मेरी खिड़की में फूल हैं। नहीं...नहीं,
खिड़की के अंदर नहीं, जब तुम खिड़की से झाँकोगे तब दिखाई
देंगे। हरी पत्तियों पर उगे सफेद फूल।
वे दिन में सो जाते हैं और रात होते ही
खिल जाते हैं। फूलों को देखने के लिये रात में खिड़की
खोलनी पड़ती है।
कमरे में एक बल्ब
है वह खिड़की खोलने पर दिखाई देता है। खिड़की के बाहर भी
एक बल्ब है वह स्तंभ पर लगा है। जब खिड़की खुलती है तब
अंदर वाला बल्ब और बाहर वाला बल्ब बातें करते हैं।
क्या बातें करते होंगे भला? उनकी बातें सुनाई नहीं देतीं।
खिड़की खुलती है
तो मैं भी फूलों से बातें करती हूँ। मैं जोर जोर से बात
करती हूँ तुम मेरी बात सुन सकते हो। फूलों से बातें करना
अच्छा लगता है। वे धीरे धीरे हिलते हैं और मुसकाते हैं।
क्या तुमने कभी
फूलों से बात की है?
- पूर्णिमा वर्मन |