मिथिला की सांस्कृतिक मौलिकता एवं पहचान को कायम रखते हुए इसके उत्थान के लिए दशकों से समर्पित मैथिल
कवि लेखक और संगीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षि ने मैथिली संगीत के अनुरागियों
के लिए ' प्रियतम हमर कमौआ' के रूप में एक अनमोल भेंट प्रस्तुत की है।
उनका यह प्रयास अपने आप में अनुपम और अतुलनीय है। इन गीतों के
सौंदर्य से वे मैथिली संगीत के स्वर्णयुग का स्मरण करा देते हैं।
एल्बम में समाविष्ट सारे गीत जीवन में आशा का संचार करते हुए
गीत साहित्य का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते है साथ ही उनमें है मिथिला की
माटी की सोंधी महक जो इसका नाम 'सांग ऑफ लाइट : प्रियतम हमर कमौआ' सार्थक हो उठा है।
पहले यह रचना सीडी के रूप में आयी थी, जो आम श्रोताओं की पहूँच से बाहर
थी, लेकिन इसे ऑडियो कैसेट के रूप में हाल ही म्यूजिक नेपाल ने जारी किया है,
जिससे अधिक से अधिक संगीत अनुरागी इसका आनन्द ले सकेंगे। इस एल्बम में संगृहीत कुल दस गीतों के संगीत, स्वर और रचनाओं में विविधताएँ हैं। संगीत ने
मिथिला की माटी को पकड़े हुए प्रयोगवाद और मौलिकता की उड़ान
भरी है। परम्परागत मैथिली मौलिक संगीत के साथ ही भारतीय और पाश्चात्य संगीत के सटीक संयोजन
से सभी गीत कुछ अलग तरह की कर्णप्रियता और श्रुतिमाधुर्य के साथ
निखर कर सामने आए हैं। अब तक मंचों पर कविता वाचन, समाचार वाचन और लेखन के जरिए अच्छी पहचान के साथ
क्रियाशील धीरेन्द्र प्रेमर्षि के इस प्रयत्न ने उनकी सांगीतिक सूझबूझ का भी लोहा मनवा लिया है।
नेपाल के मैथिली भाषी क्षेत्र के प्रतिनिधिमूलक दर्जन भर गायकगायिकाओं की इसे
अपनी आवाज़ से सजाया है। इतने सारे गायक गायिकाओं को एक जगह लाने का कार्य भी
मैथिली संगीत में अपने आप में एक इतिहास है, जिसे बखूबी अन्जाम दिया है
धीरेन्द्र प्रेमर्षि ने। सभी गायकगायिकाओं ने अपनीअपनी क्षमता एवं गायनकौशल
का मोहक प्रदर्शन किया है।
डॉ राजेन्द्र विमल, रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर', धीरेन्द्र प्रेमर्षि, दिगम्बर झा ' दिनमणि', चन्द्रशेखर लाल 'शेखर' और कालिकान्त झा 'तृषित' की शब्दरचनाओं से सजे इस
एल्बम में गुरूदेव कामत, रूपा झा, सुनील मल्लिक, आभास लाभ, हरिशंकर चौधरी, सन्तोष झा, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, रश्मि दत्त, प्रवेश मल्लिक और बाल कलाकार अक्षेन्द्र झा
की विविधतापूर्ण आवाज सुनी जा सकती है।संगीतसृजन में जितनी भूमिका
धीरेन्द्र की है, इसे वाद्ययन्त्रों के साथ सजानेसँवारने में संगीतसंयाजक रवीन दर्शनधारी की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। साथ ही उत्कृष्ट तकनिकी प्रयोग के
लिए अल्फा रेकार्डिंग स्टूडियो, काठमांडू की भूमिका को भी कम नहीं माना जा सकता।
सीडी व कैसेट के आवरण को मिथिला लोकचित्रकला के एक अनुपम नमूना से सजाया गया है, जिसने
मैथिली की मौलिक संस्कृति की विशिष्टता का सफल व सार्थक परिचय प्रस्तुत किया है। साथ ही विस्मृत होते जा रहे मिथिलाक्षर में इस एल्बम का नाम अंकित होना और अधिक आह्लादकारी व तृप्तिदायक दृष्टिगोचर होता है।
निमिष झा 'स्नेही'
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