पूरे इलाके में चर्चा
हो रही है कि मुल्ला गुलरेज़.... बुढ़ापे में बाप बनने जा रहा है।
कुछ लोग कहते कि यदि मुल्ला गुलरेज़.... यहाँ होता तो वे उससे
मिठाई खाते। समय तेजी से बीत रहा था। श़ाहनाज़ को अब
चलनेफिरने में तकलीफ होती। दाई कहती कि एक महीने में श़ाहनाज़
माँ बन जायेगी।
मुल्ला गुलरेज़.... वापस
आ गये तो उन्हें लोगों ने बधाई देना शुरू किया। मुल्ला गुलरेज़....
अपने घर गये। श़ाहनाज़ को अनेक औरतों ने घेर रखा था।
मुल्ला गुलरेज़.... ने सभी के सामने ही बरस पड़े,
श़ाहनाज़ की बच्ची!
तुमने किसके साथ गुल खिलाया है?
कुछ सब्र से काम
लें। पहले नाश्ता पानी करें। श़ाहनाज़ ने गहरी सांस लेते हुए
कहा। मुल्ला गुलरेज़..... आग बबूला हो रहे थे। औरतें मुल्ला गुलरेज़.....
को गुस्से में देखकर अपनेअपने घरों की तरफ जाने लगीं,
केवल अफ़साना रूक गयी थी।
श़ाहनाज़
मुल्ला गुलरेज़..... के सामने पीठ करके बैठ गयी थी। अफ़साना वहीं खड़ी हो
गयी थी। मुल्ला गुलरेज़..... ने हाथ में एक लाठी ली और श़ाहनाज़
की
पीठ पर वार करने ही वाले थे कि अफ़साना ने लाठी हाथ से पकड़ ली।
मुल्ला गुलरेज़..... ऊँची आवाज में उसे भला बुरा कहने लगे। उन्होंने
अफ़साना का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, तुम नहीं जानती
अफ़साना कि इसके पेट में पाप पल रहा है। दुनिया जानती है कि मैं
नामर्द हूँ। इससे पूछो कि यह किसका पाप अपने पेट में पाल रही है?
अब रहने भी दें,
इस पर और जुल्म न करें। दुनिया इसे आपकी ही औलाद कहेगी। अफ़साना
ने मुल्ला गुलरेज़..... को समझाने की कोशिश की।
कितनी बार कहूँ कि
इसके पेट में जो बच्चा पल रहा है वह मेरा नहीं है।
फिर किसका है मौलाना
साहब? अफ़साना ने प्रश्न किया।
इस कुलटा से पूछो,
यही बतायेगी मेरे जाने के बाद किसके साथ गुलछर्रे उड़ाती रही।
मुल्ला गुलरेज़.... ने अपनी लम्बी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा। श़ाहनाज़
से न रहा गया। उसने स्तब्धता छोड़ कर कहने लगी,
आपके जाने के बाद
कोई भी मेरे पास नहीं आया। पर शादी के पहले
हाँहाँ शादी के
पहले क्या हुआ सभी को बताओ? मुल्ला गुलरेज़.... चीखे थे।
अफ़साना इनसे कहो,
खुदा के लिये ये कहर न ढायें। इन्हें सभी कुछ मैने बता दिया था।
इसी लिए मैं शादी नहीं करना चाहती थी। श़ाहनाज़ ने बुरके को
सर से हटाकर कहने लगी,
जो चेहरा चाँद
से ज्यादा खुबसूरत था, उसमें इतनी जल्दी दाग नजर आने लगे।
जिन हाथों में मुझे जन्नत कहकर उठाते थे उन्ही हाथों से मेरी लाश क्यों उठाना चाहते हैं?
मुल्ला गुलरेज़.... के विरोध को
कोई कम न कर सका। वह कहते गुस्से में कहते हए घर से निकल गए,
मैं अदालत में
आवाज उठाऊँगा।
आदमियों की अदालत
में कब तक बकरों की तरह हलाल होते रहेंगे? धर्म के नाम पर आदमी
कब तक औरत को अपनी हवस का शिकार बनाता रहेगा? श़ाहनाज़
का विश्वास समाज से उठ गया था, जहाँ औरत को अपने पति को
चुनने की इजाज़त नहीं थी, जहाँ कानून और समाज में औरत को
बराबरी का दर्जा देना तो दूर उसे समान हक, तलाक देने और
मताधिकार की इजाज़त नहीं थी।
हाँ शाहनाज़, तुम
ठीक कहती हो। पर मौत के लिए तैयार रहो। हम औरतों की गवाही की
अहमियत कहाँ है। कहकर अफ़साना उदास हो गयी थी। जब उसके पति को
मृत्युदण्ड दिया गया था उसकी गवाही को अहमियत नहीं दी गयी थी।
आज मदरसा बन्द था।
मदरसे के पीछे बहुत बडा़ मजमा लगा हुआ है। अफगानिस्तान के
नगाड़े की आवाज लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही थी। आज दो
बातें घटेंगी। एक दुखद घटना है बच्चों के लिए। स्कूल के बच्चे अपने
पिताओं के साथ आये थे। आज उनकी अध्यापिकाटीचर को मौत की
सजा मिलेगी। दूसरी ओर विजयपर्व मनाया जा रहा है।
यहाँ का गुरिल्ला दस्ते
पड़ोसी देशों में आतंकी हमले करके वापस आये हैं। एक ओर बुरका
पहने एक औरत के हाथ पीठ के पीछे बँधे थे। उसके साथ अन्य औरतें
खड़ी थीं। पास ही कुछ सिपाही खड़े थे।
तभी घोषणा हुई आज मुजरिम श़ाहनाज़ को दुश्चरित्र होने के अपराध में गोली मारकर मृत्युदण्ड
दिया जायेगा। उसके बाद यहाँ जश्नखुशी मनायी जायेगी। थोड़ी
ही देर में युवकों के विजयी गुरिल्ले दस्ते का स्वागत किया
जायेगा। आदि
घोषणा पूरी होती कि
सभी लोग उस ओर देखने लगे जिधर से आसमान में धूल उड़ती
दिखायी दे रही थी। धूल पास आने लगी और साथ ही दो जीपों के
आने की आवाज़। बन्दूकों से गोलियों के छूटने की आवाज के साथ
जीपें रूकी।
जीप से सबसे पहले दोसादीन
हाथ में मशीनगन लिए कूदा। अफ़साना ने हाथ बँधे खड़ी श़ाहनाज़
से कहा,
श़ाहनाज़ मदद के
लिए चीख! वह देख तेरा मददगार दोसाबीन आ गया है। दोसाबीन
काफी पास तक आ गया था।
दोसाबीन मैं श़ाहनाज़, बेगुनाह हूँ। मुझे बचाओ, दोसाबीन! दोसाबीन
मुझे बचाओ!
अफ़साना ने दौड़कर,
आगे बढ़कर श़ाहनाज़ के सर से बुरका उठा दिया, ताकि दोसाबीन उसे
पहचान सके।
सिपाही ने अपनी बन्दूक को
सम्भालते हुए शाहऩाज की तरफ उसकी नोक की ही थी, कि तभी दोसाबीन
ने अपनी मशीनगन से सिपाही को मौत के घाट उतार दिया।
दूसरे सिपाही ने दोसाबीन
की तरफ बन्दूक का निशाना साधा। यह देखते ही दोसाबीन के साथी ने दूसरे सिपाही को
घायल कर दिया।
इस अफ़रातफ़री को देख धार्मिक नेता
शान्ति की
अपील करने लगे। वे ऊँची अवाज़ में भीड़ से अपने स्थान पर खड़े रहने के लिए
प्रार्थना कर रहे थे।
दोसाबीन ने अपनी कमर में से छुरी निकाली और श़ाहनाज़ के बँधे
हाथों की रस्सी काटकर उसके गले लग गया। दोसाबीन के
साथियों ने मशीनगन लिये हुए उनके चारों ओर रक्षात्मक घेरा
बना कर सिपाहियों की तरफ निशाना साध लिया
तभी
सिपाहियों ने दोसाबीन और उसके गुरिल्ला साथियों को ललकारा
। हाहाकार मच गया
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