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कहानियाँ

मकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से मधुलता अरोड़ा की कहानी— फोन का बिल


शानू को आज तक समझ में नहीं आया कि फोन का बिल देखकर कमल की पेशानी पर बल क्यों पड़ जाते हैं? सुबह-शाम कुछ नहीं देखते। शानू के मूड की परवाह नहीं। उन्हें बस अपनी बात कहने से मतलब है। शानू का मूड खराब होता है तो होता रहे। आज भी तो सुबह की ही बात है। शानू चाय ही बना रही थी कि कमल ने टेलीफोन का बिल शानू को दिखाते हुए पूछा, ‘शानू! यह सब क्या है?’

शानू ने बालों में क्लिप लगाते हुए कहा, ‘शायद टेलीफोन का बिल है। क्या हुआ?’ कमल ने झुँझलाते हुए कहा, ‘यह तो मुझे पता है और दिख भी रहा है, पर कितने हज़ार रुपयों का है, सुनोगी तो दिन में तारे नज़र आने लगेंगे।‘

शानू ने माहौल को हल्का बनाते हुए कहा, ‘वाह! कमल, कितना अजूबा होगा न कि तारे तो रात को दिखाई देते हैं, दिन में दिखाई देंगे तो अपन तो टिकट लगा देंगे अपने घर में दिन में तारे दिखाने के।‘
कमल बोले, ‘मज़ाक छोड़ो, पूरे पाँच हज़ार का बिल आया है। फोन का इतना बिल हर महीने भरेंगे तो फाँके करने पड़ेंगे एक दिन।‘
शानू ने कहा, ‘बात तो सही है तुम्हारी कमल, पर जब फोन करते हैं न तो समय हवा की तरह उड़ता चला जाता है। पता ही नहीं चलता कि कितने मिनट बात की।‘
कमल ने कहा, ‘बात संक्षिप्त तो की जा सकती है।‘

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