कहानियाँ |
समकालीन
हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस माह प्रस्तुत है यू.के. से पद्मेश गुप्त की कहानी — कशमकश |
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रात के २ बज चुके हैं। सुबह १२
बजे की फ्लाइट से चाँदनी मुम्बई जाने वाली है। लंदन का
हीथ्रो एयरपोर्ट सागर के फ्लैट से १० मील की दूरी पर है।
चाँदनी माथे पर हल्की सी शिकन ओढ़े सोचती है, लगता है सुबह
टैक्सी से जाना पड़ेगा, सागर ने कुछ ज़्यादा ही पी ली है।
कुछ पल खामोशी छाई रहती है। चाँदनी का हाथ टी.वी. के रिमोट
की ओर बढ़ता है। सागर चाँदनी के हाथों को थाम लेता है,
"प्लीज! तुम्हारे जाने से पहले के यह पल मैं सिर्फ़ तुम्हारे
साथ गुज़ारना चाहता हूँ, सुबह तो तुम चली जाओगी। मानता हूँ
दस दिनों का समय बहुत लम्बा नहीं है, फिर भी, तुम्हारे बगैर
नहीं गुज़रेगा, और तुम्हारा जाना मेरे मन के किसी नाजुक
हिस्से को भारी कर रहा है।" चाँदनी होठों पर मुस्कुराहट लिए सागर के हाथों को चूमते हुए कहती है, "और जब तुम एक सप्ताह के लिए अमरीका गए थे, उसका कुछ नहीं? तुम नहीं जानते मैंने वो समय कैसे काटा था।" "मैं जानता हूँ मेरी चाँद, मेरे उस सफ़र ने मेरी कितनी ही पेंटिंग्ज पर तुम्हारी कविता की पंक्तियों को जन्म दे दिया था, मेरे बनाए चित्रों को जीवन दिया है तुमने," सागर चाँदनी की उँगलियों को दबाते हुए कहता है। |
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