राधादेवी
यहाँ के सदस्यों के साथ आत्मीयता महसूस करती हैं। बिलकुल तो
नहीं पर यहाँ रहने वाले लोगों का जीवन कुछ न कुछ उनसे मिलता
ज़रूर है। वही बच्चों का नीड़ से उड़ जाना और अपना दाना खोजने
की व्यस्तता के चलते माँ बाप से लगकर न रह पाना। जीवन का यह
समय सभी के पास आता है। जब माता पिता को बच्चों की आवश्यकता
होती है वे अपने बच्चों के लिए जीवन का हर पल दाँव पर लगाए
होते हैं। यही संसार का नियम है। स्वयं वे अपने माता पिता की
कितनी देखभाल कर पाई थीं? शायद यहाँ पर काम करते हुए वे उसी
कमी को पूरा करने की कोशिश करती हैं।
दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में
धूप थोडी और मुलायम हो जाती है। उन्होंने बाल्कनी में पसरी धूप
को हथेलियों से छुआ। धूप की एक रेखा अमृतयान संस्था के लॉन में
लगे फव्वारे पर चिड़िया की तरह हिल रही थी। बाहर सत्संग हॉल
में जाना था कुछ काम भी निपटाने थे। वे उठीं और तैयार होकर
कमरे में ताला लगा कर तेज़ कदमों से सत्संग हॉल की तरफ़ चल
पडीं। नए साल की तैयारियाँ भी करनी थीं। इस अवसर पर विशेष
प्रार्थना और भोजन का प्रबंध करना था। कुछ अतिथि भी बुलाए गए
थे। उनका प्रबंध देखना था। हल्की फुल्की सजावट और सफाई भी
करवानी थी।
शाम कब हो गयी राधा देवी को
रोज़ की तरह पता ही नहीं चला। इस शहर में दिन की रोशनी खत्म
नहीं होती थी कि आकाश में तारे टिमटिमाने लगते थे और दूर की
पहाडियों से शर्माता हुआ चाँद धीरे-धीरे ऊपर उठकर उनके कमरे की
खिड़की पर आकर टिक जाता था। वे जीना चढ़कर ऊपर आईं, गलियारा
पार किया और कोहरे से धुँधली उस बत्ती के नीचे खडी हो गईं जो
उनके कमरे के सामने जल रही थी। चाभी पर्स में से निकाल कर
उन्हानें ताला खोलने के लिए हाथ बढ़ाया पर दरवाज़ा तो पहले से
खुला था। डर की एक लहर उनके पूरे शरीर में दौड़ गई।
एक ही पल में वे अच्छी बुरी
कई बातें सोच गईं। क्या पति लौट आए हैं? उन्होनें धक्का देकर
दरवाज़े को ठेला तो एक क्षण के लिए आँखों पर विश्वास नहीं हुआ।
वे जैसे अनोखे अनुभव में डूब गईं। वहाँ खडे थे बेटा पलाश, बहू
बेला, पोता साहिल, दोहिता जिया और उनके पति। सबने नए साल पर
उनको अचानक उपस्थित हो आश्चर्य में डाल देने की योजना बनाई थी।
इसीलिए पहले से कोई जानकारी या सूचना नहीं दी थी। परिवार के
शोरगुल और स्नेह के इन सूत्रों ने अचानक उपस्थित होकर एक पल
में उनका जीवन बदल दिया।
''तभी तुम लोग आनलाइन नहीं दिख रहे थे मुझे चिन्ता भी हुई फोन
पर वायस मेल लगा था।'' वे मुस्कराईं।
''हमने पापा के साथ तय कर लिया था कि इस बार का नया साल हम
धूमधाम से मनाएँगे।'' बहू ने राधादेवी को बाहों में समेट कर
कहा। पलाश ने भी अपनी दोनों बाहें माँ के इर्द गिर्द लपेट दी।
राधादेवी को लगा इससे अच्छा नए साल का उपहार और क्या हो सकता
है कि साल शुरू होने के कुछ पल पहले ही दूर-दूर स्थित उनके
अपने उनके पास आ जाएँ।
नए साल की पूर्व संध्या पर
'अमृतयान निकेतन के इस काटेज के कमरे में एक विशेष सुगन्ध थी।
कमरा फूलों से भरा था और मेज पर एक केक रखा था। राधा देवी को
एक हल्के विस्मय के साथ सब कुछ सपने-सा लग रहा था। वे जीवन के
किसी सुन्दर उद्धरण पर पहुँच गई थीं। परिवार अगर एकसूत्र रहे,
स्नेहिल हो तो जीवन गतिमान हो जाता है। एक स्वप्निल-सी
मुस्कराहट उनके पति के चेहरे पर भी थी। वे मिल कर नए साल के
पहले पल में एक साथ प्रवेश करने वाले थे। घड़ी के बारह बजाते
ही ''दादा-दादी ने मिलकर नए साल का केक काटा। परिवार ने उन्हें
मेज़ पर चारों ओर से घेर रखा था। जलती मोमबत्ती का प्रकाश
राधादेवी के चेहरे पर दीप्त हो रहा था। राधादेवी जैसे किसी
लम्बी नींद से धीरे-धीरे बाहर आ रही थीं।
खुले दरवाज़े से मौसम की सर्द
हवा का एक झोंका कमरे में घुस आया। बहू ने उपहार में लाया हुआ
शॉले उनके कंधों के चारों ओर लपेट दिया। राधादेवी को लगा कि बस
यही पल है जब आदमी चाहता है कि कुछ क्षणों के लिये समय ठहर
जाए। चाँद भी मुस्कराता हुआ चाँदनी के साथ ऊपर उठ रहा था।
साल के पहले दिन की सर्द रोशनी में एक नीली-सी धुँध झील पर घिर
आई थी। राधा देवी ने केक खिलाते अपने बच्चों एवं पति को जब
प्यार से देखा तो एक हल्की सी कृतज्ञता की मुस्कराहट उनके
चेहरे पर भी झलक आई। |