प्रो. कुँवरपाल
सिंह
प्रो. कुँवरपाल सिंह का जन्म
हाथरस जिले के कैलोरा ग्राम के एक किसान परिवार में हुआ।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से १९५९ में बी.ए., १९६१ में
एम.ए. (हिंदी) तथा १९६९ में पीएच.डी. उपाधि प्राप्त करने के
उपरांत वे १९६६ में व्याख्याता पद पर नियुक्त हुए। १९७७ में
रीडर तथा १९८५ में प्रोफ़ेसर पद पर उनकी प्रोन्नति हुई।
अपनी सुदीर्घ
सारस्वत-यात्रा के अनेक पड़ावों से गुज़रते हुए प्रो. सिंह ने
अनेक प्रशासनिक पदों को सुशोभित किया। हिंदी विभाग के अध्यक्ष,
कला संकाय के अधिष्ठाता पद के अतिरिक्त वे राजभाषा कार्यावयन
समिति के उपाध्यक्ष भी रहे। एन.आर.एस.सी. के प्रोवोस्ट,
एम्प्लॉयमेंट एवं गाइडेंस सेंटर के ब्यूरो प्रमुख, जनसंपर्क
कार्यालय के प्रभारी तथा विश्वविद्यालय प्रसार व्याख्यान के
समन्वयक के रूप में उन्होंने अपने दायित्वों का सफल निर्वाह
किया।
वे
विश्वविद्यालय की विधिक संस्थाओं-एकेडेमिक काउंसिल,
एक्ज़ीक्यूटिव काउंसिल तथा कोर्ट के सदस्य भी निर्वाचित हुए।
प्रो. सिंह इस विभाग से छात्र, शोधार्थी, अध्यापक एवं अध्यक्ष
के तौर पर जुड़े रहे। एक अध्यापक के रूप में उन्होंने छात्रों
के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी। विभागीय सहयोगियों के बीच
उनकी छवि एक उदारमना अहैतुक साथी की थी। हिंदी विभाग के
सर्वांगिण शैक्षिक विकास के लिए वे निरंतर सक्रिय रहे और अखिल
भारतीय स्तर पर विभाग की छवि का निर्माण करने में उनका
महत्वपूर्ण योगदान रहा।
साहित्य जगत
में मार्क्सवादी आलोचना के विशिष्ट हस्ताक्षर प्रो. के.पी.
सिंह ने ६ पुस्तकों के लेखन के साथ-साथ पुस्तकों का संपादन
किया और साहित्य अकादमी के लिए उन पर एक मोनोग्राफ़ भी लिखा।
आजकल वे 'राही मासूम रज़ा ग्रंथावली' के संपादन में व्यस्त थे।
अनेक
पत्र-पत्रिकाओं का संपादन एवं अतिथि संपादन करते हुए उन्होंने
हिंदी के ख्यात साहित्यकारों पर संग्रहणीय विशेषांक निकाले।
'वर्तमान साहित्य' पत्रिका के यशस्वी संपादक तथा 'समय संवाद'
स्तंभ के लेखक के रूप में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किए।
उनका निधन ८ नवंबर २००९ को हुआ। |