सूर्य
किरण के नियमित आग्रह के कारण सावित्री रोज तड़के नदी से मिलने
जाती। नदी गाँव से बाहर अपनी लीक पर बहती रहती। गाँव नदी से
दूर नहीं जाना चाहता था, लेकिन नदी के बहुत पास आने पर वह गाँव
को अपने पानी में डुबो देती। सावित्री ने जबसे होश सम्हाला
उसने सूर्य किरण का कहा मानकर नदी से मिलना शुरू किया था। वह
नदी में कूद पड़ती। शोर मचाती। डूबने से बचने के लिए खूब हाथ
पैर मारती। बहुत सी सूर्य किरणें मिलकर जब आँखें तरेरती तब ही
वह घर लौटती। सूर्य किरण से रोज उसकी आखिरी मुलाकात भी नदी में
ही होती। सूर्य किरणें जब अँधेरे से डर कर रात भर के लिये गाँव
छोड़तीं, सावित्री भी भागकर घर आ जाती। यही करते करते उसमें
अनायास नदी पैठ गई। उसके अन्तर में पैठी हुई सूर्य किरणें नदी
से अभिसार करतीं। सावित्री को लगता उसके मन में उजला और तरल
संसार उग आया है।
एक दिन सुबह सूर्य किरण सावित्री को जगाने आई। लेकिन वह उसके
आने के पहले ही नदी की ओर चुपचाप चल पड़ी थी। पहली सूर्य किरण
उसके साथ नदी के जल में डुबकी लगाना चाहती थी। नदी पहुँचने के
पहले सावित्री को रास्ते में झुरमुट मिला। उसकी आड़ से एक हाथ
उभरा। उसने हौले से सावित्री के गालों को छू भर लिया। लड़के की
आँखों में नदी बह रही थी। उन आँखों में सावित्री अपने लिये हर
पल सूरज देख रही थी। वह नदी सूरज को लिये सावित्री के अन्दर
बहने लगी। लड़के ने उसकी अँगुली अपने हाथों में ले ली। उसे सूरज
की किरणों ने चूम लिया। फिर उसके मन को नदी के पानी से नहला
दिया।
सावित्री नदी की याद करने के बहाने प्रेम में डूबी रहती।
दिखाने को वह जीवन के साथ रहती, लेकिन लड़के के साथ जीती। रात
में सोने के बहाने वह सपने देखती। वह रोज सुबह लड़के के साथ नदी
में पैर डुबाये बैठी रहती। उससे बातें ही बातें करती रहती। कभी
शरमाती, कभी खिलखिलाती। कभी अचानक चुप हो जाती। नदी अपने मन
में झांकती तो सावित्री की खिलखिलाहट को झेंपता पाती। एक के
बाद एक हवा, फूलों, चिड़ियों और आकाश को भी उन दोनों के प्रेम
के बारे में पता चल गया था। जबसे सावित्री ने प्रेम करना शुरू
किया था उसे अपने बारे में कुछ पता नहीं रह गया था। उसे यही
याद था कि लड़के का उसके जीवन से गहरा रिश्ता हो गया है।
कुछ समय बाद सावित्री को लगने लगा कि लड़का सुनता तो है लेकिन
बोलता कम है। लड़का अब अपने मन से नदी में डुबकी नहीं लगाता।
नदी किनारे वह क्षितिज पर टिकटिकी लगाए बैठी रहती। उस की
उत्सुकता लहरों की तरह उठती, फिर भँवर बन डूब जाती।
सावित्री नदी से दिन चढ़े घर लौटती। जीवन सुबह लड़की के साथ घर
से चलकर नदी तक लड़के के भी साथ साथ आता। दोपहर होने के पहले
जीवन सावित्री से घर चलने की जिद करता। घर पहुँचकर लड़की देखती
कि जीवन अचानक धूप से भर जाता है। धूप, कालघड़ी में घण्टे और
मिनट के काँटों के पैर पसारे बैठ जाती।
शाम को भी सावित्री नदी तक जाती। सुबह की तरह गाँव लेकिन वहाँ
ज्यादा नहीं होता। न बहुत सी औरतें, न बच्चे, न खाँसते खखारते
बूढ़े। आखिरी सूर्य किरण नदी में खिलखिलाती। उसकी परछाईं को
अपनी आँखों में भरकर सावित्री घर की ओर लौट आती। घर में रात
होती। जीवन तब भी होता। जबसे उसे लड़का मिला था, उसे रातें
बहकाने लगी। वह अमूमन गुनगुनाने लगती। वह जीवन से कहती कि लड़के
को बुला लाए। चंद्रकिरणों की आसमानी स्लेट पर वह रात भर इबारत
लिखती। सावित्री लड़के को ढूंढ़ने में ही जुटी रहती।
लड़का कभी कभार ही आता। वह वहाँ रहता जो कुछ नहीं था। फिर वह
सावित्री के मन में रहने लगा। फिर कभी कभार उससे पूछकर बाहर
जाता। सावित्री उसके साथ को उद्दाम समझती। लड़का उसे उत्तेजना।
वह लड़के को अर्थ और भूमिका देने के लिए उसके चारों ओर गुलाब की
पँखुरियाँ उगाती। वे भीनी भीनी महकतीं। फिर पुल पर कोई साइकिल
घंटी बजाती, तो लड़की नदी किनारे बैठे पत्थर पर चिहुँक जाती। वह
दौड़कर नदी में छिप जाती। नदी के पत्थर उसे रोज नहाते हुए
देखते। देखती तो नदी भी थी। नदी उसकी राह भी तकती। वह पत्थरों
को धीरे से छूती। शायद उन्हें लड़के का पता हो। अपने कपड़े सूरज
को तका वह नदी में उतर जाती। एक एक क्षण की नदी में वे दोनों
हर बार अलग अलग नदी में नहाते। नदी हर बार नई होती। उनका हर
बार का नहाना नया होता। रात गहराती जाती। लिखी हुई इबारतें भी।
लड़का सूर्य की पहली किरण के आने के पहले ही उसे छोड़कर घर के
पिछवाड़े कुएँ की जगत पर चला जाता। वहाँ वह पनिहारिनों से
अठखेलियाँ करता। समझ की डोर से अपनी बाल्टी भर कर वह दुनिया
में गीले होने लायक जल भर लेता। जब वह समझ के साथ अपने घर
लौटता, लड़की अकेले ही नदी जा चुकी होती। वह झुरमुट से अपने साथ
हुए छल का हिसाब माँगती। झुरमुट ही वहाँ नहीं होता। झुरमुट के
सभी पेड़ जिस जिस लड़की पर रीझ गये थे, वे सभी लड़कियाँ उसकी तरह
अपना अपना झुरमुट ढूंढती दिखाई पड़तीं।
सावित्री झुरमुट की तलाश में इस कदर उलझ गई कि नदी तक नहीं
पहुँच पाई। सूर्य किरण उसे न पाकर नदी से लौट गई थी। नदी लड़की
में नहीं डूब जाने पर सिसकती रही। वह इसलिए सूखने भी लगी थी।
सूर्य किरण लड़के के घर पहुँची। वह बाल्टी भर कुएँ के जल में एक
और लड़की की नदी ढूंढ़ रहा था, सावित्री की नहीं। यह तलाश वह रात
की बची हुई रोशनी की मदद से दिन में कर रहा था। किरण को रोज की
तरह धूप के साथ सावित्री के घर जाना था। किरण और सावित्री
दोनों के लिए धूप का घर नदी किनारे ही था।
नदी किनारे पहुँचकर सूर्य किरण ने देखा। लड़की झुरमुट में खो
गये पेड़ के पीछे छिपकर नदी की ओर मृगतृष्णा के जल को देख रही
थी। सूर्य किरण ने देखा। झुरमुट के सभी पेड़ नदी के किनारे
वटवृक्ष बनकर खड़े हैं। किरण ने तेज धूप के कारण आँखें एक क्षण
के लिये बन्द कर लीं। आँखें जब खुलीं तो देखा सावित्री और बहुत
सी लड़कियों के साथ वटवृक्षों की देह के चारों ओर घूमकर अश्रुजल
के धागे बाँध रही है। सूर्य किरण भी धूप की परिक्रमा करती हुई
उसी में लिपट गई। आखिर सूर्य किरण भी लड़की ही है। |