दशहरा और रामनवमी पर्व को मनाए जाने के बहुत से कारण हैं।
भारतीय पंचांग के अनुसार दशहरा अश्विन शुक्ल की दशवीं तिथि
के दिन मनाया जाता है।
भगवान राम के जीवन चरित्र को मनुष्य जाति के लिए पे्ररणा
स्त्रोत माना जाता है क्योंकि उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन
सत्य और अपने वचनों के पालन के लिए न्यौछावर कर दिया था।
दशहरे से नौ दिन पूर्व से भारत के सभी छोटे–बड़े नगरों में
रामलीला एवं मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राम के
संपूर्ण जीवन का मंचन किया जाता है। रामलीला का अंत दशहरे
के साथ होता है। जिसमें रावण एवं मेघनाद के बड़े–बड़े पुतले
जलाए जाते हैं।
भारत के उत्तर में हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर कुल्लू
में दशहरा तीन दिन तक मनाया जाता है। लोग आसपास के सभी
शहरों के देवी–देवताओं की प्रतिमा अपने सिर पर लेकर
गाजों–बाजों के साथ, कुल्लू में भगवान रघुनाथ के दरबार में
एकत्रित होते हैं। बड़ा मेला लगता है और सात दिन तक पवित्र
अग्नि जलाई जाती है।
मैसूर का दशहरा अपने शाही अंदाज़ के कारण बहुत प्रसिद्ध है।
वहाँ यह पर्व महिषासुर नामक राक्षस पर माँ दुर्गा की विजय
के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का आयोजन चामुंडी पर्वत
शिखर पर किया जाता है। महिषासुर के नाम पर ही इस शहर का
नाम मैसूर पड़ा।
भारत के अलग–अलग राज्यों में यह पर्व भिन्न–भिन्न तरह से
मनाया जाता है।
बंगाल में दशहरे से पूर्व के नौ दिनों को दुर्गा पूजा के
रूप में मनाया जाता है। माँ दुर्गा की बड़ी–बड़ी प्रतिमाएँ
बनाई जाती हैं और पूजा के समापन पर उन प्रतिमाओं को जल में
प्रवाहित कर दिया जाता है।
गुजरात राज्य में इन नौ दिनों को नवरात्रि के रूप में
मनाया जाता है। इन दिनों यहाँ रात में डांडिया और गरबा का
आयोजन किया जाता है जिसमें लोग पारंपरिक गुजराती वेश भूषा
में अपना पारंपरिक नृत्य करते हैं।
तमिलनाडु में इस दिन धन की देवी लक्ष्मी, शिक्षा की देवी
सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा की उपासना की जाती है।
आंध्रप्रदेश एवं कर्नाटक में देवी की छोटी–छोटी मूर्तियाँ
निर्मित करके उनकी पूजा अर्चना की जाती है।जिसे बोमई कोलू
कहा जाता है। लकड़ी की बनी पारंपरिक गुड़ियों और घर की
पुरानी गुड़ियों को भी इसमें स्थान मिलता है।
केरल में किताबों को पूजा के स्थान पर रखकर उनकी पूजा की
जाती है।
१ अक्तूबर २००६ |