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डाकटिकटों में बखानी तिरंगे की कहानी
-मधुलता अरोरा

Bभारत के राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास में मैडम भीखाजी कामा का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। वे पहली भारतीय थीं जिन्होंने विदेश की ज़मीन पर भारतीय झंडा फहराया और विश्व के सामने ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध भारतीय जनता के स्वतंत्रता संग्राम की घोषणा की। मैडम कामा के झंडे में हरा रंग सबसे ऊपर था। सुनहरा, केसरिया और लाल नीचे थे। आठ कमलों की एक पंक्ति थी जो तत्कालीन भारत के आठ राज्यों के प्रतीक थे। सुनहरे अक्षरों में वंदेमातरम लिखा हुआ था, दण्ड की ओर अर्धचंद्र बना था और बाहरी छोर पर सूर्य की आकृति थी।  

स्टुटगर्ट, जर्मनी में २२ अगस्त १९०७ को उन्होंने कहा, "यह ध्वज है भारतीय स्वतंत्रता का, देखिए, इसका जन्म हो चुका है। शहीद हुए भारत के नौजवानों के रक्त ने इसकी स्वीकृति दी है। मेरा अनुरोध है कि आप खड़े हो कर भारतीय स्वतंत्रता के इस प्रतीक का अभिनंदन करें। इस झंडे के नाम पर मैं विश्व भर के स्वतंत्रता प्रेमियों से अपील करती हूँ कि आप इसके नीचे एक जुट हो कर उस विशाल देश की जनता के स्वतंत्रता-अभियान में साथ दें जहाँ विश्व की समस्त जनसंख्या का एक पाँचवाँ हिस्सा निवास करता है। मुम्बई में १६ अगस्त १९३६ को उनका निधन हो गया।

२३ अप्रैल १९१६ को बालगंगाधर तिलक ने बंबई में स्वदेशी राजसंघ (होमरूल लीग) की स्थापना की। छे महीने बाद श्रीमती एनी बीसेंट ने मद्रास में इस संघ की स्थापना की। संघ की लोकप्रियता बढ़ने लगी और इसने छोटे शहरों व गाँवों में भी नई जाग्रति पैदा की जहाँ पहले आम जनता में स्वतंत्रता के विषय में जानकारी बहुत कम या ना के बराबर थी।

बाल गंगाधर और एनी बीसेंट, स्वतंत्रता के इन दो कर्णधारों ने मिलकर एक नए झंडे की रचना की। इसमें लाल रंग की पाँच और हरे रंग की चार समान्तर पड़ी धारियाँ थीं साथ ही सप्तऋषि के प्रतीक के रूप में सात सितारे थे। दंड के पास बायीं ओर ऊपर यूनियन जैक था और दाहिनी ओर अर्धचंद्र एक तारे के साथ प्रदर्शित किया गया था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस झंडे को १९१७ में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन के समय पहली बार फहराया गया था।

राजनीतिक परिस्थितियाँ इस प्रकार आकार ले रही थीं कि एक नेता की ज़रूरत को गंभीरता से महसूस किया जा रहा था। इसी समय मोहन दास कर्मचंद गांधी सामने आए और वे इस भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेता बने। उनके आगमन से इस आन्दोलन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ।

१९१६ में मसुलिपटनम के पिंगली वैकय्या नामक एक आंध्र युवक ऐसा भारतीय ध्वज बनाने की कोशिश कर रहा था जो सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सके। गांधी जी ने उससे प्रभावित होकर उसे बेज़वाडा (अब विजयवाडा) में राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की एक सभा में अप्रैल १९२१ में आमंत्रित किया। उससे तीन घंटे के समय में लाल (हिन्दुत्व का प्रतिनिधित्व करने वाला) और हरे रंग (मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाला) की पृष्ठभूमि पर चक्र के साथ भारतीय राष्ट्रीय झंडे का एक नमूना तैयार करने को कहा गया। तीन घंटे के अंदर वेंकय्या ने एक झंडा बना कर गांधी जी को सौंप दिया। इस झंडे में लाल और हरे रंग की दो पट्टियाँ थीं और दोनों को को ढँकता हुआ बड़ा-सा चक्र था। गांधी जी ने अनुभव किया कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन रंग होने चाहिए। गांधी जी ने वेंकटैय्या को फिर से बुलाया और उससे ऊपर सफ़ेद, बीच में हरे और नीचे लाल रंग की पट्टियों वाले एक ध्वज को तैयार करने की सलाह दी। इसमें बीच में तीनों पट्टियों तक जाने वाला एक बड़ा चक्र बनाया गया था। इस प्रकार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पहले झंडे का जन्म हुआ।

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