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साहित्य समाचार

20 वाँ राधाकृष्ण पुरस्कार कनकलता को

'साहित्यकार जिस इतिहास की रचना करता है वह इतिहास चिरस्थायी होता है।  उसकी इतिहास रचना में सिर्फ तिथि और घटनाएँ ही झूठी होती हैं, जबकि इतिहास में तिथि और घटनाओं को छोड़ बाकी सारा कुछ झूठा होता है।  साहित्यकार घटनाक्रम में जिस मानवीय वेदनाओं का चित्रण करता है वह इतिहासकार नहीं कर सकता।'  समालोचक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने यह विचार राँची में आयोजित 20वें राधाकृष्ण पुरस्कार समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किया।

इससे पूर्व उन्होंने धनबाद की कथाकार और उपन्यासकार कनकलता को 20वें राधाकृष्ण पुरस्कार से सम्मानित किया।  उन्होंने सुश्री कनकलता को 11 हजार 101 रूपए तथा प्रशस्ति–पत्र प्रदान कर सम्मानित किया।  यह पुरस्कार राँची एक्सप्रेस के प्रबंधन द्वारा प्रत्येक वर्ष झारखंड क्षेत्र के एक साहित्यकार को उसकी रचना अथवा उसकी समग्र साहित्य सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।

प्रसिद्ध व्यंग्यकार और कथा लेखक स्व• राधाकृष्ण के नाम पर इस पुरस्कार की स्थापना की गई है।

कार्यक्रम के आरंभ में राँची एक्सप्रेस के प्रधान संपादक अजय मारू ने स्वागत भाषण किया।  सिद्धनाथ कुमार ने मुख्य अतिथि का परिचय प्रस्तुत किया तथा पुरस्कार चयन समिति के सदस्य श्रवण कुमार गोस्वामी ने कनकलता के पुरस्कार के लिए चयन के औचित्य और उनकी रचनाओं पर प्रकाश डाला।  धन्यवाद ज्ञापन तथा समारोह का संचालन चयन समिति के सदस्य कुशेश्वर ठाकुर ने किया।  समारोह में शहर के जाने–माने साहित्यकार–साहित्यप्रेमी, पत्रकार तथा गणमान्य लोग उपस्थित थे।

राजी सेठ को वाग्मणि सम्मान

पिछले दिनों जयपुर में राजस्थान लेखिका संस्थान की ओर से वरिष्ठ कथा उपन्यास लेखिका राजी सेठ को वाग्मणि सम्मान से सम्मानित किया गया।

संस्थान का कर्मश्री सम्मान प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय की पूर्व निदेशक आशा दीक्षित को दिया गया।   प्रसिद्ध कथाकार–उपन्यासकार एवं पटकथा संवाद लेखक मनोहर श्याम जोशी, न्यायमूर्ति बी .पी . बेरी और राजस्थान की वरिष्ठ लेखिका लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत ने ये सम्मान प्रदान किए। 

 गिरिराज किशोर को व्यास सम्मान

पिछले दिनों नई दिल्ली में वरिष्ठ साहित्यकार गिरिराज किशोर को पहला गिरमिटिया उपन्यास के लिए के .के . बिड़ला फाउंदेशन द्वारा संचालित वर्ष 2000 का 'व्यास सम्मान' प्रदान किया गया। पुरस्कार प्रदान करने के बाद विष्णुकांत शास्त्री ने कहा कि जिस प्रकार महार्षि वेदव्यास ने महाभारत में भारतीय जीवन को समग्र दृष्टि में प्रस्तुत किया, उसी प्रकार गिरिराज किशोर ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए जीवन के 21 वर्षों के इतिहास को समग्रता प्रदान की है।  उन्होंने कहा कि महात्मा गाँधी का जीवन हम सबके और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहेगा।

फाउंडेशन के अध्यक्ष के .के . बिड़ला ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि हिंदी की राष्ट्रीय और देशव्यापी भूमिका को देखते हुए व्यास सम्मान की स्थापना की गई थी।  हमारा मुख्य उद्देश्य भारतीय साहित्य, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में जनकल्याण को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएँ संचालित करना है।

अपने वक्तव्य में गिरिराज किशोर ने कहा कि आज अंग्रेजी की चुनौती भारतीय भाषाई लेखन के स्तर पर ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत गंभीर है।  उन्होंने कहा कि वे अंग्रेजी के विरोधी नहीं, अंग्रेजियत के विरोधी है, जिसका खतरा बढ़ता जा रहा है।  उन्होंने कृति के सम्मान को वर्तमान संपूर्ण पीढ़ी की रचनात्मकता का सम्मान बताते हुए कहा कि उपभोक्तावाद और ग्लोबलाइजेशन के दौर में फाउंडेशन और इस जैसी संस्थाएँ भारतीय भाषाओं और हिंदी की रचनात्मकता की प्रतिस्पर्धा को जीवित रखने का जो प्रयास कर रही है, वह अपने आप में एक घटना हैं।  चयन समिति के अध्यक्ष भोलाभाई पटेल ने कहा कि पहला गिरमिटिया 900 पृष्ठों का ग्रंथ है, जिसमें गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीका के जीवन प्रसंगों को औपन्यासिक रूप दिया गया है।  उन्होंने कहा कि गाँधीजी के जीवन पर उपन्यास लिखना विकट कार्य है, जिसमें श्री किशोर को अधिकांश रूप में सफलता मिली है।

हिंदुस्तान टाइम्स की उपाध्यक्ष श्रीमती शोभना भरतिया ने अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि व्यास सम्मान का भारतीय भाषाओं में विशिष्ट स्थान है।  इस अवसर पर राजधानी के अनेक साहित्यिक एवं गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे 

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