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कहानियाँ 

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है यू.एस.ए से
सुषम बेदी की कहानी—
सड़क की लय


नेहा ने सुना पापा कहे जा रहे थे - ''सड़क की भी एक लय होती है। इसे सुनो, पहचानो और उसी हिसाब से गाड़ी चलाओ। जब तुम मैनहैट्टन में चलाती हो तो यहाँ सैंकड़ों गाड़ियाँ एक साथ चलती हैं। बार-बार लाल बत्ती होने से रुकना पड़ता है, इसीलिए गाड़ी की स्पीड खूब धीमी रखनी चाहिए ताकि घचके से ब्रेक लगाने की ज़रूरत ना पड़े।''

परसों नेहा का ड्राइविंग का इम्तहान है। यों तो नेहा ड्राइविंग स्कूल में कार चलाना सीखती रही है पर एक बार टेस्ट में फेल होने के बाद वह काफी नर्वस है, और पापा ने कहा कि वह इसका कुछ अभ्यास करवा देंगे। पापा की तो ड्राइविंग बढ़िया होती ही है। कितने बरसों से तो चला रहे हैं वे गाड़ी।

छोटी थी तो ज़िद करती थी गाड़ी चलाने की! पर तब पापा कहा करते थे, बड़ी हो जाओ तब सिखाएँगे तुमको गाड़ी। पर कालेज जाने पर उसे वक्त ही नहीं मिला। अब तो नौकरी भी शुरू हो गई और उसे होश आया है गाड़ी सीखने का।

तेईस बरस की उम्र में गाड़ी चलाना सीख रही है। सबर्ब में रहने वाले लड़के लड़कियाँ तो सोलह साल के होते ही चलाने लगते हैं। पर नेहा तो मैनहैट्टन में रहती है। यहाँ गाड़ी की वैसी ज़रूरत पड़ती ही नहीं वर्ना वह भी पहले सीख जाती। भैया भी तो लेट सीखा था, नौकरी लगने पर ही।

ममा तो आजतक नहीं सीखीं। तो इतनी कोई बात नहीं देर से सीखने में।
पर नेहा अब तैयार है हर चीज़ के लिए। यों नेहा हर काम सीखने के लिए वक्त से पहले तैयार रहती है। उसके स्कूल की टीचर भी यही कहा करती थी। यही बात है कि उसे हर काम आसान लगा करता था। क्लास में वह हमेशा आगे ही रही। पर उसके इसी गुण को लेकर ममी की सहेली ने नेहा को प्रिकाशस बच्ची कहा था यानी कि वक्त से पहले ही ''प्रिपेयर्ड'' । वह गुण की तरह नहीं बल्कि एक दोष की तरह ही सुनाया गया था यों बात भी कुछ अजीब-सी हो गई थी। तब वह ग्यारह बरस की रही होगी। क्लास में जैनी ने सब लड़कियों से पूछा था तुम में से कौन कौन वर्जिन है।

नेहा को वर्जिन का मतलब ही नहीं पता था। पर उसने देखा कि जिस लड़की ने भी कहा कि वह वर्जिन है उसका जैनी और उसकी सहेलियों ने खूब मज़ाक उड़ाया था। ना ही नेहा की हिम्मत पड़ती थी अपनी सहपाठियों पर अनजानापन ज़ाहिर करने की। पर घर आकर उसने पहला काम यही किया कि ममी के अपनी सहेली के साथ बैठे होने पर भी ध्यान न दे टपककर सवाल पूछ लिया, ''ममी वर्जिन क्या होता है?''

ममी अभी सवाल के प्रति सतर्क भी नहीं हुई थीं कि नेहा ने जोड़ दिया, ''मैं तो वर्जिन नहीं हूँ न ममी?''
इससे पहले कि ममी के अवाक चेहरे पर कोई हरकत होती ममी की सहेली बोल उठी थीं, ''माई गॉड, कितनी प्रिकाशस बच्ची है। मुँह से दूध निकला नहीं कि वर्जिनिटी के सवाल उठने लगे। भई अभी तो तुम्हारे पढ़ने खेलने की उम्र है। यह सब जानकर करना भी क्या है?

ममी ने मानो होश में आते हुए कहा था, ''नेहा तुम ते इतनी अच्छी इतनी अकलमंद बच्ची हो तुम्हें इन सब बातों में नहीं पड़ना चाहिए। ऐसी अमरीकी लड़कियों की संगत में पड़ो ही ना। बस अपना फोकस पढ़ाई पर ही रखो।

अपनी नज़र में आज भी नेहा उतनी ही भोली या समझदार थी जितनी कि सवाल पूछने से पहले लेकिन उसे लगा कि सवाल मात्र पूछने से ही वह ममी पापा की नज़र में कुछ और हो गई थी। तब से नेहा को लगा कि ममी पापा को वह सबसे प्यारी तभी लगती है जबकि वह भोली नन्हीं बच्ची बनी रहती है। जिसे कुछ नहीं मालूम दुनिया दीन का। पापा बेहद खुश होते जब वह तोतली ज़बान में हिन्दी में बतियाती।

पर जहाँ स्कूल के काम का सवाल था वे उससे पूरी बल्कि सामान्य से ज़्यादा परिपक्वता की उम्मीद करते। उसे याद है कि एक बार उसके इम्तहान में नम्बर कम आए थे तो उन्होंने कहा था, ''डोंट एँड अप बिइंग मेडयाकर यू मस्ट एक्सेल इन योर स्टडीज़।''

अब इतने बरसों बाद भी परिपक्वता या अपरिपक्वता की वह द्विविधा शायद सुलझी नहीं दिखती। किन चीज़ों में बढ़िया हो जाना चाहिए और किन में नहीं इसका माप तोल चलता ही रहता है।

एक बार गाड़ी चलाना सीखते-सीखते वे लोग मैनहैट्टेन को दाएँ बाएँ से घेरने वाली हाईवे पर आ गए थे। पर नेहा अभी भी धीमी गति से ही चला रही थी। पापा बोले जब तुम हाईवे पर चलती हो ते स्पीड तेज़ रखनी होती है। सड़क भी खूब चौड़ी होती है और लाल बत्तियाँ भी नहीं होतीं। साथ ही दूसरी कारें भी इतनी तेज़ी से चल रही होती हैं कि अगर तुम धीमा चलाओगी तो सारे यातायात में व्यतिक्रम और गतिरोध पैदा हो जाएगा। इसी से कह रहा हूँ कि सड़क की लय को सबसे पहले समझना चाहिए। तभी तुम अच्छी और सेफ ड्राइवर बन सकती हो।

नेहा अब बहुत-सी उन चीज़ों के लिए भी तैयार है जिसे पापा जानते समझते हुए भी चर्चा से बचते आए हैं।

नेहा का महसूस होता है कि ममी पापा इस बारे में ही स्पष्ट नहीं है कि उनकी बेटी को लड़का अपनी मर्ज़ी से अपने आप खोजना चाहिए या कि वे इसके लिए 'इंतज़ाम करेंगे।' ममी की बड़ी बहन की बेटी की शादी जोधपुर रहने वाले एक लड़के से तय हुई थी। यहाँ आने के बाद उसका अजीब-सा ही सलूक रहा और अंतत: उसका शादी का हश्र तलाक में हुआ था। तभी से ममी नेहा की किसी हिन्दुतान के लड़के से शादी तय करने को खिलाफ़ थीं।

पर अब नेहा के बड़ी हो जाने के बाद कभी तो वह कह देतीं कि फलाँ आँटी तुमको एक लड़के से मिलवाना चाहती हैं। यह भी साथ ही जोड़ देतीं कि तुम मिलना चाहती हो तो मिलो वर्ना ऐसी कोई ज़बरदस्ती नहीं। ममी कहतीं, ''आई डोंट वाँट यू तू ह्युमिलिएटड।''
कभी वह कह डालतीं, ''यों ठीक है पढ़ती रहो और नौकरी भी करो पर देखा जाए तो बाइस तेईस साल में शादी तो हो ही जानी चाहिए लड़कियों की। मैं तो इक्कीस भी पूरे नही कर पाई थी जब शादी हुई।''

नेहा को लगा कि ममी के रवैये में बदलाव इस पर भी मुनस्सर करता था कि उन दिनों वे किस से मिल रहीं थी। अपनी अमरीकी सहेलियों से, कुछ पुराने ख़यालों की हिन्दुस्तानी सहेलियों से, या किसी रिश्तेदार से। ममी उनके सवालों और टिप्पणियों से बहुत जल्दी बहक जाती।

इसलिए शायद ममी नेहा से कभी यह भी कह देतीं, ''देख हमारा तो जमाना और था यहाँ कोई शादी की जल्दी नहीं मचाता। जब कोई ढंग का टकरा जाए तो कर लो वर्ना अपने काम में लगे रहो। कोई बंदिश तो नहीं। हिन्दुस्तान में तो अब तक सारे रिश्तेदार पीछे पड़ गए होते कि भई लड़की को क्यों अभी तक कुँवारा बैठा रखा है।

और साथ ही जोड़ देतीं, ''वैसे तो शादी हो जानी चाहिए लड़कियों की ठीक उम्र में वर्ना न तो अच्छे लड़के हीं बचे रहते हैं और लड़कियों का स्वभाव भी इतना पक्का हो जाता है कि मन माफिक लड़का मिलना ही मुश्किल हो जाता है।''

नेहा को मालूम था कि ममी का इशारा उसकी सहेली अंशुल की ओर था। अंशुल उनत्तीस बरस की हो चली थी। तीन साल पहले एक भारतीय मूल के लड़के के साथ उसका संबंध बढ़ा था और दोनों एक साथ रहने लगे थे। फिर साल भर बाद उस लड़के ने कहा था कि उसका अंशुल से शादी का विचार नहीं। वे चाहें तो यों ही साथ रहते रहें। कभी भविष्य में भी उसका शादी का इरादा होगा इसका भी कोई आश्वासन नहीं था।

अंशुल ने रिश्ता तोड़ लिया था। उसके बाद जो भी रिश्ता बने उसका हश्र कुछ ऐसा ही हो रहा था। एक लैटिन अमरीकी लड़का था जिसके साथ वह शादी नहीं करना चाहती थी। एक काला लड़का था जिससे शादी करने से उसने माँ बाप ने सख़्त विरोध किया था। यों माँ बाप की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर चाहे वह शादी कर ही लेती पर वह रिश्ता खुद ही टूट गया।

अब वह अचानक उनतीस बरस की उम्र में सन्यासिन बनने की ठान कर बैठ गई थी। न तो अब वह वैसे झमक-झमक गहने पहनती थी न ही चेहरे पर गहरा मेकअप करती। सफ़ेद साड़ी पहन घंटो ध्यान में लगी रहती। उसने अपने अपार्टमेंट में ही एक कोने में मूर्तियाँ रख कर मंदिर बना लिया था।

आए दिन दक्षिण एशियाई सांस्कृतिक कार्यक्रमों को संगठित करती और नारीवाद की हिमायत करती। कितनी कड़वाहट भर गई थी अंशुल में मर्दजात के प्रति। एक उग्रनारीवादी बन कर उसने यही कड़वाहट सारे समाज में फैलाने का बीड़ा उठा लिया था।
नेहा उस कड़वाहट से बचना चाहती हैं।

ममी को डर लगता कि ठीक उम्र में नेहा किसी से बंधी नहीं तो पता नहीं किस दिशा में मुड़ जाए। अंशुल का ज़िक्र कर वह कह देती, ''यह भी कोई उम्र है सन्यास लेने की। उनत्तीस बरस में तो लड़की सर से पाँव तक गृहस्थी में रमी होती है। तुम्हारी पीढ़ी की तो बातें ही निराली है। कभी तो इतना राग रंग और कभी धूनी रमा लो।''

नेहा हँस देती, ''ममी ये सब फ़ैड हैं। कल को अंशुल को कोई मन पसंद लड़का मिल गया तो सन्यास वन्यास सब भूल जाएगी। उसे रोज़ ही जीने का कोई नया मक़सद खोजना होता है।''
''वह तो ठीक है पर कुछ टिकाव भी होना चाहिए ज़िन्दगी में। अब इस उम्र में तो किसी के साथ बंध ही जाना चाहिए न?''
नेहा को खुद भी तो नहीं पता कि सही दिशा क्या हैं।

अपने माँ बाप के तरीके की तयशुदा शादी उसकी कल्पना के बाहर है। बाकी किसी से रिश्ता जोड़ने में वह भी घबराती है। जो भी रिश्ता जोड़ता है उसे अंत तक पूरे चरम तक पहुँचाना होता है। तभी कोई गंभीरता से विवाह की बात सोचता है। और इसी चरम तक आज़मा लेने के दौरान पता नहीं कब क्या चटख जाएगा कि पूरा रिश्ता ही चकनाचूर हो जाता है। उसकी सहेलियों के साथ यही कुछ तो हो रहा है। इसी डर से वह किसी लड़के के साथ गहरी आत्मीयता का रिश्ता नहीं जोड़ पाई। मन के रिश्ते से शरीर के रिश्ते को परे रखना नामुमकिन हो जाता है। बल्कि यह भी एक शर्त हो जाती है कि मन को समर्पित कर दिया तो शरीर क्या चीज़ है। उसे उलझने में हिचक क्यों?

इसी उलझन में उसका शरीर अभी तक कुँवारा है। अतृप्त है। पर वह कब तक खुद को सँभाल कर रखती रहेगी। ममी हमेशा उसे खुद को बचाए रखने के लिए शादी तक कुँवारापन बनाए रखने का पाठ बचपन से पढ़ाती रही हैं।

क्या जब तक सही लड़का नहीं मिलता वह यों ही रहे? केवल शरीर की तृप्ति के लिए शादी के बंधन में पड़ जाना तो अक्ल की बात नहीं। ऐसा नहीं होने देगी वह?
नेहा समझ नहीं पाती कि ममी सचमुच मे क्या चाहती है! कभी तो इतने खुले दिमाग वाली अमरीकी महिलाओं जैसी बन जाती हैं तो कभी एकदम दकियानूसी।

उस दिन उसने सुना ममी की एक हिन्दुस्तानी सहेली कह रही थीं, ''आजकल तो ज़माना बदल गया है क्या पता कल को लड़की आकर यह कहे कि मैं फलाँ लड़के के साथ रहना चाहती हूँ शादी किए बग़ैर। हमारे रोकने से कोई सुनेंगे भला? मुझे तो ऐसे ख़याल डराते रहते हैं। अगर कुछ ऐसा हुआ तो सारे समाज में बदनामी हो जाएगी।

शायद उन्हीं की बात का असर होगा कि अगले दिन ममी नेहा से पूछ रही थीं, ''तेरे दिमाग में कोई लड़का है तो हमे बता दे। अगर तुम किसी के साथ वाथ रहने की सोच रही हो तो हम तुम्हारी मँगनी किए देते हैं। यों ही नहीं रहने दूँगी मैं।''

नेहा खूब सोच रही है, आजकल सोचती ही रहती है कैसे सही रास्ते पर उतारे अपनी ज़िन्दगी।
नेहा के पास बहुत कुछ है बताने को! ममी की ऐसी बातें उसे आश्वासन नहीं देतीं और डरा देती हैं।

नेहा अभी किसी से मँगनी नहीं करना चाहती, वह सचमुच सिर्फ़ साथ रहकर देखना चाहती है। अभी उसका शादी में बँधने का इरादा नहीं। फिर भी किसी के प्रेम और साथ से खुद को वंचित नहीं रखना चाहती। ममी ने भी तो इक्कीस की उम्र में शादी कर ली थी। वह तो तेईस पार कर लगभग चौबीस की हो चुकी है। क्या वह ममी को बता सकती है कि वह लड़का साथ ही पढ़ता हुआ एक अमरीकी है? वह इस तरह से महात्वाकांक्षी नहीं जैसा ममी पापा अपने जवाई की कल्पना करते हैं। वह डॉक्टर, इंजिनियर या वकिल कुछ भी नहीं बनना चाहता। वह स्कूल टीचर है और इस देश के बच्चों को स्कूली शिक्षा की अच्छी नींव देने में विश्वास रखता है। उसे बच्चों के साथ काम करना पसंद है और वही कर रहा है, करना चाहता है। कैसे बताएगी उनको? वे तो कैसा मुँह बनाएँगे। ममी सोचेगी कैसा लद्धड़ लड़का चुना है स्कूली टीचर? वह ममी के चेहरे पर आए उतार चढ़ाव की बहुत सही कल्पना कर सकती है। उसके बाद ममी बहुत देर तक उससे बात नहीं करेंगी। सोंच में पड़ जाएँगी। शायद रोएँ धोयें भी कि उनके उम्र भर के ख़याली पुलावों पर पानी पड़ गया। कहाँ उनकी बेटी तो आर्किटेक्ट है और जँवाई स्कूली टीचर?

यों है तो नेहा के ही स्कूल ऑफ आर्किटेक्ट का स्नातक पर सर पर हाइस्कूल के बच्चों का दिमाग दुरूस्त करने का फितूर! ममी शायद किसी को उसके धंधे के बारे में बताना भी न चाहें। उसने ममी की प्रतिक्रियाओं को बहुत पहले से जान लिया है। उसकी एक सहेली के बारे में वे पहले ही कह चुकी है, ''नियति खुद ही इतनी ब्राइट और खुबसूरत लड़की है। यह एक स्कूली टीचर के शिकंजे में कैसे फँस गई? नेहा को ममी के कहने के अंदाज़ से बहुत बुरा लगा था। उसने नियति की पैरवी करते हुए ममी को समझाने की कोशिश भी की थी, ''ममी वह तो बड़ा आइडियलिस्टिक लड़का है। उसका ढेर सारे पैसे कमाने में विश्वास नहीं है। वह बच्चों की ज़िन्दगी बनाना चाहता है। ममी अगर स्कूली टीचिंग में अच्छे और ब्राइट लोग नहीं जाएँगे तो इस देश के नागरिक कैसे अच्छे बनेंगे? सब कोई युनिवर्सिटी में ही पढ़ने लगें और स्कूलों में न पढ़ाना चाहें तो युनिवर्सिटियों में पढ़ने कौन आएगा?''

ममी ने उसे चुप करा दिया था, ''फिक्र मत कर बहुत हैं स्कूलों में पढ़नेवाले। मैं तो सिर्फ़ यह कहना चाहती थी कि नियति उससे कही बेहतर के योग्य है। बाकी सयाना कौवा गू पर ही बैठे तो कोई क्या कर सकता है?''

नेहा फिर भी पैरवी करती ही रही थी, ''ममी अभी अगर वह स्कूली टीचर है तो इसका यह मतलब नहीं कि सारी उम्र यही बना रहेगा। यहाँ लोग प्रोफेशन बदलते रहते हैं। कल को युनिवर्सिटी में पी-एच. डी. में दाखिला लेकर बाद में युनिवर्सिटी का प्रोफेसर भी बन सकता है। या जो कुछ भी करना चाहे। यों स्कूली टीचर की तनख्वाह भी कालेज प्रोफेसर से कम नहीं होती बाकी यहाँ हिन्दुस्तान वाली बात नहीं है कि एक बार जो बन गए वही रास्ता सारी उम्र के लिए हो गया।''

''ठीक है ज़्यादा बड़ बड़ मत कर। हर वक्त मुझी को शिक्षा देती रहती है।'' ममी को इस बात का भी गुस्सा आता है कि बजाय वे अपनी बेटी को शिक्षा दें उल्टे वहीं उनको भाषण देती रहती है जैसे कि वह अनुभवी दादी अम्मा हो और ममी मात्र एक बच्ची? बच्ची को आज़ादी देने का यह फल मिल रहा है उनको! पर पापा से उसकी इस तरह पेश आने की हिम्मत नहीं होती। पापा से डरती है और उनकी बात ध्यान से समझती भी है। माँ को तो कुछ समझती ही नहीं।

पापा जब उसे सड़क की लय समझा रहे थे तो नेहा को लगा जैसे पापा बहुत कुछ समझते हैं। अब वे उसकी तोतली बोली सुनने की फ़रमाइश भी नहीं करते। ताकि उस बात का अपने ऊपर हँसते हुए ज़िक्र करते हैं कि कैसे उनको यह बोली पहले मीठी लगा करती थी।

पर अब नेहा बड़ी हो गई है और उसे बड़ों की तरह ही बोलना चाहिए। सोचते सोचते अचानक उसकी हिम्मत पड़ गई थी, ''पापा ड्राइविंग प्रैक्टिस के बाद मुझे पीटर के यहाँ छोड़ देंगे?''
''पीटर कौन? यह कोई नया दोस्त है तुम्हारा?''
''नया नहीं स्कूल में साथ पढ़ता था अब वह फिर न्यू यार्क में लौट आया है।''
''कहाँ छोड़ना है?''
''फोर्टी फिफ्थ स्ट्रीट पर।''
''क्या जगह? कोई रेस्ट्राँ है?''
''नहीं।''
''रहता हैं वहाँ?''
''हाँ'', कुछ हिचक के साथ नेहा ने उगला था छोटासा 'हाँ'
पापा ने हैरानी साफ़ न झलकाते हुए पूछा था,
''तुम उसके अपार्टमेंट में जाओगी?''
''मेरी उससे बहुत पुरानी दोस्ती है।''

पापा का भय, कर्तव्यपरायणता, समझदारी सभी कुछ उनके चेहरे पर भरपूर उतर आए थे। कुछ सचेष्ट संयमित स्वर में बोले, ''लेकिन जानती हो न किसी लड़के के अपार्टमेंट में इस तरह जाना क्या वहाँ और भी लोग होंगे?''

''मुझे मालूम नहीं पर शायद मुझी को बुलाया है।'' वह चाहती थी कि पापा सच जान जाएँ और सच बोलने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी।
पापा जान जाएँ और चुप रह अपनी सम्मति दे दें ऐसी ही भीतरी ख़्वाहिश थी उसकी।
''तो तुम्हारी इतनी दोस्ती है कि?''
''हूँ''
''क्या तुम उससे प्यार करती है?''
''हूँ? मालूम नहीं''
''अगर तुम उसके अपार्टमेंट में अकेली जा रही हो तो तभी जाओ अगर वह इन्सान तुम्हारे लिए ख़ास है, वर्ना कुछ ऐसा वैसा हो गया तो गलत होगा।''
''पापा वह ख़ास तो है।''
''इसका मतलब तुम उसे प्यार करती हो।''
''मालूम नहीं। हम बहुत पक्के दोस्त हैं।''
''या और कोई लड़का तुम्हारा इतना पक्का दोस्त है।''
''नहीं।''
''तो फिर यही तुम्हारा ख़ास है। तुम शायद उसे प्यार भी करती हो। मेरे सामने गवारा करने से घबराती हो।''
''अभी मालूम नहीं कुछ कह नहीं सकती। हो सकता है करती हूँ।''

नेहा हैरान थी यह कैसी बातचीत उसमें और पापा के बीच हो रही है आज? उसे अचानक महसुस हुआ कि पापा की निगाह में वह सचमुच बड़ी हो चुकी है। पापा समझते हैं सब। बस वही घबराती रही है इस तरह की बातचीत से।
''तुम चाहो तो मैं मिल लूँगा उससे।''
''लेकिन पापा ऐसी कोई सीरियस बात नहीं। मैं खुद भी नहीं जानती यह रिश्ता किस तरह का आकार लेगा।''
''पर अगर तुम्हें अपने पर भरोसा या उसके मन का ज्ञान नहीं तो उसके अपार्टमेंट में क्यों जा रही हो? एक बात कहूँ?''
अचानक एक डर का भाव जागा - क्या कहेंगे पापा?
''देखो बेटे मैं खुद चूँकि एक मर्द हूँ। इसलिए मर्द के नज़रिये की ही सलाह दूँगा। कोई भी लड़की इस तरह जब पुरुष के पास जाती है तो पुरुष उसकी कद्र नहीं करता। अपने आप को दुर्लभ बना कर रखो तो देखो कैसे लड़के पीछे भागते हैं।
''पापा! नेहा ने कहना चाहा कि अब तक तो उसने खुद को दुर्लभ ही बना कर रखा हुआ हैं। पर उसे ऐसे कोई पीछे भागने वाले नहीं मिले।

जो आए वे उससे पहले दोस्ती ही करना चाहते थे, उसे जानना चाहते थे अगर वह खुद सबसे दूर रहती है तो आत्मीयता ही कहाँ बनती, दोस्ती ही क्यों कर होती?

नेहा ने गौर किया कि पापा आखिर पापा ही थे। बेटी की अस्मत को लेकर घबराए हुए पर उनका कहने का अंदाज़ रौबीला नहीं दोस्ताना था।
पापा को आश्वस्ति देने का मन हो आया था नेहा का।
''हम लोग साथ-साथ एक प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं।''
''कैसा प्रोजेक्ट?''
नेहा को कहते हुए लगा कि वह झूठ नहीं बोल रही थी। पीटर और उसने इस बारे में काफी लंबी बातचीत कर रखी थी। चाहे आज वह सिर्फ़ इसी बातचीत के सिलसिले में नहीं जा रही थी और भी बहत सी गप्पे मारनी थीं।

कहीं उसे भी अंदाज़ था कि अपने अपार्टमेंट में के सूनेपन में छू भी सकता है और छूने से आगे भी । नेहा सिर से पाँव तक सिहर गई पर इस सिहरन में डर से ज़्यादा चुनौती थी और उसे महसूस हो रहा था कि वह हर तरह की चुनौती के लिए आज तैयार थी। साथ ही वह यह भी जानती थी कि पूरी तैयारी के बावजूद वह पीटर के साथ सिर्फ़ फिल्म का चर्चा करके भी आ सकती थी।
नेहा को भी समझ नहीं आता था कि क्या अच्छा है क्या ग़लत!

वे लोग हाईवे से उतर कर पहले एवेन्यू पर आ गए थे। सामने पीली बत्ती थी। पीछे गाडियाँ आ रही थीं। पापा बोले, ''चलती रहो'' और समझाने लगे उसे, ''पीली बत्ती पर गाड़ी रोकनी होती है पर अगर तेज़ गति से चल रहे हों और अचानक पीली बत्ती हो जाए तो गाड़ी की गति तेज़ कर के निकल जाना चाहिए वर्ना पीछे से उसी तेज़ गति से आती गाड़ी मार सकती है।

फिर अचानक जैसे ध्यान आ गया हो, बोले, ''कैसा फिल्म प्रोजेक्ट है?''
''अभी तो उसकी स्क्रिप्ट ही तैयार कर रहे है। सती पर फिल्म बनाएँगे।''
''सती?''
''हाँ, आप इतने हैरान क्यों है?''
''तुम क्या जानती हो सती के बारे में? क्या थीम होगी?''
''हम कहानी को उन्नीसवी सदी में जड़ रहे हैं। उसमें ब्रिटिश सुधारक भी होंगे। वह अंग्रेज़ सती होने वाली हीरोइन को बचा लेता है और फिर उन दोनों के संवादों के बीच से हीरोइन के नज़रिये में बदलाव लाया जाएगा।''
''तुम्हारा मतलब कि वह सती प्रथा का खंडन करेगी।
''पर उसे अपना धर्म बदलना पड़ता है क्योंकि हिन्दू समाज से उसे बहिष्कृत कर दिया जाता है कि वह पति की चिता से उठी क्यों?''

''पर हिन्दू धर्म हर औरत को पति के साथ जल मरने की आज्ञा तो नहीं देता। यह सब तुम्हारे अधकचरे ज्ञान को प्रगट करता है। मुझे तो इस कहानी में तुक नहीं नज़र आ रही।''
''दिस इज पोस्ट कोलोनियल स्टफ। दो बातें है पापा एक तो मैं अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म बनाना चाहती हूँ जो भारत और यहाँ, दोनों को समेटे ताकि दुनिया भर के दर्शक वर्ग को देखने में दिलचस्पी हो। दूसरे सती जैसी बुरी प्रथा पर फिल्म बनानी चाहिए और दुनिया के लोगों का इस पर ध्यान जाए ताकि इसके शमन की ओर कुछ किया जाए, तीसरे यह भी कि विषय ऐसा है कि हमें फिल्म बनाने के लिए पैसा मिलने में भी कम मुश्किल होगी।
''और तुम्हारा आर्किटक्चर?''
''फिल्म के साथ साथ वह भी चलाती रहूँगी। पीटर ने तो इसलिए हार्ड प्रेशर नौकरी छोड़ कर स्कूल में पढ़ाने का काम शुरू कर दिया है। ताकि फिल्म पर वक्त लगा सके। अभी तो शूटिंग की स्टेज आने में बहुत वक्त पड़ा है। अभी स्क्रिप्ट ही पूरा नहीं हुआ।''
उस दिन पापा ने उसे ड्राप कर दिया था। अजीब बात है कि पापा उसे समझते हैं और उसके दोस्त जैसे बनते जा रहे हैं।

जबकि ज्यों-ज्यों वह बड़ी हो रही है ममी का नज़रिया सकुचाया जा रहा है। एक उतावली और घबराहट-सी रहती है उनमें नेहा की शादी के मसले को लेकर। नेहा को लगता है कि यह सब उनकी अमरीका में बसी हिन्दुस्तानी सहेलियों का दबाव है। वर्ना ममी बड़े ही खुले सोच वाली थीं। उसने इस बात पर ममी से आमना-सामना भी किया था। चूँकि अंशुल सन्यासिनी हो गई तुम सोचती हो मेरे साथ की सारी लड़कियाँ पागल हैं? या हो जाएँगी?

''हाँ वक्त पर शादी होना बहुत ज़रूरी है।''
''जो न हो तो?''
''तो बहुत बुरा होगा?''
''क्या बुरा होगा?''
''आखिर ये रिवाज बने हैं तो इनका कुछ मतलब ही है न?''
''मतलब तो यही है न कि बच्चे पैदा करो और गृहस्थी में लग जाओ। पर मैं तो वैसे ही जुटी हूँ नौकरी में। फिल्म बनाने में। मेरे पास गृहस्थी चलाने की फुर्सत अभी कहाँ हैं?'' जब हुई तो सोच लूँगी औए कभी न हुई तो कभी नहीं सोचूँगी।''

यही तो मुश्किल है। तुम सोचती हो कि बिना गृहस्थी के सारी उम्र कट सकती है। तभी तुमने मेरे लाख कहने के बावजूद खाना तक बनाना नहीं सीखा।
''ममी मेरे साथ के ज़ादातर लोग खाना बाहर ही खाते हैं। किसी को बनाना नहीं होता। बनाने का शौक हो तो एकाध चीज़ सीखी भी जा सकती है। पर वह ऐसा कोई मस्ट नहीं हैं जैसा तुम समझती है।''
''जा जा, तेरे से बहस कौन करे।''

नेहा ममी के रूख से बेहद परेशान हो जाती थी। कहीं तो ममी दुनिया भर में ढिंढोरा पीटती थीं कि वह अपनी बेटी के साथ शादी की ज़बरदस्ती कभी नहीं करेंगी। अब जैसे उसकी उम्र के हर बढ़ते साल के साथ उल्टे रास्ते पर बढ़ती जा रही हैं।
नेहा का डर सच निकला। ममी ने पीटर के बारे में सवाल पूछ ही लिया।
जब पापा ने उसे पीटर के यहाँ ड्राप किया था उन्हीं दिनों ममी ने भी सवाल पूछा था उस रिश्ते में शादी की गंभीरता का।

ममी को टाल दिया था नेहा ने। पर अपने आप से यही सवाल वह बार बात पूछती थी और पीटर से भी। उस दिन जब पापा ने उसे पीटर के यहाँ ड्राप किया तो वही सब कुछ हुआ जिसका पापा को डर था। और फिर भी उसने सब कुछ नहीं होने दिया क्योंकि पापा की बात कहीं भीतर तक गड़ गई थी।
पीटर ने उसका हाथ छुआ ही था कि वह बोल पड़ी, ''अगर तुम्हारा शादी का ख़याल नहीं तो मैं इस रिश्ते को आगे बढ़ाना नहीं चाहूँगी।
पीटर ने घचके से हाथ पीछे कर लिया था। बहुत देर तक खामोश सोचता रहा था।

फिर पीटर ने उसका चेहरा दोनों हाथों मे लेकर चूम लिया और उसके कंधों को थपथपाता हुआ बोला था, ''इतनी टैंस क्यों हो तुम आज? रिलैक्स!''
''रिलैक्स करने का वक्त रहा नहीं। रोज़ किसी न किसी तरह से शादी की बात छिड़ ही जाती है।'' खुद को पीटर के स्पर्श से झटककर नेहा ने कहा था।
''तुम सचमुच शादी करना चाहती हो मुझसे?''

पता नहीं नेहा के मुँह से क्या निकला था। ममी पापा की पसंदगी नापसंदगी खुद पीटर के साथ भविष्य को लेकर संदेह कितना कुछ तो था इस जवाब की भूमिका बनता हुआ। वह शायद हाँ कहना चाहती थी पर मन में खीझ सी भरी हुई थी। उसकी ज़िन्दगी का सबसे अहम् फ़ैसला था और उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या फ़ैसला ले।
''तो मुझसे क्या उम्मीद करती हो मैं तो फिलहाल शादी वादी का सोचना चाहता ही नहीं। फिर यह भी तो ज़रूरी है कि हम एकदूसरे को भली-भाँति जान लें पूरी तरह से।
''जिस जानने की तुम बात करते हो वह शादी के बाद ही हो सकता है।''
''शादी का फ़ैसला मैं तभी कर सकता हूँ जब कि हमारी हर तरह से कम्पैटिबिलिटी हो।''
''मान लो मैं तुम्हारी बात मान भी लूँ तो क्या गारंटी है कि तुम मुकर नहीं जाओगे?''
''गारंटी तो कभी होगी ही नहीं, शादी के बाद भी नहीं। क्या तुम मुझे गारंटी दे सकती हो कि मुझे छोड़ कर नहीं जाओगी।''
''हाँ पर अगर तुम किसी दूसरी ओर आकृष्ट हो जाओ ता मैं तुम्हारे साथ चिपकी नहीं रहूँगी।''

''खैर ये सब कहने की बातें हैं। अगर गारंटियाँ होतीं तो इतने तलाक क्यों होते?'' हमारा रिश्ता आज सुखद है तो कल को बिगड़ भी सकता है। रह कर पता लगता है और साथ रहने से तुम घबराती हो?''
''तुम़्हें मेरी मजबूरी का पता है। मुझमें भी तुम्हें खुद को सौंप देने की उतावली तुमसे कम नहीं।''

''और इसके लिए तुम मुझसे शादी जैसी चीज़ में घसीटना चाहती हो। शादी का मतलब साथ रहना उतना नहीं जितना कि दुनियावी ज़िम्मेदारियों को निभाना होता है। ठीक-ठाक घर, ठीक-ठाक साज-सज्जा, ठीक-ठाक बच्चे, सब कुछ ठीक-ठाक होना होता है। मैं अभी इस सबके लिए तैयार नहीं। अगर तुम सचमुच मुझे प्यार करती हो तो उस चक्कर में डालना नहीं।

और फिर बात यहाँ तक पहुँच गई थी कि पीटर जब भी उसे छूने की कोशिश करता वह खुद को जकड़ लेती ताकि भाव में आकर कुछ गलत न कर बैठे।
एक बार उसने कह ही डाला था, ''क्या बात है मेरा स्पर्श तुममें भी प्रतिक्रिया जगाता नहीं?''

वह यों ही जकड़ी खामोश बैठी रही थी। फिर पीटर से मिलने से कतराने लगी थी। शायद पहले अपने भीतर को सुलझा लेना चाहती थी । किस पर भरोसा करे? पीटर पर या ममी पापा पर? वह खुद क्या चाहती है? अब छे महिने बाद ममी ने फिर वही सवाल दोहराया तो नेहा ने कितने सारे तनावों से एक साथ मुक्ति पाने के लिए बक दिया था, ''मुझसे मत पूछा करो यह सवाल! यहाँ के लड़को में कमिटमेंटही नहीं है। मैं क्या करूँ!''

नेहा के चेहरे पर जर्दी और लाली एक साथ आ जा रही थीं। ममी ने भाँप लिया था और किसी अविश्यंभावी खतरे ने उनको सहमा दिया था। नेहा उसे खतरा मानती हो या न पर मन अस्वस्थ ज़रूर हो रहा था। उसने पापा से कहा था, ''यहाँ मैनहैटन में गाड़ी चलाने का मौका ही नहीं मिलता इसीलिए कान्फिडेंस ही नहीं जमता। आपको फिर कुछ प्रैक्टिस करानी होगी।''
ममी ने उनके निकलने से पहले कह दिया था, ''तू मेरी बात मान तो अभी भी देर नहीं हुई। बात चलाती हूँ, कहीं न कहीं तो काम बनेगा ही।''

इतनी बड़ी आर्किटेक्ट है तू कल उमा कह रही थी कि उसकी सहेली का लड़का भी कुँवारा बैठा है। मीटिंग तय कर दूँ तुम दोनों की? अपने आप से ही बाहर कहीं मिल लो। हमें बीच में डालने की भी ज़रूरत नहीं।'' पापा ने ममी को डाँट दिया था, ''क्यों बार बात उसे एम्बैरेस करती हो? जब शादी को तैयार होगी अपने आप बता देगी। बड़ी हो गई है। अपने बारे में खुद फ़ैसला ले सकती है। तुम पहले तो उसे यहाँ के खुले ढंग से पालती रही हो। अब क्या फिर से पीछे ढकेलना चाहती हो?''

गाड़ी चलाते हुए नेहा को लगा कि उसकी ड्राइविंग पर पकड़ काफी अच्छी हो गई है। थोड़ी-सी प्रैक्टिस के बाद शायद वह अपने आप ही पूरे आत्मविश्वास के साथ चलाने लगेगी।
अचानक उसने पापा को कहते हुए सुना, ''लाल बत्ती पर हमेशा रूका करो। कई बार आस पास ट्रैफिक नहीं होता तो इंसान की प्रवृत्ति होती है कि चलता जाए। पर अगर लाल बत्ती पर सड़क पार करने की ऐसी आदत डाल लो तो अक्सर दुर्घटना होने का ख़तरा हो जाता है। क्योंकि ऐसा मुमकिन है कि आप ध्यान से न देख सकें और अचानक कोई गाड़ी कहीं से निकल कर आपसे टकरा जाए।'' और पापा ने दोहराया, ''सो लाल बत्ती के होते सड़क पार कभी मत करना यह चेतावनी तुम्हें बार-बार देता हूँ।''

नेहा चौंकी। पापा उसे क्यों बतला रहे थे यह सब। क्या उसने सचमुच लाल बत्ती पार की थी? या पापा का उसे आगाह करते रहना क्या पिता के धर्म पालन से ज़्यादा नहीं था? पापा के अपने मन के डर। कहीं ऐसा तो नहीं कि बत्तियाँ आए जाए, चली जा रही थीं, गाड़ियाँ निकले चली जा रही थीं और वह लाल बत्ती पर ही खड़ी थी।

पापा कहते चले जा रहे थे, ''यों तुम सीख तो गई हो अब। अच्छा चलाने लगी हो। बाकी जितना चलाओगी उतना ही आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। बस सड़क की लय सुनना मत भूलना यही एक अच्छे ड्राइवर की निशानी है। वर्ना बार-बार दुर्घटनाएँ होंगी। इस देश में अपने बूते जीने के लिए गाड़ी चलाना भी उतना ही ज़रूरी है जितना पढ़ना लिखना। इसलिए ज़रूरी है कि सड़क की लय को सुने को सुने और उसी हिसाब से चलाओ ताकि सेफ ड्राइवर बन सको।

सहसा नेहा को लगा जैसे जो पापा कह रहे हैं वह सुन नहीं रही है फिर भी कुछ सुन रही है। पर जो वह सुन रही है वह शायद पापा नहीं सुन रहे हैं या शायद पापा कह भी नहीं रहे पर नेहा सुन पा रही है। कुछ ऐसा जिससे न वह वाकिफ़ थी न ही जिसके प्रति सजग। जैसे वे स्वर कहीं दूर से किसी बहुत गहरे समुद्र से उठे हों बहुत अस्पष्ट, भारी और गीले से! अपने ही बोझ से झुके कि सतह पर आएँ भी तो जलराशी में निमग्न पहचान से बाहर जो किन्ही शब्दों में नहीं ढल पाते या सुने जाते। किसी लहर की ही तरह कहीं से उठते और वहीं समा जाते हैं।

क्या वही थी सड़क की लय!
पापा कह रहे थे, ''तुम मुझे पहले घर ड्राप कर दो, इसके बाद जहाँ जाना है चली जाना।''
पर यह तो पापा की आवाज़ नहीं थी। कुछ ऐसी आवाज़ थी कि लगता था उसकी अपनी आवाज़ से ही मिलती-जुलती है। सामने हरी बत्ती भी शायद। नेहा ने गाड़ी चला दी...

 

जून २००१

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