।

उत्साही लोग सभी जगह पहुंचने का प्रयास करते हैं। कई कार्यक्रम छूट जाते हैं लोग आपस में परिचर्चा कर के उसके बारे में जान लेते हैं। नृत्य–नाटिका, नाटक, शास्त्रीय संगीत, गज़ल, कवि–सम्मेलन आदि का उत्कृष्ट मंचन हो रहा है। सूरीनामी जनता बड़ी संख्या में प्रतिदिन के कार्यक्रम देखने आती हैं। हर रोज़ दर्शकों की संख्या बढ़ रही है। कबीर का मंचन अत्यंत सजीव और लोकप्रिय रहा। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन दिन में कई–कई बार स्थानीय टेलीविजन पर दिखाया और रेडियो पर सुनाया जा रहा है। सम्मेलन की सफलता इन्हीं बातों से आंकी जा सकती है।

अंतिम शाम विश्व मंच पर कवि–सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। कवि–सम्मेलन के लिए कवियों के नाम का चयन–भार युवा गजेन्द्र सोलंकी को दिया गया है। गजेन्द्र जी लिस्ट बना रहे हैं। कुछ फेर बदल होता है। नन्दन जी को संचालन सौंपा जाता है, नंदन जी अपना भार सोम ठाकुर को दे देते हैं। सोम ठाकुर जी संचालन करते हैं। लगता है कवि सम्मेलन रात भर चलेगा। तकरीबन 30 कवि मंच पर बैठे हैं। सोम जी ने कवियों पर समय का बंधन लगा दिया था। हॉल सुधी श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ है। 

मंच से विभिन्न रस की कविता पढ़ी जाती है। गजेन्द्र सोलंकी वीररस की रचनाएं सुनाते हैं तो कुंवर बेचैन जी श्रृंगार रस की सुनाते हैं, तो राजस्थान से आए मयूर जी अत्यंत दार्शनीक कविता सुर में सुनाते हें। मृदुला सिन्हा भोजपुरी का गीत सुनाती हैं। मध्यप्रदेश से आई कवियित्री स्त्री–विमर्श की कविता सुनाती हैं। मैं अपनी एक छोटी सी गज़ल सुना कर मंच से उतर आती हूं। और आराम से बैठ कर अन्य कवियों के गीतों गज़लों का रसस्वादन करती हूं। साथ ही श्रोताओं को ताली बज़ाने और वाह! वाह! करने के लिए उकसाती हूं। जनता कविता बड़े प्रेम से सुन रही है किंतु सुर–संगम और शब्दों की जादुगरी में ऐसी खो जाती है कि दाद देना, ताली बजाना भूल जाती है।

विश्व हिन्दी सम्मेलन की अंतिम सुबह की चहल–पहल ज़रा दूसरे तरह की है। प्रसन्नता के साथ कुछ अवसाद भी मन के अंदर उथल–पुथल कर रहा है। कमरों के अंदर सूटकेस में कपड़े रखे जा रहे हैं, जाने की तैयारी के साथ कुछ छुटते जाने का अहसास भी हो रहा है।

आज संसार के श्रेष्ठ हिन्दी साहित्यकारों और विद्वानों को सम्मानित करने का पर्व है। चित्रा मुद्गल, कमलकिशोर गोयंका, सूर्यकांति त्रिपाठी आदि कार्यकर्ता और अन्य संयोजक अत्यंत व्यस्त हैं। सम्मान–पत्र, स्मारिका, स्मृति–चिन्ह, दुशाला आदि सब सबकुछ अच्छी तरह मंच के पास आयोजित होना चाहिए। कहीं कुछ त्रुटि न रह जाए। सब कुछ सहजता सरलता और स्वाभाविक रूप से सम्पन्न होना चाहिए। भारत के 10 वरिष्ठ साहित्यकार सम्मानित हो रहे हैं। विदेशों से 15 हिन्दी के समर्थक, शिक्षक, साहित्यकार, विद्वान और पत्रकार आदि सम्मानित हो रहे हैं। लंदन से बी•बी•सी हिन्दी सेवा की अध्यक्षा सुश्री अचला जी को श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए सम्मानित किया जा रहा है। यू•के•से आए सभी लोग हर्षित हैं। हम सबने अपने–अपने कैमरे तैयार कर रखे हैं।

सम्मान कार्यक्रम आरम्भ हो रहा है, एक के बाद एक श्रेष्ठ विद्वान मंच पर आ रहे हैं। भारत के विदेश राज मंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी तथा सूरीनाम के उपराष्ट्रपति उन्हें सम्मानित कर रहे हैं। विद्वानों के सम्मान में सम्मान–पत्र पढ़े जा रहे हैं। उन्हें शाल ओढ़ा कर स्मारिका दी जा रही है। भाषण, बधाई और विदाई तीनों का ही समा बंध रहा है।

समारोह का समापन हुआ। इन पांच अद्भुत दिनों में आपस में स्नेह संबंध ऐसा बना कि लोग संपर्क कायम रखने के लिए विज़टिंग कार्ड, ई–मेल एड्रेस, फोन नम्बर ले और दे रहे हैं। कुछ लोग अत्यंत भावुक हो रहे हैं। बार–बार गले मिल रहे हैं। बार–बार एक–दूसरे को मित्रतापूर्ण प्रशंसासूचक शब्दों में कह रहे हैं कि इस प्रगाढ़ मैत्री की उष्मा जीवन पर्यंन्त रहेगी। प्रेम का यह स्थाई भाव सदा बना रहेगा। सूरीनाम विश्व हिन्दी सम्मेलन की संयोजक पुष्पिता जी अत्यंत भावुक हो उठती है, वह अपनी रूलाई नहीं रोक पाती है, मेरा कंधा उनके आंसुओं से भीग उठता है। मेरे गले में भी गुठली अटक जाती है। कैसे समेटूं इतना स्नेह, इतना प्यार . . .आस–पास खड़े न जाने कितने लोगों की आंख भीग जाती हैं। लोग हमारी पीठ थपथपाते हैं। पुष्पिता जी न जाने कितने लोगों को विचलित कर देती हैं।

ये पांच दिन, ये अद्भुत पांच दिन . . .इन पांच दिनों में कितना कुछ मिला है, ज्ञान मिला, साहित्य मिला, दर्शन मिला, सहयोग मिला, प्यार मिला, सौहार्द्र मिला और साथ में ढेरों दोस्त मिलें। सम्मेलन ने विश्व भर के हिन्दी प्रेमियों की एक कड़ी बनाई हैं जो चिंतन, साहित्य और कला के 'लिंक' से जुड़ी है। सूरीनाम के सम्मेलन की उपलब्धि है, विश्व हिन्दी बंधुत्व की अमर कड़ी है . . .वास्तव में सूरीनाम 'श्री राम' का देश है। कभी भोले–भाले भारतवासियों को झांसा देने के लिए यह बात कही थी डच सरकार ने। आज हमारे सूरीनामी परिवारों ने इसे सचमुच ही श्री राम का देश बना दिया है। कई–कई समुंदर पार कर के लोग आए हैं और एक मंच पर बैठे हैं। यह कितनी बड़ी उपलब्धि है हम अपने देश में नहीं मिल पाते हैं और सूरीनाम में न केवल मिलें दिन रात एक ही रस 'हिन्दी के प्रेम संसार के रस' में पगे रहें, सराबोर रहें . . .जय हिन्द! जय हिन्दी भाषा।

 
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