१९२४ में सेवा दल के
कार्यकर्ताओं ने ध्वजा वंदन की शुरुआत की थी। उसी साल श्री श्यामलाल गुप्ता ने -
"विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा"
नामक गीत की रचना की। धीरे-धीरे झंडारोहण के वक्त इस गीत को
गाने का प्रचलन हो गया।
१९३० तक यह झंडा सर्वत्र
लोकप्रिय बन गया किंतु इसके रंगों को धर्म विशेष से जुड़े
होने के कारण विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई, जिससे निपटने के
लिए २ अप्रैल १९३१ में सात सदस्यों की समिति का गठन किया गया।
इसके संयोजक थे - डॉ. बी. पट्टांबि सीतारामय्या और सदस्य थे -
- पं. जवाहरलाल नेहरू,
- वल्लभभाई पटेल,
- मौलाना अबुल कलाम
आज़ाद,
- मास्टर तारा सिंह,
- डॉ.एन.एस. हर्डीकर और
- दत्तात्रेय बालकृष्ण
कालेकर
समिति इस निर्णय पर पहुँची
कि १९२१ के झंडे के रंगों में धार्मिकता का पुट था। अत: झंडे
में शौर्य के प्रतीक केसरिया, सत्य के प्रतीक श्वेत और
ऐश्वर्य और विश्वास को प्रतीक हरे रंग को शामिल किया गया।
मध्य में नीले रंग का चक्र रखा गया।
जब लुइस फ्रांसिस एल्बर्ट
विक्टर निकोलस माउण्टबेटन भारत के वायसराय बनाए गए तो
उन्होंने भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की। सभी नेता
स्वतंत्र देश के लिए ऐसे झंडे के बारे में गंभीरता से
विचार करने लगे जिसे सभी स्वीकार करें। डॉ.
राजेन्द्रप्रसाद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन हुआ
जिसके सदस्य थे - अब्दुल कलाम आजाद, के.एम. पणिक्कर,
सरोजिनी नायडू, सी.राजगोपालाचारी, के.एम.मुंशी, और
डॉ.बी.आर.आंबेडकर। |