कर्नल साहब की पत्नी ऐनी स्वभाव से शांत सौम्य चुप
रहने वाली थीं। जब वे नौकरी में थीं तब स्टोररूम की इंचार्ज थीं, वहीं कर्नल साहब
से उनकी मुलाक़ात हुई।
एक अजीब आकर्षण से दोनों बँधते गए। और एक दिन
कर्नल साहब ने हमेशा 'यस सर, यस सर' कहने वाली एनी को घेर लिया और बोले, "ऐनी मुझ
से शादी करोगी?" ऐनी को लगा एक साथ हज़ार-हज़ार बल्ब की रोशनी से उनकी आँखें
सामना नहीं कर पा रही हैं। उनकी आँखें सच ही बंद हो गई और चेहरे पर एक नरम
मुस्कुराहट फैल गई।
बिना कुछ कहे वहाँ से चली गईं। कर्नल साहब की
आँखें थोड़ी सिकुड़ीं फिर होठों को गोल कर के सीटी बजाते हुए कमरे में घूमने लगे।
एनी आईं दूसरे दिन और बोलीं, "मैंने नौकरी से इस्तीफ़ा देने का निश्चय किया है।"
"कब से?" पूछते हुए कर्नल साहब ने अपनी दोनों बाहें फैला दीं। "जब भी, आज से।"
"यस डियर," और तब से आज तक एनी ने कर्नल साहब की हर बात के जवाब में यस सर की जगह
यस डियर ही कहा था। कर्नल साहब ने भी उन्हें अपने सबॉर्डीनेट की तरह हमेशा समझा।
अभी वह अख़बार पढ़ कर चाय की आख़री बूँद गले के नीचे उतार रहे थे कि फ़ोन की घंटी
बजने लगी, और उसी समय उनकी पत्नी ऐनी कंज़रवेटरी में दाखिल हुईं।
फ़ोन उठा कर हेलो कहा, दो चार वाक्य के बाद ही
उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया, उन्होंने फ़ोन पटक कर रख दिया और ऐनी से बोले,
"सुन लिया अपने बेटे के बारे में, अब वह कभी भी इस घर में नहीं आ सकता। उस पापी की
यही सज़ा है, एड पॉज़िटिव ब्लड-टेस्ट। मैं उसकी शकल भी नहीं देखना चाहता। इस घर में
कोई भी उस नीच से नहीं मिलेगा।" कर्नल साहब के शब्दकोष में आदेश ही आदेश थे।
कहीं समझौता नहीं, रौबदाब की दुनिया के मालिक कर्नल साहब ने अपना फ़ैसला सुना दिया।
स्कॉटलैंड के रहले वाले कर्नल साहब के दिल में जमी हुई बर्फ़ बसंत ऋतु में भी नहीं
पिघलती थी। उनका वजूद कर्तव्य की दुनिया में वीड की तरह फैल कर सब कुछ शुष्क बना
गया था। उनका स्वयं का जीवन पथरीली ज़मीन को नापते हुए कठोर अनुशासन में बीता था।
यह फ़ैसला उनका हुकुम था जिसे टालने की ताक़त किसी
में भी न थी। यह ऐनी अच्छी तरह से जानती थीं। स्वभाव से भीरु ऐनी कुछ भी न कह पाईं,
एक आह उठी उसे भी सीने में दबा लिया। जानती थीं उनके एक आदेश पर सब कुछ जहाँ का
तहाँ रुक जाता था। ग़लत या सही, यों तो कितनी ही बार अनुशासन को लेकर कर्नल साहब ने
उनकी ममता को झकझोर कर रख दिया था, पर इस तरह बीमार बेटे से न मिलने का, संबंध
तोड़ने का हुकुम सुन कर एकदम सकते में आ गईं।
मन में कितने तर्क-वितर्क किए, बीमारी तो किसी को
भी हो सकती है, कोई एक ही वजह तो होती नहीं पर यही बात वह कर्नल साहब को नहीं समझा
सकती थीं, सारे तर्क ग़लत सारे लॉजिक बेकार- किससे कहें क्या कहें। घबड़ाहट में
बेटी को फ़ोन किया, मिशेल. . .मिशेल आगे कुछ न कह सकीं, फिर अपने को सम्हाला, बोली
सैली का फ़ोन, माइकेल घबड़ाहट में मिशेल के हाथ से फ़ोन गिर गया, वह चीखी, "ममा
क्या हुआ? माइकेल को क्या हुआ।" फ़ोन उठा कर फिर बोली, "ममा प्लीज़, गॉडस सेक
बोलो।" इसी समय कर्नल साहब आ गए और एनी के हाथ से फ़ोन ले लिया और बड़ी तल्ख़ी
से बोले, "मिशेल लिसेन टु मी, फ्रॉम नाउ आन चिल्ड्रेन ऐंड यू विल नॉट हैव एनी
रिलेशनशिप विद माइकेल, वी विल कीप अवे फ्रॉम हिम, ही इज़ ए सिनर। आई न्यू दैट विल
बी हिज़ एंड।" कह कर खट से फ़ोन रख दिया।
मिशेल को लगा इस समय पपा से बात करना बेकार है,
उनके घूमने जाने का समय हो रहा है। अत: थोड़ी देर में माँ को फ़ोन करेगी, उसे थोड़ी
तसल्ली हुई कि माइकेल का कोई एक्सीडेंट वगै़रह नहीं हुआ है वरना ममा का फ़ोन सुन कर
उसकी तो जान ही निकल गई थी। मिशेल जानती थी कि पपा माइकेल से कभी भी खुश नहीं
रहते, घर में उसको लेकर कुछ न कुछ हंगामा होता ही रहता है वैसा ही कुछ हुआ होगा।
माइकेल और मिशेल जुड़वा हैं, उनकी जान एक दूसरे में बसती है। दोनों साथ एक ही
नर्सरी में जाते थे, बाद में भी एक ही प्रेप स्कूल में जाते थे। मिशेल बड़ी थी,
छाया की तरह माइकेल के साथ लगी रहती। कभी माइकेल गिर जाता तो मिशेल उसे उठा कर
जल्दी से प्यार करती, कहती- माइकेल मेरा हाथ पकड़ो, मेरे साथ चलो। मिशेल उसकी
छोटी-छोटी ग़लतियों को छिपा जाती, पर आज क्या हुआ है, कुछ समझ न पा रही थी।
वह उठी, घड़ी देखी, सोचा अब तो पपा चले गए होंगे।
अब फ़ोन करूँ तो पता चले कि बात क्या है- क़रीब तीन बजे तक बच्चों को बाहर भेज कर
उसने फिर फ़ोन मिलाया, इस समय तक ऐनी भी थोड़ी शांत हो गईं थीं। फ़ोन की घंटी सुनते
ही ऐनी दौड़ कर आईं, वह समझ गईं कि मिशेल ही होंगी। मिशेल ने पूछा, "ममा ऐसा क्या
हुआ?'' काँपती आवाज़ में ऐनी ने बताया कि सैली का फ़ोन आया था कि माइकेल की तबियत
ठीक नहीं रहती थी, ब्लड टेस्ट कराने पर पॉज़िटिव निकला," कहते-कहते उनकी हिचकी बँध
गई, जैसे-तैसे वह इतना ही कह पाईं कि वह बीमार है। "ममा, यह क्या कह रही हो?
क्या यह सच है? नहीं, नहीं ज़रूर कुछ भूल हुई है, ऐसा कभी नहीं हो सकता, अब क्या
होगा?" मिशेल जानती थी कि माइकेल उसके बच्चों के बिना नहीं रह सकता, वह मुरझा
जाएगा, उसने देखा है कैसे बच्चों के बीमार पड़ने पर माइकेल सारी-सारी रात कंधे पर
रखता था, दवा देना बाहर ले जाना खेलना सब कुछ इतने लगन और प्यार से करता था और आज
वह उन्हें छू भी नहीं सकेगा। "नहीं! नहीं! पपा ठीक ही कहते हैं, कैसे वह बच्चों के
साथ खेलेगा? कैसे उन्हें प्यार करेगा? माँ यह तो ठीक नहीं है, माँ पपा ठीक ही कहते
हैं। अब माइकेल से मिलना ठीक नहीं है। अच्छा, मैं तुम्हारे पास आऊँगी," कह कर उसने
फ़ोन रख दिया।
ऐनी कहना चाहती थीं, ''मेरे पास नहीं, माइकेल के
पास जाओ, लेकिन मिशेल की यह बात सुनकर कि पपा ठीक ही कहते हैं वह चुप रह गईं। वह
समझ गईं कि घृणा की एक न ढहनेवाली दीवार खड़ी हो गई है और वह सारी ज़िंदगी उस से सर
टकराती रहेंगी। ऐनी के आसपास बर्फ़ ही बर्फ़ थी। कैथलिक धर्म के माननेवाले कर्नल
साहब दया और ममता को इंसान की कमज़ोरी मानते थे। सोचते थे कि इस पाप की सज़ा माइकेल
को मिलनी ही चाहिए और वह सज़ा है कि माइकेल से सब लोग अपने संबंध तोड़ लें। ऐनी का
मन होता कैसे बीमार बेटे को अपनी बाहों में भर लें और कहें तुम अच्छे हो जाओगे,
घबड़ाओ नहीं बेटा मैं हूँ न तुम्हारे पास पर नहीं, उन्हें तो फ़ोन करने की इजाज़त
भी नहीं है, जाना तो दूर की बात है। दो दिन तक वह असह्य पीड़ा से छटपटाती रहीं।
इधर माइकेल का मन जब कुछ शांत हुआ तो उसने घर फ़ोन
किया - फ़ोन उठाया ऐनी ने। माइकेल 'ममा-ममा' कहकर फूट-फूट कर रोने लगा, "ममा, मुझे
बुला लो। मेरा मन कैसा-कैसा हो रहा है - मुझे माफ़ कर दो।" ऐनी सुनती रहीं, गला
रूँध गया, आवाज़ न निकली, काश कि कह देतीं- बेटा, मेरा बेटा, तू घबड़ा नहीं, मैं
तेरे पास आती हूँ। मैं अब तुझे अपने से दूर नहीं जाने दूँगी। एक्सटेंशन पर कर्नल
बिलकुल नपे-तुले स्टील जैसे ठंडे शब्दों में बोले, "क्यों फ़ोन किया है?" उधर से
पपा-पपा की भीगी आवाज़ सुन कर, सख़्त स्वर में कहा, "मत कहो मुझे पपा। तुम मेरे लिए
मर चुके हो, दुबारा फ़ोन मत करना, तुमसे मेरे सारे संबंध ख़तम।" और फ़ोन रख दिया।
माइकेल चुप हो गया। वह अपने मन को बार-बार समझाने
का कोशिश करता, शायद पपा उसे बुला लेंगे, लेकिन उनकी आवाज़ इतनी सर्द थी कि वह समझ
गया अब कुछ नहीं होगा। माइकेल का मन ठिकाने नहीं था। एक तो बीमारी की दहशत, दूसरे
घर में सब की निष्ठुरता, क्या माँ-बाप भी प्यार में शर्तें लगाते हैं। उसे मालूम था
कि पपा के स्टैंडर्ड बड़े ही ऊँचे हैं साथ ही बड़े निर्मम। माइकेल को गाने का शौक
था, पर कर्नल साहब के लिए यह कोरी भावुकता और वह भी पॉप म्यू़ज़िक उनका सर्वांग
चिढ़ और गुस्से से काँप जाता था। उनका बेटा पॉप म्यूज़िक गाए इससे बड़ी बेइज़्ज़ती
और क्या होगी? यह उन्हें कतई मंजूर न था। माइकेल की उन ऊँचाइयों को छूने को कभी
इच्छा ही नहीं होती। वह अपने कमरे में बैठ कर गिटार बजाता तो कर्नल साहब पैर पटकते
चले जाते। अपने क्रोध को ज़ाहिर करने का उनका यही तरीक़ा था। पर जितना ही माइकेल
उनकी बात मानने की कोशिश करता उतना ही वह उसके बस के बाहर होता जाता।
वह कलम लेकर बैठ जाता तो कितना कुछ लिख डालता।
उसने एक बार पपा को दिखाया था, लेकिन उन्होंने उसकी कॉपी उठा कर दूर रख दी, और उसे
युद्ध के किस्से सुनाने लगे। उनकी उपेक्षा देख कर तब उसका मन हुआ था कि वह बस कविता
ही करेगा यही उसे अच्छा लगता है। लेकिन फिर अनजाने ही एक गाँठ पड़ी थी। और कोर्स
वर्क छोड़ कर उसने कुछ भी नहीं लिखा था, न दिखाया। पपा से मतलब ही क्या? वह दिवा
स्वप्न देखता, कर्नल की दुनिया में सपनों की मनाही थी। कभी-कभी वह खाने की मेज़ पर
किस्से सुनाते अपनी बहादुरी के कैसे उनके एक इशारे पर तबाही फैलाने वाले बम बरसाए
जाते हैं। पपा चाहते हैं कि मैं हंटिग पर जाऊँ उसे याद है कि एक बार वह गया था। तब
घबड़ा कर उसने आँख मींच ली थी। देखा था फॉक्स कैसे पूरी ताक़त से अपनी जान लेकर
भागती थी, उसका दम फूलता था वह कितना रोया था, उसकी आँखों में कैसी बेबसी थी।
माइकेल को लगा वह भी उसी फॉक्स की तरह है जो भागना चाहता है पर घिरा है, शिकारी
कुत्तों से जो उसे नोच खाने को तैय्यार हैं। वही बेबसी उसकी आँखों में भर गई है। वह
इन जबड़ों से कभी नहीं छूट पाएगा, कभी नहीं, कभी नहीं, हताश वहीं लेट गया। आँसू
बहते रहे माइकेल ने उन्हें पोछने का कोई प्रयास नहीं किया। शायद ममा भी उसी तरह
मजबूर हो कर खड़ी हैं कुछ न कर पाने की हालत में। लेकिन मिशेल ने भी उसे फ़ोन नहीं
किया। मिशेल तुम तो फ़ोन करोगी।
फिर उसे वही उत्तेजित करने वाला संगीत, वही डरावनी
आवाज़ 'मत कहो मुझे पपा, मेरे लिए तुम मर चुके हो अब कभी फ़ोन न करना,' सुनाई देने
लगी। पिता पुत्र के संबंध कभी भावनाओं के स्तर पर बने ही नहीं। जैसे कर्नल साहब
पालनकर्ता हों जन्मदाता नहीं, पर जन्म तो दिया फिर प्यार की वह उष्मा जो आराम देती
है, भावनात्मक सुरक्षा देती है वह क्यों नहीं दे पाए। छोटा था तो माँ के साथ चिपका
रहता, पपा की सर्द निगाहों से बचने की कोशिश रहती। ज़रा बड़ा हुआ तो मिशेल ने उसे
इतना प्यार दिया, इतनी सुरक्षा दी कि उसे किसी चीज़ की ज़रूरत ही न रह गई। लेकिन
मिशेल ने उसे फ़ोन क्यों नहीं किया? शायद करेगी कहेगी माइकेल मैं हूँ, अपनी उँगली
पकड़ा देगी, कहेगी- 'माइकेल चलो, मेरे साथ चलो, तुम्हें कुछ नहीं होगा।' एक मिनट को
वह भूल गया कि वह यहाँ अकेला पड़ा है। |