सतपुड़ा-मैकल और विंध्य
पर्वत शृंखला के संधि स्थल पर सुरम्य नील वादियों में बसा
अमरकंटक ग्रीष्मकाल के लिए अनुपम पर्यटन स्थल है। इसे
प्रकृति और पौराणिकता ने विविध संपदा की धरोहर बख्शी है।
चारों ओर हरियाली, दूधधारा और कपिलधारा के झरनों का मनोरम
दृश्य, सोननदी की कलकल करती धारा, नर्मदा कुंड की पवित्रता, पहाड़ियों की हरी-भरी ऊँचाइयाँ है
और
खाई का प्रकृति प्रदत्त मनोरम दृश्य मन की गहराइयों को छू
जाता है। अमरत्व बोध के इस अलौकिक धाम की यात्रा सचमुच
उसके नाम के साथ जुड़े 'कंटक' शब्द को सार्थक करती है। हम
जहाँ दुनिया के छोटी हो जाने का ज़िक्र करते थकते नहीं,
वहीं अमरकंटक की यात्रा आज भी अनुभवों में तकलीफ़ों के शूल
चुभो जाती है। पर एक बार सब कुछ सहकर वहाँ पहुँच जाने
के बाद यहाँ की अलभ्य सुषमा और पौराणिक आभा सब कुछ बिसार
देने को बाध्य करती है।
अमरकंटक, मध्यप्रदेश के
शहडोल जिले के अन्तर्गत दक्षिण-पश्चिम में लगभग ८० कि.मी.
की दूरी पर, अनूपपुर रेलवे जंक्शन से ६० कि.मी.,
पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन से ४५ कि.मी. और बिलासपुर जिला
मुख्यालय ये ११५ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ रुकने
के लिए अनेक छोटी मोटी धर्मशालाएँ, स्वामी श्रीरामकृष्ण
परमहंस का आश्रम, बरफानी बाबा का आश्रम, बाबा कल्याणदास
सेवा आश्रम, जैन धर्मावलंबियों का सर्वोदय तीर्थ एवं
अग्निपीठ, लोक निर्माण विभाग का विश्रामगृह, साडा का
गेस्ट हाउस और म.प्र. पर्यटन विभाग के टूरिस्ट कॉटेज आदि
बने हुए हैं। यहाँ घूमने के लिए तांगा, जीप, ऑटो रिक्शा
आदि मिलते है। खाने के लिए छोटे-बड़े होटल हैं लेकिन १५
कि.मी. पर केंवची का ढाबा में खाना खाने की अच्छी व्यवस्था
रहती है। जंगल के बीच खाना खाने का अलग आनंद होता है।
अमरकंटक, शोण और नर्मदा
नदी का उद्गम स्थली है जो २०' ४०' उत्तरी अक्षांश और ८०'
४५' पूर्वी देशांश के बीच स्थित है। नर्मदा नदी १३१२
कि.मी. चलकर गुजरात में २१' ४३' उत्तरी अक्षांश और ७२' ५७'
पूर्वी देशांश के बीच स्थित खंभात की खाड़ी के निकट गिरती
है। यह नदी १०७७ कि.मी. मध्यप्रदेश के शहडोल, मंडला,
जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, खंडवा और खरगौन जिले में
बहती है। इसके बाद ७४ कि.मी. महाराष्ट्र को स्पर्श करती
हुई बहती है, जिसमें ३४ कि.मी. तक मध्यप्रदेश और ४०
कि.मी. तक गुजरात के साथ महाराष्ट्र की सीमाएँ बनाती हैं। खंभात की खाड़ी में गिरने के पहले लगभग १६१ कि.मी. गुजरात
में बहती है। इस प्रकार इसके प्रवाह पथ में मध्यप्रदेश,
महाराष्ट्र, और गुजरात राज्य पड़ता है। नर्मदा का कुल जल
संग्रहण क्षेत्र ९८७९९ वर्ग कि.मी. है जिसमें ८०.०२
प्रतिशत मध्यप्रदेश में, ३.३१ प्रतिशत महाराष्ट्र में और
८.६७ प्रतिशत क्षेत्र गुजरात में है। नदी के कछार में १६०
लाख एकड़ भूमि सिंचित होती है जिसमें १४४ लाख एकड़ अकेले
मध्यप्रदेश में है, शेष महाराष्ट्र और गुजरात में है।
विश्व की प्रमुख
संस्कृतियाँ नदियों के किनारे विकसित हुई परन्तु भारत का
प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास तो मुख्यत: गंगा, यमुना,
सरस्वती और नर्मदा के तट का ही इतिहास है। सरस्वती नदी के
तट पर वेदों की ऋचाएँ रची गई, तो तमसा नदी के तट पर क्रौंच
वध की घटना ने रामायण संस्कृति को जन्म दिया। न केवल आश्रम-संस्कृति की सार्थकता
और रमणीयता नदियों के किनारे पनपी,
वरन नगरीय सभ्यता का वैभव भी इन्हीं के बल पर बढ़ा। यही
कारण है कि नदी की हर लहर के साथ लोक मानस का इतना गहरा
तादात्म्य स्थापित हो गया कि जीवन के हर पग पर जल और नदी
संस्कृति ने भारतीयता को परिभाषित कर दिया। छोटे से छोटे
और बड़े से बड़े धार्मिक अनुष्ठान व यज्ञ आदि के अवसर पर
घर बैठे सभी नदियों का स्मरण इसी भावना का तो संकेत है? गंगे च यमुने चैव गोदावरि
सरस्वति,
नर्मदे सिन्धु कावेरि, जले स्मिन सन्निधि कुरू।।
इस प्रकार मेकलसुत सोन और
मेकलसुता नर्मदा दोनों का सामीप्य सिद्ध है। वैसे मेकल से
प्रसूत सभी सरिताओं का जल अत्यंत पवित्र माना गया
है-मणि से निचोड़े गए नीर की तरह...। ऐसे निर्मल पावन जल प्रवाहों की उद्गम स्थली के वंश-गुल्म के जल से स्नान,
आचमन, यहाँ तक कि स्पर्श मात्र से यदि अश्वमेध यज्ञ का फल
मिलना बताया गया हो तो उसमें स्नान अवश्य करना चाहिए।
लेकिन यह विडंबना ही है कि अब अमरकंटक की अरण्य स्थली में
प्रमुख रूप से नर्मदा और सोन नदी के उद्गम के आसपास एक भी
बाँस का पेड़ नहीं है। यही नहीं यहाँ नर्मदा कुंड का पानी
पीने लायक भी नहीं है। बल्कि इतना प्रदूषित है कि आचमन तक
करने की इच्छा नहीं होती। इसके विपरीत सोन नदी के उद्गम का
पानी स्वच्छ और ग्रहण करने योग्य है। नर्मदा कुंड को
मनुष्य की कृत्रिमता ने आधुनिक बनाकर सीमित कर दिया है।
सोन-मुड़ा, सोन नदी की उद्गम स्थली अभी भी प्रकृति की
रमणीयता और सहजता से अलंकृत है। वृक्षों पर बंदरों की
उछलकूद और साधु संतों की एकाग्रता यहाँ की पवित्रता का बोध
कराती है। यहाँ साडा द्वारा सीढ़ियों पर बैठने की व्यवस्था
की गई है, जहाँ से प्रातः सूर्योदय का दृश्य दर्शनीय होता
है। |