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"राज, तुम अपने ज्ञान को लोगों में बाँटते क्यों नहीं? संसार को हक है कि सब तुम्हारी बुद्धि, तुम्हारे ज्ञान का लाभ उठा सके।"
"अभी तो मैं स्वयं ही अज्ञान के अन्धेरे में भटक रहा हूँ। मैं स्वयं परमात्मा के साथ अपना तारतम्य नहीं बना पाया हूँ। भला, मैं कैसे किसी को जीवन की राह दिखा सकता हूँ?"
राह से तो भटक रही थी जया की पलक। दिलीप के असंतुलित व्यवहार के चलते, एक पलक ही तो थी जिसके होते जया को जीने का कारण मिल जाता था। आज वही जया को दुख देने पर उतारू थी। कम से कम जया तो यही सोचती थी। पलक एक मुसलमान लड़के से प्रेम कर बैठी थी। जया का तो समस्त संसार डगमगा सा गया था। जया के दिमाग में मुसलमानों को लेकर बहुत-सी गाँठें थीं। लन्दन के सन्राइज रेडियो पर भी जब कभी अपराध के समाचार आते तो अधिकतर उनमें मुसलमान लड़कों के ही नाम सुनाई देते थे। जया की अपनी ममेरी बहन मुंबई में एक मुसलमान लड़के से विवाह कर घर से भाग गई थी। सारा परिवार सकते में आ गया था। उनके क्षेत्र में दंगा होते होते बचा था। शिवसेना और मुस्लिम संस्थाओं के बीच ठन गई थी। राजनीतिज्ञों के बीच बचाव से ही दंगा रुक पाया था। मामा जी तो यह सदमा सह नहीं पाए थे। मामी ने "अपने पति की हत्यारिन" से आज तक बात नहीं की थी। माफ़ करने जैसी स्थिति तो आई ही नहीं।

दिलीप से बात करे या न करें। कहीं शराब के नशे में कोई बेवकूफी न कर बैठे। जवान लड़की का मामला है। किस से सलाह करे? पलक को समझाया भी, परन्तु जवानी कब समझदारी का परिचय देती है? जब रक्त में गर्मी होती है तो तर्क ठण्डे पड़ जाते हैं। पलक को तो यह भी समज नहीं आ रहा था कि इमरान में कमी किस बात की है। उसके पिता डॉक्टर है, उसकी माँ बैंक में काम करती है, और इमरान अपने कालेज का श्रेष्ठ छात्र है। फिर समस्या क्या है?

वह नहीं समझती कि इमरान मुसलमान तो है ही उस पर पाकिस्तानी भी है। "पर मम्मी, इमरान पाकिस्तानी कैसे हो सकता है? वह तो यहीं लन्दन में पैदा हुआ था। जैसे मैं कैसे इण्डियन हो सकती हूँ। मैं भी ब्रिटिश हूँ और इमरान भी ब्रिटिश है। तो जब दो ब्रिटिश शादी करना चाहते हैं तो प्रॉब्लेम क्या हे? आई डोण्ट केयर कि इमरान किस धर्म को मानता है। ही इज नॉट आस्किंग मी टु चेन्ज माई रिलिजन। और फिर में इमरान कौन सा उसके मम्मी पापा के साथ रहने वाले हैं। हम लोग तो अपने घर में रहेंगे।"

कितना आसान है पलक के लिए पलकें झपकाते हुए कह देना कि दे आर ब्रिटिशर्स! बेवकूफ़! इतना भी नहीं समझ पाती कि बड़े-बड़े युद्ध जीत लेना कहीं आसान बात है। किन्तु छोटे-छोटे महायुद्ध लड़ना एक अलग ही समस्या है। प्रेमी युगल कितने कम समय में हिन्दु या मुसलमान में परिवर्तित हो जाते हैं, इस का तो पता ही नहीं चलता। कोई भी इन्सान अपने परिवेश से बड़ा नहीं हो पाता। धर्म हमारी शिराओं में हमारे रक्त का एक अटूट भाग बन उसके साथ बहता रहता है। हमारे सोचने समझने का ढंग हमारे धर्म से कब संचालित होना शुरू हो जाता है इसका तो हमें पता ही नहीं चलता। आजान की आवाज़ सुनते ही एक मुसलमान मन ही मन नमाज़ पढ़ने लगता है तो कहीं दूर किसी मन्दिर से आती आरती किसी भी हिन्दु का दिल श्रद्धा से भर देती है। हमारे सोचने, जीने, खाने पीने और मरने के ढंग भी जुदा-जुदा है। खाली पलक के कह देने मात्र से कोई मुसलमान ब्रिटिशर नहीं बन जाएगा।

हर समस्या न जाने राज पर जा कर ही कैसे दम लेती है। एक बार फिर जया राज के सामने हैं। यदि दिलीप उसके अपने पास होता तो क्या वह राज के पास कभी भी जाती? शायद उसके बारे में सोचती भी नहीं। लेकिन वर्षा की बेटी ने भी तो ईरानी मुसलमान से विवाह किया है। तो फिर उसकी अपनी पलक भला ऐसा क्यों नहीं कर सकती? किन्तु ईरान और पाकिस्तान के मुसलमान में भी तो अन्तर होता है न! जहाँ भारत और पाकिस्तान के सम्बधों में तनाव उत्पन्न होता है वही पति पत्नी के सम्बन्धों में भी कड़वाहट शुरू हो जाती है।

लेकिन वर्षा की बेटी भी आजकल हर पार्टी में अकेली ही दिखाई देती है। उसका ईरानी पति न जाने अचानक कहाँ गायब हो गया है। "यह पाकिस्तानी भी न जाने कब तक हमारी ज़िन्दगी में कड़वाहट घोलते रहेंगे। भगवान में विश्वास रखने वाले परिवार की बेटी को नमाज़ पढ़ना सिखा देंगे! भारत के टुकड़े करवा कर भी यह कहाँ चुप बैठने वाले हैं। हमारी बेटियों पर नज़रे गड़ाए बैठे हैं।" जया के दिमाग में मंथन जारी है। उसे डर है कि भारतीय सभ्यता नहीं बचने वाली। यहाँ पैदा हुए बच्चे भला कहाँ भारतीय संस्कृति का बोझ ढो पाएँगे।

"मुझे समझ नहीं आता कि तुम्हारी संस्कृति इतनी जल्दी खतरे में कैसे आ जाती है। तुम्हारी परेशानी यह है कि तुम जीवन को व्यापक रूप में नहीं देख पाती हो। यदि दुनिया के सभी लोग मुसलमान हो जाएँ या फिर ईसाई हो जाएँ उससे अंतर क्या होगा। यह अस्मिता, यह पहचान, यह संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं हैं। यह परिवर्तनशील है। इस पृथ्वी पर कुछ भी स्थाई नहीं हैं। अब तुम सोचो क्या सभी मुसलमान एक है? कोई शिया है तो कोई सुन्नी, कोई अहमदिया है तो कोई बोरी, फिर आगाखानी भी है और न जाने कितने अन्य। तुम्हें केवल इसी बात से प्रसन्न होना चाहिए कि दो इन्सान आपस में प्यार करते हैं और बाकी का जीवन इकठ्ठे बिताना चाहते है। अरे जब यह जीवन ही चिरस्थाई नहीं है तो मनुष्य द्वारा बनाई गई विवाह जैसी संस्था कैसे स्थाई हो सकती है?" राज पलक की वकालत करता दिखाई दे रहा था और जया की परेशानी का कोई हल मिलता नहीं दिखाई दे रहा था।

जया टूटने लगी है। दिलीप में कोई बदलाव आता नहीं दिखाई दे रहा। शराब, शराब और बस और शराब। अब तो जया को मारने भी लगा है। बैंक अकाउण्ट में से पैसे गायब हो जाते हैं। मकान की मॉरगेज की किश्त भी जानी बंद हो गई है। बिल्डिंग सोसाइटी की चिठ्ठी भी आ गई है कि किश्त न दिए जाने पर कुर्की करवा देंगे। जया का रक्तचाप बढ़ गया है। दिलीप के भाई ने भी पल्ला झाड़ लिया है। वह बेचारा भी क्या करे।

जया ने हिम्मत जुटा कर दिलीप से बात शुरू की है, मॉर्गेज के पैसे कहाँ गए?
- इस बार ज़रा हाथ तंग हो गया था।
- बार में देने के लिए पैसे हैं और मॉर्गेज के लिए हाथ तंग था। अगर घर हाथ से निकल गया तो जवान बेटी के साथ सड़क पर रहना पड़ेगा।
- बोला न हाथ तंग हो गया था।
- शराब पीने के लिए पैसे होते हैं और मॉर्गेज के लिए हाथ तंग हो जाता है!
- शट अप यू बिच! और शराब के नशे में धुत दिलीप के हाथ का गिलास चार फुट की जया के कंधे से टकराया।

न जाने अचानक जया में कैसे इतनी शक्ति आ गई कि उसने पास रखा कॉर्डलेस टेलिफोन उठा कर दिलीप पर दे मारा। और दिलीप ने जया को बालों से खींच कर सोफे पर पटक दिया। उसके बाद तो जया पर घूंसे और लातों की बरसात-सी शुरू हो गई। शोर सुन कर पलक कमरे में चली आई। माँ को पिटते देख घबरा गई। सीधे पुलिस को फोन किया। और पुलिस आ कर दिलीप को अपने साथ ले गई। माँ छोटे बच्चे की तरह सिसक रही थी और पलक एकाएक माँ बन गई थी। जया के बालों में हाथ फिरा रही थी। सुबह को होना था, हो गई। नशा उतरने के बाद पुलिस ने दिलीप को छोड़ दिया।
- इतना सब हो गया, और तुमने मुझे फोन तक नहीं किया? राज जया के विषय में चिन्तित था।

पचासवें जन्मदिन पर जया खुशी की जगह सुबक रही थी। मुंबई का जीवन बस एक फिल्म की तरह उसकी आँखों के सामने घूम रहा था। माँ बाप के प्यार से लेकर दिलीप की मार तक के जीवन के बारे में सोच रही थी। राज ने जया का चेहरा अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में देखा। जया उसके कन्धों पर सिर रख राज से लिपट गई।

- यह शरीर गंदगी का बक्सा है। वासना को त्याग दो। गुरु जी के सभी शब्द जैसे किसी कुँए की गहराई में से आते प्रतीत हो रहे थे। गहराई! हाँ वह पूरी तरह गहराई तक राज के साथ उतर जाना चाहती है। जीवन ने उसे सिवाय दर्द के कुछ और नहीं दिया है। आज राज उसके हर दुख को सोख कर अपने भीतर उतार लेगा। आज दोनों दिमाग से बात नहीं कर रहे। आज राज और जया के दिल एक हो रहे हैं।

शरीर का सुख क्या होता है, यह जया को जीवन में पहली बार अपने पचासवें जन्मदिन पर महसूस हुआ!

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24 मार्च 2003

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