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"मगर कमबख्त आएगा तो वह भी  . . . " हेनरी ने महादेवन से कहा।
"आने दो, क्या फर्क पड़ता है  . . . "
"मैं उसको देखना भी नहीं चाहता  . . . . कमबख्त में आदमीयत ही नहीं है  . . . "
"फेयरवेल एक फॉर्मेलिटी है  . . . इसे निपटा दो  . . . स्टॉफ की भावना की बात है  . . . "
"ठीक है, आ जाऊंगा  . . . "
हेनरी को स्कूल में आए तीन महीने ही बीते थे।  और, इन तीन महीनों में उसका फेयरवेल भी होने जा रहा था  . . . .

शॉर्ट ब्रेक में फेयरवेल आयोजित किया गया।  ब्रेक पंद्रह मिनट का होता है।  सभी अध्यापक–अध्यापिकाएं, हेड मास्टर और वाइस प्रिंसिपल जब लेडिज स्टॉफ–रूम में इकठ्ठे हो गए तो सेक्रेटरी महादेवन प्रिंसिपल को बुलाने के लिए उनके चेम्बर की तरफ लपका।  जब तक वह लौटता, तब तक पूरे स्टॉफ में सभी एक–दूसरे को यह समझाने में लगे थे कि देखा, आदमी हो तो ऐसा  . . . 

हेनरी अगली पंक्ति में तटस्थ भाव से बैठा हुआ था।

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हानी का मुख्य पात्र तो हेनरी ही है।  मगर बिना मिस्टर जयराज, वासुदेव और कुछ अन्य पात्रों के यह कहानी बनेगी नहीं। साथ ही स्कूल की पृष्ठभूमि को भी थोड़ा–सा जान लेना जरूरी है। 

साढ़े चार हजार बच्चों वाला यह स्कूल इस नगर में तो क्या पूरे देश में एक बहुप्रतिष्ठित स्कूल है।  पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी है।  पचहत्तर प्रतिशत छात्र–छात्राएं शहर से आते हैं, शेष के लिए हॉस्टल की सुविधा है।  एक ही बैनर के अंतर्गत बाहर से तो एक, पर भीतर से चार अलग–अलग स्कूल, एक ही कैम्पस में चल रहे हैं।  के•जी•, मॉर्निंग ब्वॉयज, मॉर्निंग गर्ल्स और आफ्टर नून ब्वॉयज।  इन चारों शिफ्टों का प्रिंसिपल एक ही है।  मिस्टर जे•जे• जयराज पंडित।  कहता तो अपने को कश्मीरी है पर पता नहीं क्यों उसे अपने को पंडित कहलवाना या सुनना पसंद नहीं।  इसलिए उसने अपने नाम से पंडित निकाल दिया है।  दिखने में अधकचरे पंजाबी–सा।  पकी हुई दाढ़ी है, पर पगड़ी नहीं।  

लोगों के तो हाथ तंग होते हैं पर उसकी जुबान तंग हैं।  क्लीयर को किलियर और शब्द को सबद बोलने में उसे ज्यादा आसानी होती है।  चूंकि, अपने अध्यापकीय जीवन में वह गणित का अध्यापक रहा था अतः उसकी भाषाई गलतियों को कोई ज्यादा महत्व नहीं देता।  और, अपनी गलतियों को गिनना उसने खुद ही छोड़ दिया है।  

उसे अपनी भाषा से ज्यादा अपनी कार्यशैली पर भरोसा है।  धीरे–धीरे ही सही, उसने यह जान लिया है कि जिस कौम को नेशन बिल्डर और नोबल प्रोफेशन से जोड़ते हैं उससे ज्यादा नपुंसक कोई और काम  नहीं हैं।  और यह जान लेने के बाद से तो गधा नंबर एक होते हुए भी शेर की खाल ओढ़े एकछत्र राजा बना हुआ है।  आज से नहीं, पिछले तेरह वर्षों से।  मुकद्दर की बात है कि जब–जब भी चेयरमैनशिप बदलती है; तब–तब कोई ऐसा आदमी चेयरमैन हो जा रहा है जिसे साध लेने में मिस्टर जयराज को जरा भी देर नहीं लगती।

सेक्रेटरी महादेवन प्रिंसिपल जयराज को लेडीज स्टॉफ रूम में ले आया।  हेनरी को प्रिंसिपल की बगल वाली कुर्सी पर बैठाने के बाद महादेवन ने इस रस्मो औपचारिकता की पहली सीढ़ी पकड़ी, "आप सभी जानते हैं कि हम यहां मिस्टर हेनरी को गुड–बाय कहने के लिए एकठ्ठा हुए हैं।  यद्यपि मिस्टर हेनरी बहुत कम समय तक ही हमारे बीच रहे पर हम उन्हें इसलिए याद करते रहेंगे कि  . . . . ही इज अ जॉली गुड फेलो  . . . अब मैं अपने बिलवेड़ प्रिंसिपल से निवेदन करूंगा कि हम सबकी ओर से मिस्टर हेनरी को मोमेंटो प्रदान करें और दो शब्द कहें  . . . ."उसमें एक स्मृति–चिन्ह जिस पर स्कूल का नाम लिखा हुआ था और एक गिफ्ट पैकेट प्रिंसिपल को पकड़ाया।  हेनरी उसे स्वीकार करने के बाद फिर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।  मिस्टर जयराज ने एकबार पूरे स्टॉफ को गौर से देखा और फिर बोलना शुरू किया, "डियर फ्रेंड्स  . . . मिश्टर हेनरी ने यहां कुल तीन महिने काम किया  . . . . अपने डिसीजन से इन्होंने मुझे और मैनेजमेंट को प्रेसानी में डाल दिया  . . . . मैं तो इनको एक्सपीरियंश्ड और जिम्मेदार शमझता था, लेकिन ये पूरी तरां अभी मैचयोर नहीं हुए हैं  . . . . अब मैं आपशे . . . . मिश्टर हेनरी रिकवेश्ट करूंगा कि शकूल के बारे में  . . . . मेरे बारे में  . . . एक फ्रैंक ऑपीनियन दें  . . . हंजी,  . . . मिश्टर हेनरी प्लीज  . . . "

हेनरी खड़ा हुआ, "डीयर मेम्बर्स ऑफ द स्टॉफ  . . . मैं तो यहां काम करने की नीयत से आया था लेकिन जब कमबख्त तकदीर ही खराब हो तो कोई क्या कर सकता है।  मैंने आपके बीच काम करते हुए बहुत अपनापन पाया वरना तीन महिने काम करने वाले को कोई फेयरवेल देता है क्या  . . . मेरे लिए यही बहुत है।  आइ विल सरटेनली मिस यू ऑल  . . . एंड मिस्टर जयराज  . . . ऐज यू हैव आस्कड माइ फ्रेंक ओपीनियन  . . . तो  . . . " हेनरी ने दो तीन पलों का पॉज दिया, उसने सबकी ओर, और खासतौर पर प्रिंसिपल की ओर एक भरपूर नजर देखकर बोलना शुरू किया, "ऐज अ परसन, आय डोंट नो अबाउट यू  . . . इट वॉज फैक्ट बिकॉज  . . . . आइ कुड नॉट स्पेंड मच टाइम विथ यू  . . . . बट , ऐज आइ हैव सीन यू  . . . . ऐज ऐन ऐडमिनिस्ट्रेटर  . . . . अ प्रिंसिंपल  . . . मेरे पास पंद्रह वर्षों का टीचिंग एक्सपीरियेन्स है  . . . आइ हॅव वर्क्ड इन डिफरेन्ट कंट्रीज  . . . आयम सॉरी टू से  . . . बट, आइ डोन्ट हैव रिगरेट आलसो  . . . . दॅट आइ हैव नेव्हर कम अक्रॉस अ बास्टर्ड लाइक यू  . . . ऐण्ड स्कूल  . . . नो डाउट  . . . .इज इज अ गुड स्कूल  . . . दो ओनली गुड स्कूल इन द रीजन  . . . बट, इन द मोस्ट इनकॉम्पोटेन्ट हॅंड्स  . . . थॅंक्यू फ्रेंड्स  . . . आय थैंक यू ऑल फॉर अरेंजिंग द फेयरवेल पार्टी  . . . "  

अपनी बात कहकर वह फिर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।  उसकी स्पष्ट राय से स्टॉफ रूम सन्न रह गया।  जैसे कोई रिमोट कंट्रोल बॉब ब्लास्ट हुआ हो  . . . या कोई गाइडेड मिसाइल अपनी सही जगह पर, निशाने पर लगी हो।  कुछ ऐसा ही हुआ था।  उसकी राय सुनने के बाद मिस्टर जयराज का चेहरा धुंआ–धुंआ हो गया और माथे पर कई बल आए–गए।  जैसे वह सार्वजनिक स्थान पर पूरी तरह नंगा हो गया।  उसने एक झटके से कुर्सी छोड़ी और उसी झटके में स्टॉफ रूम से बिना किसी की ओर देखे बाहर हो गया।

सेक्रेटरी का हाल सबसे बुरा था।  अभी उसे एक और औपचारिकता पूरी करानी थी।  स्कूल में आने वाले विजिटर और स्कूल छोड़कर जाने वाले टीचर्स, रेकॉर्ड बुक पर अपनी राय दर्ज कर जाते थे।  अब, जबकि हेनरी की मौखिक राय से विस्फोट हो सकता है, तो उसका लिखित बयान ऐतिहासिक दस्तावेज से कम क्या होगा  . . . . "क्या कोई तूफान आएगा  . . . "  आने वाले तूफान की आशंका से महादेवन भीतर ही भीतर ही सिहर रहा था।

वाइस प्रिंसिपल और हेड मास्टर आपस में कुछ बतियाते हुए बाहर निकल गए।  उनके बाहर जाते ही सक्रेटरी अब हेनरी के पीछ पड़ा था, "क्या जरूरत थी, तुम्हें जाते–जाते यह सब कहने की  . . . यू नो  . . . व्हॉटएव्हर यू हॅव टोल्ड  . . . . "

येस  . .. . येस  . . . आई नो  . . . आई नो वेरी वेल  . . . कमबख्त क्या पता था कि वह मेरी फ्रैंक ओपीनियन मांगेगा  . . . . अब मांगा है तो सुनो भी  . . .

"तुम्हें रिकॉर्ड बुक पर अपने कमेंट्स भी लिखने होंगे  . . . "
"उस पर भी मैं वहीं लिखूंगा, जो सच है  . . कमबख्त ये फार्म्लिटी भी क्या चीज है  . . . "
"कम से कम उस पर तो ऐसा वैसा कुछ मत लिखो  . . . "
"फिर मुझसे लिखवाओ ही मत  . . . "
"चलो, जब लिखना होगा तब सोचना  . . . अभी तो प्रिंसिपल को देखूं  . . . "

महादेवन प्रिंसिपल को देखने निकला।  समोसे प्लेटों में अकड़ने के लिए पड़े रह गए।  टीचर्स एक–एक करके बाहर निकलने लगे।  प्रायः सबने ही हेनरी से हाथ मिलाया और लगभग मौन रहते हुए ही कह भी दिया कि थैंक्स, हेनरी . . . हम जो कुछ चाहते हुए भी वर्षों में नहीं कह पाए, वह तुमने तो कह दिया  . . . थैंक्स . . . ।

स्टॉफ रूम से निकलकर प्रिंसिपल अपने चेम्बर में नहीं गया।  वह सीधे गैराज में जाकर अपनी कार में जा बैठा और उसके बाद  . . . अपने घर ही गया होगा।

कहने वाले कहते हैं कि वह घर भी क्या जाए।  उसकी बीवी अफ्रीका में किसी गरीब मुल्क की है पर ऊपर वाले ने उसे अमीर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।  पाँच फूट से भी दो–ढ़ाई इंच छोटे अपने मियां की कद–काठी के आगे मिसेज जयराज वजन सहित दो–ढ़ाई गुना ज्यादा ही बैठती है।  ताड़का की कोई बहन–सी दिखने वाली मिसेज जयराज अपने खाविंद को अपनी बगलों में दाबकर एक–ड़ेढ किलोमीटर तक बड़े आसानी से ब्रिस्क वॉक कर सकती है।  दोनों को साथ–साथ चलते देखकर मिस्टर जयराज के बारे में जो एक गीत की पंक्ति को चुटकुला सा बनाकर मिसेज जयराज के साथ जोड़ रखा है – छोटे से बलमा मेरे आंगना में गुल्ली खेलें।  खैर, इन सब बातों से मिस्टर जयराज के पारिवारिक जीवन पर कोई फर्क नहीं पड़ता।  उसकी शादी को पंद्रह वर्ष हो रहे हैं।

जब शादी की तब मिसेज जयराज का नाम तान्या था और वह मिस्टर जयराज की स्टूडेंट थी।  यह वाकया केन्या में हुआ था।  पता नहीं दोनों में से किसने किसको प्रपोज किया, बहरहाल, शादी हो गई।  खुद को आइने में देखने के बाद दोनो के लिए यही बहुत था।  जिस विवाह को पंद्रह साल हो रहे हों, उसे सफल ही कहा जा सकता है।  इन पंद्रह वर्षों में जुगल–जोड़ी को संतान के नाम पर एक पुत्र ओर एक पुत्री से ऊपर वाले ने नवाजा है।

स्कूल में साफ हिदायत है कि अंग्रजी के अलावा न तो कोई भाषा बोली जाए और न ही किसी भाषा को बढ़ावा दिया जाए।  मगर यह सब केवल लिखित में ही है।  जब भाषा के मामले में खुद प्रिंसिपल का ही हाथ तंग हो तो वह दूसरों को कैसे बाध्य कर सकता है।  अस्सी प्रतिशत बच्चे और स्टॉफ केरल का है।  उनकी मलयालम चलती रहती है।  मैगलौर वाले अपनी कन्नड़ सुनते–सुनाते हैं।  केवल नार्थ इंडियन टीचर्स ही ऐसे हैं जो अपनी हिंदी का अंग्रजी में अनुवाद करके या अपनी अंग्रेजी में कही हुई बात को हिंदी में दुहराने का कष्ट साध्य काम बिना कष्ट महसूस किए करते हैं।  

फिलहाल, स्कूल के लिए भाषा कोई समस्या नहीं।  समस्या है तो प्रिंसिपल के लिए।  आधे से अधिक छात्र–छात्राएं उसे शक्ल से नहीं पहचानते  . . . है न आश्चर्य की बात !  कि छात्र–छात्राएं अपने ही प्रिंसिपल को नहीं पहचानते।  कारण  . . . मिस्टर जयराज के पास कोई टीचिंग पीरियड नहीं है।  जुबान का तंग होना ही उसे दिन भर अपने चेम्बर में बनाए रखता है।  इस तरह से भी अगर प्रिंसिपल की कुर्सी पर मिस्टर जयराज का कब्जा बना हुआ है तो इसके पीछे उसकी वह कार्यशैली है जिससे दुखी होकर पेरेण्टस और टीचर्स यह मानने लगे हैं कि प्रिंसिपल पगला गया है  . . . . जैसा कि आमतौर पर प्रिंसिपलों के साथ होता है  . . . अब आगे हेनरी की कहानी ही बताएगी  . . . .

सितंबर के पहले हफ्ते के शुरूआती दिनों में जिस दिन हेनरी और वासुदेव ने एक साथ स्कूल ज्वॉयन किया, उस दिन उन टीचर्स को गोल्ड मेडल दिया जाना था जिन्हें यहां काम करते हुए दस वर्ष हो गए थे।  एक उत्सव–सा आयोजन था।  यों तो, स्कूल को चलते हुए सत्रहवां वर्ष चल रहा है।  यह एक परंपरा की शुरूआत थी।  इस अवसर पर सभी बोर्ड मेम्बर्स मौजूद थे।  कोई पीछे क्यों रहता, यही मौके तो उनकी पहचान कराते हैं कि वे अतिविशिष्ट लोग हैं।  सूट और टाई लगा लेने के बाद इनकी गर्दनें कुछ इस तरह अकड़ जाती है कि जैसे इन सबको ही स्पांडेलाइटिज हो गया है।  ऐसे किसी मौके पर स्कूलों में जो होता है, वही हुआ।  चेयरमैन की प्रशस्ति में प्रिंसिपल ने कुलाबे मिलाए, और, प्रिंसिपल की प्रशस्ति गाथाएं चेयरमन ने गाई।  तू कह मैं अच्छा, मैं कहूं – तू अच्छा।

इस प्रशस्ति पाठ या वाचन के बाद एक नया कार्यक्रम शरू हुआ जिसकी जानकारी कुछ खास लोगों के अलावा किसी को नहीं थी।  टेलेण्ट्स डे।  यानी कि वे अध्यापक–अध्यापिकाएं जिनमें छिपी हुई तरह–तरह की प्रतिभाएं हैं, उनका प्रदर्शन करेंगे, ताकि जाना जा सके कि अध्यापक–अध्यापिकाएं भी ऐसे–वैसे नहीं हैं।  पता चला कि इस आयोजन की तैयारी भीतर ही भीतर महींनों पहले से चल रही थी।  कुछ छिपी हुई प्रतिभाओं ने कहर ढ़ाया।  उन्होंने सामीता फॉक्स, मेडोना और टीना टर्नर के गाए गीतों पर अपनी आवाज और अपने जिस्म का ऐसा ताल–मेल बैठाया कि पूछिये मत।  अब तालियां उन्हें हटाने के लिए बजीं, या कि उत्साहित करने के लिए।  कुछ नहीं कहा जा सकता।  सबने उनका अर्थ अलग–अलग लिया।

ताज्जुब की बात है कि टेलेण्ट केवल महिलाओं में ही दिखा।  यह प्रदर्शन कुछ अधिक ही आत्मविश्वास में पगी प्रतिभाशालिनी महिलाएं तलाकशुदा थीं।  प्रतिभा और आत्मविश्वास भी क्या चीज है।  परिवार बिखरकर रह जाता है।

चेयरमैन ने एक हिंदी गाने की फरमाइश की तो कार्यक्रम की संयोजिका मिस अवंतिका (जो पहले कभी मिसेज कालरा और बहुत पहले कभी मिस पूना रह चुकी थीं) ने उसके पास जाकर कंधे उचकाते हुए कहा . . . . 'हाट  . . . सर्र  . . . . अ  . . . अ  . . . हिंदी साँग  . . . अ  . . हिंदी साँग में सर्रकाय ले खटि्टया और   . . . चोल्ली के पीछे क्या है  . . . के अलावा और तो कुछ भी नहीं हैं  . . . '।  अब चेयरमैन मिस अवंतिका को वहां क्या समझाते, और कैसे समझाते कि चोली के अलावा भी हिंदी में बहुत कुछ है जिसे मिस भूतपूर्व मिस पूना नहीं जानती।  बहरहाल, चेयरमैन चुप रह गए।  और, प्रतिभाशालिनी अध्यापिकाओं ने अपनी छिपी प्रतिभाओं से बोर्ड मेंम्बर्स को न केवल परिचित कराया, बल्कि लुभाया भी।  पता नहीं, चेयरमैन और बोर्ड मेम्बर्स में से किसी ने उन्हें अपना ख्वाबगाह में बसाया या नहीं, कौन जाने।  पर, कोशिश तो भरपूर हुई।  अब हर कोई अमेरिका का जिमी कार्टर तो हो नहीं सकता कि साफ–साफ स्वीकार कर ले कि सुंदर और चुलबली महिलाओं को देखकर उसके मन ने वह सब कुछ किया जो सोच के धरातल पर संभव हो सकता है।

टीचर्स को गोल्ड मेडल दिए जाने के बाद प्रिंसिपल ने हेनरी और वासुदेव का परिचय बोर्ड मेम्बर्स और चेयरमैन से कराया।  हेनरी से चेयरमैन ने पूछा, 'आप कौन–सा सब्जेक्ट पढ़ाएंगे  . . . मिस्टर हेनरी  . . .'

'केमेस्ट्री  . . . सर  . . . '

'आइ विश यू अ कम्फर्टेबल स्टे इन द स्कूल  . . . ' हेनरी के साथ बातचीत कुछ ज्यादा लंबी नहीं हुई।  पर, वासुदेव के साथ मामला लंबा खिंच गया।  असल में वासुदेव कुछ चीज ही दूसरी है।  मौके को अपने पक्ष में कर लेना उसे बखूबी आता है।
'डिड यू लाइक द कैम्पस  . . स्कूल  . . . आइ मीन द सराउंडिग्स  . . . '
'सर,  . . . वेरी ब्यूटीफुल सर  . . . लवली  . . . वेल ऑर्गनाइजेशन  . . . ऐण्ड वेल मैनेज्ड सर  . . . . '  
'टीचिंग के अलावा एक्स्ट्रा एक्टिविटीज में आप और क्या कर सकते हैं  . . . . आइ मीन फॉर द बेटरमेंट ऑफ द स्कूल  . . . '  चेयरमैन ने वासुदेव से पूछा।

'सर,  . . . आइ कैन डू सो मेनी थिंग्स  . . . . स्काउट्स  . . . एन  .सी  .सी  . और गेम्स में टी  .टी  . सिखा सकता हूं।  एन  .सी  .सी  . में तो ब्हुत ही अच्छी ट्रेनिंग दे सकता हूं  . . . . यह देखिए, जब मैं ट्रेनिंग में था तो  . . . पीठ में गोली लग गई थी  . . . '  वासुदेव ने अपनी पीठ उघाड़ दी।  सबका ध्यान उसकी पीठ में लगी गोली के निशान पर ही केंद्रित हो कर रह गया।  पीठ पर काला पड़ हुआ निशान था, ऐसा कह पाना किसी के लिए शत–प्रतिशत सबूत जैसा नहीं था।  और, बैताल चेयरमैन के दिमाग में भी यह सवाल नहीं उभरा कि ऐसा कौन सा स्कूल है जिसमें ट्रेनिंग के दौरान असली गोली चलाना सिखाया जाता है  . . . या कि, गोली वासुदेव की पीठ में ही क्यों लगी  . . . सीने पर क्यों नहीं . . . . बहरहाल, वासुदेव का सिक्का जम गया।  चेयरमैन ने मिस्टर जयराज को बुलाकर कहा, 'मिस्टर जयराज, प्लीज  . . . अनाउन्स दैट मिस्टर वासुदेव इज इंचार्ज फॉर द मॉर्च पॉस्ट सेरेमनी इन इण्टर स्कूल एथिलेटिक मीट  . . '

चेयरमैन की सामान्य बात भी प्रिंसिपल के लिए गंभीर सलाह होती है।  यह तो एक तरह से आदेश था।  शाम तक वासुदेव को लिखित में भी मिल गया कि अक्तूबर के महीने में होने वाले एनुअल एथलेटिक मीट में उसे अपने स्कूल की टीम को मार्च पास्ट के लिए तैयार करना है।  दूसरे दिन पूरे स्कूल में वासुदेव की चर्चा थी।  लेकिन शाम होते–होते एक और चर्चा ने जोर पकड़ लिया।

हुआ यह कि अपने खाली पीरियड में हेनरी लायब्रेरी में गया।  वहां एकाध अख़बार देखने के बाद रीडर्स पॉकेट में अपनी दोनों बाँहों को सामने मिलाकर उसने अपना सिर टिका लिया।  थोड़ी देर बाद ही उसके खर्राटे गूंजने लगे।  उस समय नाइंथ ए के छात्रों का लायब्रेरी पीरियड था।   

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