|
आज फिर वही
हुआ। ठीक आठ बजे रात को बिजली गुल। दिव्या सहम गई। उसने राहुल
को अपनी छाती से चिपका लिया। किन्तु बहुत जल्दी ही उसे अपना
निर्णय बदलन देना पड़ा। गर्मी के मारे राहुल ने रोना शुरू कर
दिया था। राहुल की चिल्लाहट जैसे अन्धेरे से टकराकर एक गूँज-सी
पैदा करने लगी थी। अन्धेरा धीरे-धीरे ठोस हुआ जा रहा था। राहुल
चिल्लाए जा रहा था और चीख़ें अन्धेरे से टकराए जा रही थीं।
1
बाहर एक ऑटो-रिक्शा रुकने की आवाज हुई। दिव्या की जान में जान
आई। शायद प्रभात आ गया है। कल उसके देर से आने पर दोनों में
जमकर युद्ध हुआ था। अब तो यह रोज़ ही होने लगा है। यह छोट-छोटे
युद्ध किसी-किसी दिन महायुद्ध का रूप धारण कर लेते हैं। कल रात
एक वैसी ही अन्धेरी रात थी। चिपचिपाहट से गीली हुई रात। प्रभात
रात के एक बजे घर लौटा था - शराब के नशे में धुत! कितना अच्छा
इन्सान हुआ करता था यह आदमी। क्या हो गया है उसे! किसकी नज़र
लग गयी है उनके घर को। कितनी उमंगों, तरंगों के साथ प्रभात से
सम्बन्ध जोड़े थे दिव्या
ने। जीवन एक गीत जैसा मधुर बन गया था।
1
अभी तक स्कूटर रिक्शा से कोई गीत गुनगुनाने की आवाज नहीं आई।
प्रभात अपने आगमन की सूचना तलत महमूद की किसी ग़ज़ल को गुनगुना
कर ही देता था। मोमबत्ती कहाँ गई?
|