अब लड़का
अधमुँदी आँखों से उसे निहार रहा था। चेहरे पर पड़ती सीधी धूप
से लड़के का चेहरा लाल हो उठा था। लड़की का मन किया कि वह इस
चेहरे पर प्यार की बरसात कर दे। तभी, कुछ सैलानी जिनमें कुछ
विदेशी भी थे, गले में कैमरे लटकाए उधर से गुज़रे तो लड़की ने
अपने विचार को स्थगित कर दिया। उनके आगे बढ़ जाने पर लड़की ने
अपना हेयर-क्लिप खोला और लड़के पर झुक गई। लड़की के रेशमी घने
बालों में लड़के का चेहरा छिप गया था। तत्काल लड़की ने अपने
स्थगित विचार को अंजाम दिया। लड़के को शायद इसकी उम्मीद नहीं
थी। वह जैसे सुख के सरोवर में नहा रहा था।
पॉपकोर्न वाले की आवाज़ से
लड़का-लड़की उठ बैठे। सामने एक बूढ़ा पॉपकोर्न के पैकेट्स हाथ
में लिए उन्हीं की ओर हसरतभरी नज़रों से देख रहा था। लड़के ने
इशारे से उसे पास बुलाया और दो पैकेट्स लिए। बूढ़ा खुश हो गया।
पॉपकोर्न खाते हुए वे वहाँ से उठे। दाईं ओर कुछ दूरी पर दीवार
के पीछे चिड़ियाघर था। वे उस ओर चल दिए। एकाएक, लड़के को जाने
क्या सूझी, वह तेज़ी से दौड़ा और एक छोटी-सी दीवार पर चढ़ गया।
लड़की ने भी उसी तरह चढ़ने की कोशिश की किन्तु सफल न हो सकी।
लड़के ने लड़की का हाथ पकड़कर उसे ऊपर खींचा। हल्की-सी कोशिश
में लड़की दीवार पर चढ़ने में सफल हो गई। इससे आगे एक बड़ी और
ऊँची दीवार थी जिसके पीछे चिड़ियाघर था। यहाँ कोई नहीं था।
जहाँ वे खड़े थे, वहाँ बिलकुल एकांत था। लड़के को शरारत सूझी
और लड़की को अपनी बाँहों के घेरे में लेने को लपका। लड़की ऐसी
जगहों पर सतर्क रहती है। वह बड़ी होशियारी से छिटक कर आगे बढ़
गई। लड़के ने गुस्से में मुँह बनाया और वहीं खड़ा रहा।
दीवार की खिड़की से लड़की ने चिड़ियाघर की ओर झाँका।
एकाएक लड़की बच्चों की तरह
चिहुँक उठी और खुशी में उछलती हुई-सी बोली, ''इधर आओ... इधर
आओ... वो देखो!''
लड़की के चेहरे पर अपार खुशी और उसके चहकने के ढंग को देखकर
लड़का दंग था। लड़की बार-बार उचक-उचक कर खिड़की के बाहर देखती
और हाथ से ठीक खिड़की के नीचे की ओर संकेत करती।
लड़के ने आगे बढ़कर नीचे झाँका। वहाँ कोई नव-विवाहित जोड़ा
चिड़ियाघर के लॉन में दीवार के पास टहल रहा था, हाथों में हाथ
थामे। लड़की लाल गोटेवाली साड़ी पहने थी। उसकी गोरी-गोरी
कलाइयों में गुलाबी और सफेद रंग का चूड़ा चमक रहा था। हथेलियों
पर खूबसूरत मेंहदी रचाये लड़की बहुत सुंदर लग रही थी।
''देखो, इन्होंने शादी कर ली।'' लड़की ने चहकते हुए कहा,
''आखिर उसने प्रेमिका को पत्नी बना ही लिया।''
इस जोड़े को लड़का-लड़की पिछले दो सालों से देखते आ रहे थे-
कभी कुतुब पर, कभी इंडिया गेट पर, कभी लोदी गार्डन, कभी मदरसा,
कभी प्रगति मैदान, कभी तालकटोरा तो कभी यहीं पुराने क़िले में।
''शादी के बाद ये लोग कितने अच्छे लग रहे हैं...'' लड़की ने
बेहद उमंग में भरकर कहा। क्षणांश, वह भी खूबसूरत सपनों में खो
गई। उसे लगा, विवाह के बाद वह भी घूम रही है, लाल जोड़ा पहने,
कलाइयों में चूड़ा पहने, हाथों में मेंहदी रचाये... एकाएक,
लड़की ने अपनी कलाइयों को हवा में लहराया, ऐसे जैसे वह पहने
हुए चूड़े की खनक सुनना चाहती हो।
''बस, अब कुछ ही दिनों में इनका प्यार चुक जाएगा। शादी के बाद
प्यार अधिक दिन नहीं रहता। देख लेना, छह-सात महीने या अधिक से
अधिक सालभर बाद ये लोग इन जगहों पर यों हाथ में हाथ लिए घूमते
हुए नहीं मिलेंगे।'' लड़का बोल रहा था, लड़की की ओर देखे बिना।
''क्या कहते हो?...'' लड़की लड़के से सटकर खड़ी हो गई और उसके
कंधे पर अपना सिर रखकर बोली, ''प्रेमिका को उसने पत्नी बनाया
है, अपनी जीवन-संगिनी... अब तो और भी करीब हो जाएँगे। सुख-दुःख
का इकट्ठा सामना करेंगे। पत्नी बनकर यह लड़की प्रेम को लड़के
की लाइफ़ में और प्रगाढ़, और सच्चा, और ऊष्मावान बना देगी।''
लड़की की उमंग और उत्साह, दोनों देखने योग्य थे। उसकी आँखों
में एक सपना झिलमिला रहा था। एक हसीन और खूबसूरत सपना...
''नहीं, तुम्हारा ऐसा सोचना
ग़लत है। प्रेमिका जब पत्नी बनती है तो प्यार के सारे समीकरण
ही बदल जाते हैं। शादी शब्द एक चाकू की तरह है जो गहराते प्यार
को, उसके अहसास को छीलने लगता है और धीमे-धीमे यह प्यार, यह
निकटता, यह सुखानुभूति लहूलुहान होकर दम तोड़ देती है।
प्रेमी-प्रेमिका का विवाह उनके बीच प्रेम की बहती नदी को सूखने
के लिए मजबूर कर डालता है, ऐसा मेरा मानना है।''
लड़का न जाने कैसी भाषा बोल रहा था। लड़की हतप्रभ थी। लड़के के
कंधे पर से उसका सिर खुद-ब-खुद हट गया था। लड़की को लगा जैसे
अकस्मात उसके भीतर कुछ दरक गया है- बेआवाज़! उमंगित, उत्साहित,
चहकता-खिलखिलाता उसका चेहरा एकाएक निस्तेज हो उठा। लड़की को
वहाँ अधिक देर खड़ा होना तकलीफ़देह महसूस होने लगा। वह पीछे
मुड़कर लौटने लगी। दीवार से कूदने की कोशिश में वह गिर पड़ी और
बायां घुटना पकड़कर वहीं ज़मीन पर बैठ गई। दर्द से उसकी आँखें
छलछला आई थीं और निचले होंठ को उसने दाँतों तले दबा रखा था।
लड़का फुर्ती से आगे बढ़कर
उसके पास बैठ गया और उसका घुटना सहलाने लगा। फिर उसने अपने
कंधों का सहारा देकर लड़की को ऊपर उठाया और चलने के लिए कहा।
लड़की कुछ देर उसका सहारा लेकर लंगड़ाती हुई-सी चली, फिर सहारा
छोड़ अपने आप चलने लगी, गुमसुम-सी।
लड़की को लगा, जैसे अंदर बेहद
कुछ टूट गया है। वह सोचने लगी- क्या वह बहुत ऊँचा उड़ रही थी कि
उसे ज़मीन दिखाना ज़रूरी था? लड़की सोच रही थी- लड़के ने उसके
घुटने की चोट तो देखी, पर क्या वह उस चोट को भी देख पाया है जो
अभी-अभी उसके भीतर लगी है?
दोपहर अपनी ढलान पर थी और पेड़ों, दीवारों के साये लम्बे होते
जा रहे थे। पुराने क़िले से बाहर निकलते समय लड़की बेहद चुप
थी। लड़के ने एक-दो बार रास्ते में उसे छेड़ने की कोशिश की
लेकिन लड़की ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। वह जल्द-से-जल्द अब घर
लौट जाना चाहती थी।
मोटर-साइकिल पर बैठते हुए
लड़के ने कहा, ''तुम्हें चोट लगी है, चलो तुम्हें तुम्हारे घर
तक छोड़ देता हूँ।''
''नहीं, मदरसा छोड़ दो। वहाँ से बस में ही जाऊँगी।'' लड़की का
स्वर कुछ इस प्रकार का था कि लड़का आगे कुछ न बोल सका और लड़की
के बैठते ही मोटर-साइकिल उसने आगे बढ़ा दी। |