उन्होंने
कहा कि हम होटल में चेक न करें और दिन भर नायग्रा फाल और आसपास
घूम कर शाम को सीमा पार करके उनके यहाँ आ जाएँ। वे बस अड्डे पर
कार लेकर आ जाएँगे और हमें लिवा ले जाएँगे।
सब ठीकठाक रहा। बस अड्डे पर मनसा मिल गए थे और दस-पंद्रह मिनट
में हम उनके घर पर थे। मनसा की पत्नी ने स्वागत किया और जब हम
लिविंग रूम में गए तो पाया कि वहाँ काफी लोग पहले से ही मौजूद
हैं और पार्टी चल रही है। बाद में पता लगा कि यह सब मनसा ने
पहले से प्लान कर रखा था क्योंकि मैंने बफैलो का प्रोग्राम उसे
बताया हुआ था। मनसा ने अपने कई एशियाई परिवारों को बुला रखा था
जो सभी मुझसे मिलना चाहते थे। उनमें भारतीय तो थे ही, कुछ
पाकिस्तानी और बांगलादेशी भी थे। एक जोडा़
श्रीलंका का भी था।
बाद में मैंने पाया कि वे
सब कैट से ज्यादा प्रभावित हो रहे थे। एक तो उसका आकर्षक
व्यक्तित्व, दूसरे उसकी धाराप्रवाह हिन्दी बोल सकने की
योग्यता। दरअसल उसकी इसी योग्यता की वजह से मैंने भी अपनी पूरी
अमेरिका यात्रा के दौरान उसे अपना सहयोगी चुना था। यहाँ ही
नहीं, मैं जब भी भारतीयों के बीच होता, उसकी इस विशेषता को लोग
आश्चर्य भरी नज़र से देखते थे। वह तीन वर्ष भारत में रह चुकी
थी। प्रेमचंद के साहित्य पर रिसर्च कर चुकी थी और इस दौरान
लमही और वाराणसी में काफी वक्त बिताया था।
लगभग एक महीने से हम दोनों साथ थे और 'कभी खुशी, कभी गम' के
लमहे हमने साथ बिताए थे। पर उस सुरक्षा अधिकारी का वाक्य मैंने
पहली बार सुना था और उसकी जैसी वह शरारती मुस्कान भी पहली दफे
नोटिस की थी।
कैट केवल सहयोगी और दुभाषिया ही नहीं, वरन मेरी ड्राइवर भी थी।
हम जब भी किसी दूसरे शहर जाते तो एयरपोर्ट पर ही 'एविस' या
'केंट' की कार हमारा इंतज़ार कर रही होती थी। यह सब व्यवस्था
कैट की ही होती थी। तमाम एप्वाइंटमेंट तय करना, एयरलाइन को फोन
से अग्रिम चेकइन करना, सीट बुक करना और खाने की पसंद बताना और
घूमने का कार्यक्रम बनाना आदि सब उसके ही जिम्मे था। इतना ही न
हीं, दिन भर हम जिनसे मिलते या इंटरव्यू लेते, उसकी
पूरी रिपोर्ट वह अपने लैपटॅाप पर
टाइप करके उसका प्रिंटआउट सुबह सौंप देती थी। कई बार मैं सोचता
कि अगर वह न होती तो मेरा ट्रिप सार्थक न हो पाता।
पार्टी देर रात तक चली,
शायद ढाई बज गए होंगे। बस, कुछ गिने-चुने घंटे बचे होंगे सुबह
होने में। मैंने मनसा के स्टूडियो में पडे़ दीवान पर बस कमर
सीधी भर की होगी कि भिनसारे की रोशनी चमकने लगी। कैट भी चाय
पीती दिखाई दी और कुछ देर बाद ही हम चल दिये। मनसा ने इस बार
फिर बस तक छोडा़। बस में चढा़ कर वह मेरे पास आया और फुसफुसा
कर बोला,'माफ करना दोस्त। तुम दोनों को अलग कमरा नहीं दे पाया।
मेहमान कुछ ज्यादा ही रुक गए थे।'
'नहीं यार, ' मैंने कहा, 'अलग कमरे की कोई जरूरत ही नहीं थी। '
ये बीच फरवरी के दिन थे। खूब सरदी पड़ रही थी। कल मैंने कनाडा
साइड से नीचे उतर कर जमा हुआ नायग्रा देखा था। ऊपर से गिरता
पानी जम कर बर्फ की परतें बना रहा था। बर्फ से जमी हुई झील तो
मैं देख चुका था विस्कॉन्सिन राज्य के मेडिसिन में, जैसे कि वह
झील न हो, सफेद बर्फ का दूर तक फैला मैदान हो। पर नायग्रा वाला
दृश्य तो अद्भुत ही था। जगह-जगह झरने से झ़रती पानी की धारें
बर्फ की चिलमन जैसी लग रही थीं। इस अविस्मरणीय दृश्य को मैंने
अपने कैमरे में कैद कर लिया था।
और आज जब बर्लिंगटन से हम
निकले थे तो कुछ दूर बाद ही बर्फ गिरने लगी थी। खिड़़कियाँ
पूरी तरह बंद थीं पर उनकी संध से तेज हवा अपना रास्ता ढूँढ ही
ले रही थी। बस में हीटर या तो था ही नहीं, या काम नहीं कर रहा
था। हवा का बर्फीला झोंका तीर की तरह चुभता था और दाँत
किटकिटाने लगते थे। हम दोनों के पास ओवरकोट तो थे पर वे कनाडा
की सरदी के लिए नाकाफ़ी थे। मनसा ने चलते वक्त एक ऊनी शाल दे
दिया था, जिसे मैंने लपेट लिया था पर कैट के बचाव के लिए बस,
उसका ओवरकोट ही था।
मैंने उसकी तरफ एक गर्म नज़र फेंकी। उसने भी उसका मुस्करा कर
जवाब दिया। बिना कुछ बोले मैंने अपना शाल उसकी तरफ बढा़ दिया।
थोडी़ वह झिझकी, पर फिर उसने शाल शेयर कर लिया और वह थोडा
नज़दीक भी घिसट आई।
प्रकट में निकट होने का यह उसका पहला उपक्रम था। यों ग्रैंड
कैनियान के चौंकाने वाले अवलोकन के बाद शाम को निकट के एक पब
में डांस फ्लोर पर जब उसने मुझे डांस सिखाने की कोशिश की थी,
तब भी हम दोनों कई बार निकट तो हुए थे पर वह एक शालीन
असंपृक्तता बनाए रखती रही थी।
डांस करते-करते हम ग्रैंड कैनियान की रहस्यमयता की बात करते
रहे थे। खासकर, मुझे यह कुतूहल हो रहा था कि
किसने १८वीं सदी में गैंड
कैनियान के माउंट्स के नाम हिंदू देवताओं के नाम पर कैसे और
क्यों रखे होंगे।
वहाँ ब्रह्मा माउंट था, विष्णु और कैलास माउंट भी। उत्तर कैट
के पास भी नहीं था पर उसने कहा था कि कल हम यहाँ की लाइब्रेरी
और बुक शॉप में देखेंगे। शायद वहाँ कुछ संदर्भ मिल सके। मैंने
'हाँ' कहा और यह भी कि फिलहाल तो हमें पब और डांस की रोमानियत
पर ही ध्यान देना चाहिए।
उसने भी अनुमोदन किया और डांस का अगला स्टेप सिखाने लगी।
पर जब से बफैलो की उस बेहद लम्बी ऑफिसर ने वह वाक्य बोला था,
मुझे उसमें कुछ बदलाव जैसा लगने लगा था या हो सकता है कि यह
सिर्फ मेरा भ्रम हो।
फिनिक्स में हम एरिज़ोना के अमेरिकी इंडियनों की बस्ती में गए
थे। उन आदिवासियों को देखकर मैंने अपने बस्तर वाले आदिवासियों
और उनके रहन-सहन की उनसे जब तुलना की तो लगा कि अमेरिकी
आदिवासी तो जैसे माडर्न बन चुके हैं। उनके घरों में एसी और
माक्रोवेब तक दिखाई दिये। हाँ, पहरावा और व्यवहार शहरी अमेरिकी
जैसा नहीं था।
जब हम ट्राइबल विलेज से
लौट रहे थे तो एक सड़क के किनारे कैट ने कार रोक दी।
मैंने पूछा कि क्या हुआ। तो बोली,'बहुत थक गई हूँ। थोडा़ आराम
कर लूँगी तो ठीक हो जाऊँगी। हाँ, आप कार से मत उतरना और न शीशा
खोलना। बगल में जो नहर है, उसमें घड़ियाल हैं।'
मैंने खिड़की से झाँका पर मुझे कोई घडिय़ाल दिखाई नहीं दिया।
फिर भी मैंने खिड़की नहीं खोली।
कैट आँखें बंद करके अपनी सीट पर अधलेटी थी। लगता था कि जैसे
उसके सिर में दर्द है। वह इस समय छोटी बच्ची जैसी लग रही थी।
उसके प्रति सहानुभूतिजन्य ममत्व जाग उठा। उसे पहली बार इतनी
पास से देखा था। उसके गोरे माथे पर शिकन पड़ रही थी। मन हुआ कि
उसका सिर दबा दूँ। पर अपने पर काबू रखे उसके जगने का इंतज़ार
करता रहा।
वह आधी जर्मन-आधी अमेरिकी थी। उसकी माँ जर्मन थी और पिता
अमेरिकी इसलिए उसके चेहरे पर कोमलता थी, अमेरिकनों जैसी
औपचारिक कठोरता नहीं।
आधा घंटे बाद वह जग गई तो मैंने पूछा, 'क्या सिर में दर्द था?'
'हूँ, थोडा़-सा।'
'अब कैसा लग रहा है ?'
'अब मैं ठीक हूँ। चलें ?'
और उसने कार स्टार्ट कर दी।
न्यूयार्क में हमारी बफैलो से आनेवाली फ्लाइट थोडी़ लेट हो गई
थी इसलिए जब हम लोग होटल पहुँचे तो रिसेप्शन पर बताया गया कि
हमारे बुक किये गए कमरे किसी और को दे दिये गए हैं। अब क्या
होगा, मैं सोच में पड़ गया कि इतनी रात में हम कहाँ जाएँगे।
कैट ने होटल मैनेजर को खूब सुनाया, पर न्यू यॉर्क तो पूरी तरह
कमर्शियल शहर है। होटल को फायदा दिखाई दे रहा था तो वह हमारे
कंसेशनल रेट पर बुक किये कमरों को क्यों रोके रखता ?
आखिर जिस एजेंसी ने हमारा टूर अरेंज किया था, कैट ने उसकी
अधिकारी को फोन किया और अंतत: एक अन्य होटल मंे जगह मिली,
जिसका टैरिफ थोडा ज्यादा था।
वहाँ पहुँचे तो पता लगा कि सिर्फ एक सुईट खाली है। छोटे कमरे
कल ही मिल सकेंगे। कैट ने अर्थपूर्ण नज़र से मेरी
तरफ देखा। विकल्प ही क्या था ?
जो मिल रहा था, उसे तो ले ही लेना था। बाकी फिर देखेंगे।
सुईट अच्छा था। दरवाजा खोलते ही एक कमरा था जिससे अटैच थी एक
किचनेट और आगे एक और रूम था। दोनों में बेड थे और बीच में
पार्टीशन के रूप में मोटा परदा पडा़ था। ईस्ट कोस्ट के होटलों
में किचनेट तो होता ही है जबकि वेस्ट कोस्ट के होटलों में
नहीं।
मैंने बाहरवाला बेड लिया क्योंकि उसके साथ वाशरूम जुडा़ था।
कपडे बदल कर और हाथ-मुँह धोकर अपने बेड पर अधलेटा एक किताब पढ
रहा था कि कैट आई। उसके हाथ में चेंज के लिए कपडे थे।
'अरे, आप तो फ्रेश हो चुके। मैं वाशरूम इस्तेमाल कर लूँ?'
'ओह, क्यों नहीं !'
आधा घंटे बाद जब वह वाशरूम से निकली तो एकदम ताज़ी लग रही थी।
गुलाबी रंग की नाइटी में उसका गोरा रंग और भी निखर आया था।
मैं एकटक उसे देखता ही रह गया।
'लुकिंग ग्रेट' मुँह से बेसाख्ता निकला।
'थैंक्स' टॉवल से बालों को सुखाते हुए बोली। उसने अपने
पार्टीशन की तरफ कदम बढा़ए फिर एकाएक रुक गई। 'अभी
नींद न आ रही हो तो कुछ देर बात
कर लें।'
'हाँ, क्यों नहीं!' और वह सिटिंग एरिया में बैठ गई। मैं उठ
बैठा और एक कुर्सी उसके नजदीक खींच कर आ बैठा।
'यह आपके टूर का आखीरी पडा़व है। कल मुझे अपने सीनियर को
रिपोर्ट भी भेजनी होगी। आपको यह पूरा दौरा कैसा लगा ? '
मैं थोडी़ देर रुक कर
बोला,' बहुत अच्छी रही पूरी यात्रा। बहुत कुछ नया अनुभव भी
हुआ।'
'कितनी लाभप्रद रही यह यात्रा आपके व्यवसाय के लिए ? क्या
प्राप्त किया इसमें ?'
'कई नए अनुभव हुए जिनका लाभ भविष्य में अवश्य मिलेगा।' कुछ ठहर
कर फिर कहा, ' सबसे बडी़ उपलब्धि ?'
'हाँ।'
मुस्कुराहट के साथ अनायास ही मैं कह गया, ' वह तो तुम हो।'
वह शरमा कर नीचे देखने लगी।
'हाँ, नि:संदेह' मैं कहता गया,'एक अच्छा़ संवेदनशील और समझदार
साथी पाया मैंने इस सफर में। तुम्हें इसमें संदेह है क्या ?'
वह भी मुस्कुराई और बोली,'पर मैं प्रोफेशनल अचीवमेंट की बात कर
रही हूँ।'
मैं चुप ही रहा पर एक तीखी नज़र से उसे देखता रहा।
'देखिए, अब तक हमारा रिश्ता प्रोफेशनल ही रहा है। उसमें निजी
रिश्तों की गुंजाइश कहाँ रहती है?'
'कल तो यह प्रोफेशनल रिलेशनशिप खत्म हो रही है। अब तो हम निजी
रिश्तों की बातें भी कर सकेंगे।' मैंने कहा।
'मसलन?' उसने पूछा।
'मसलन...। तुमको क्या
लगता है ?' मैंने शरारत से उसे देखा।
'कुछ नहीं। पहले मैं रिपोर्ट तैयार कर लूँ।'
'नहीं, वह तो लगभग बन ही गई। अब हम उससे मुक्त होकर सोचें।
क्यों ठीक है न ?'
'जैसे ?' उसने मेरी आँखों में अपनी नज़र गड़ा कर पूछा।
'जैसे बफैलो वाली सुरक्षा अधिकारी की बात।'
अब वह खिलखिलाकर हँसी,'आप अभी तक वही सोच रहे हैं ?'
'हँसी की नहीं, बहुत सीरियस बात थी वह।' मैंने कहा।' पहले तो
तुम मुझे 'आप' कहना बंद करो। अब प्रोफेशनल रिलेशनशिप नहीं रही
तो यह आप वाला दुराव क्यों?'
इस पर भी वह हँसी और बोली, 'अच्छा बाबा, मान लिया। अब आगे
बोलो।'
'उस दिन तो उस कैनेडियन की बात पर तुमने प्रतिक्रिया नहीं की
थी, अब क्या विचार है?' टेबुल पर रखा उसका हाथ मैंने दबा दिया।
उसने अपना हाथ पीछे खींच
लिया और बोली, 'आपको... नहीं, तुम्हें विस्कांसिन की वह जमी
हुई झील याद है? '
'हाँ, क्यों?'
'पता है कि झील पर जमे हुए पानी की परत बडी़ भ्रामक होती है।
लगता तो है कि उस बर्फ की चादर पर चढ. कर हम झील पार कर
सकेंगे। पर यह मुमकिन नहीं होता। बर्फ की वह परत बस, एक छलावा
जैसी होती है, कहीं मजबूत तो कहीं एकदम झीनी होती है। आपने उस
पर पाँव रखा कि वह चटख गई और आप धम्म से झील के पानी में डूब
रहे होंगे।'
'हाँ, पर यह तुम किस संदर्भ में कह रही हो?' मैंने कुछ न समझ
सकने पर पूछा।
'समझने की कोशिश करो।'
'हूँ।' मेरे मुँह से निकला।
'चलो, पहले चाय बनाते हैं। सैन फ्रांसिसको के होटल से शुगर और
व्हाइटनर के सैशै मैंने बचा लिये थे। टीबैग तो आपके, सॉरी,
तुम्हारे पास हैं ही।' और वह उठ कर सब सामान लेने चली गई।
मैंने भी अपने बैग से टीबैग निकाल लिये।
अगले कुछ मिनटों में वह
किचनेट के सामने थी और चाय के लिए पानी गर्म कर रही थी। मैं भी
टीबैग लेकर वहीं पहुँच गया।
'सुनो कैट,'मैं उसके और पास आ गया, 'कनाडा की तरफ से नीचे उतर
कर हमने जमा हुआ नायग्रा देखा था न? पानी की धार गिरती थी और
उस भयंकर सरदी में बर्फ बन जाती थी। पर ऊपर वेग से लाखों लिटर
आता हुआ झरने का पानी तो नहीं जम पाता था। क्यों?'
वह मेरी ओर घूमी और मेरी आँखों में आँखें गडा कर देखने लगी।
'ऐसा विपुल आवेग के कारण था' मैं अपनी ही रौ में बोलता गया,
'झील का पानी ठहरा हुआ था, इसलिए जम सका जबकि वेग और परिमाण के
कारण नायग्रा नहीं जम पाया। इसी तरह जब अंतरंगता का आवेग और
उष्णता हो तो रिश्तों पर बर्फ कैसे जम सकती है ? ऐसे में तो
तमाम वर्जनाएँ अपने आप टूट जाती हैं।'
'पर...' वह आगे कुछ बोले इससे पहले ही मैंने उसके नरम ओंठों पर
अंगुली रख दी और कहा, ' अब बस कैट। किसी बहस की गुंजाइश नहीं
है अब।'
और अगले क्षण तमाम वर्जनाएँ टूट चुकी थीं।
अब भला चाय की जरूरत कहाँ रह गई थी? |