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आग जो घुट-घुट कर ठंडी होने लगी थी, फिर से भड़क उठी। चार-पाँच मुअतबिर मुसलमानों ने तो अपना कतई फैसला भी सुना दिया। उन पर चौधरी के बहुत एहसान थे वह उनकी रूह को भटकने नहीं देंगे। मस्जिद के पिछवाड़े वाले कब्रिस्तान में, कब्र खोदने का हुक्म भी दे दिया। शाम होते-होते कुछ लोग फिर हवेली पर आ धमके। उन्होंने फ़ैसला कर लिया था कि चौधराइन को डरा धमका कर, चौधरी का वसीयतनामा उससे हासिल कर लिया जाय और जला दिया जाय फिर वसीयतनामा ही नहीं रहेगा तो बुढ़िया क्या कर लेगी। चौधराइन ने शायद यह बात सूँध
ली थी। वसीयतनामा तो उसने कहीं छुपा दिया था और जब लोगों ने
डराने धमकाने की कोशिश की तो उसने कह दिया, बात कचहरी तक जा सकती है, यह भी वाज़े हो गया। हो सकता है चौधराइन शहर से अपने वकील को और पुलिस को बुला ले। पुलिस को बुला कर उनकी हाज़री में अपने इरादे पर अमल कर ले। और क्या पता वह अब तक उन्हें बुला भी चुकीं हों। वरना शौहर की लाश बर्फ़ की सिलों पर रखकर कोई कैसे इतनी खुद एतमादी से बात कर सकता है। रात के वक्त ख़बरे अफ़वाहों
की रफ्तार से उड़ती है। चार पाँच साथियों को लेकर
कल्लू पिछली दीवार से हवेली पर चढ़ गया। बुढ़िया अकेली बैठी
थी, लाश के पास। चौंकने से पहले ही कल्लू की कुल्हाड़ी सर से
गुज़र गई। कल्लू निकल गया, कब्रिस्तान
की तरफ़। |
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९ जनवरी २००१ |