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आसिन-कातिक का सूरज दो बाँस दिन रहते ही कुम्हला जाता है। सूरज डूबने से पहले ही नननपुर पहुँचना है, हिरामन अपने बैलों को समझा रहा है, ''कदम खोलकर और कलेजा बाँधकर चलो ए छि छि! बढ़के भैयन! ले-ले-ले-ए हे,य!''

नननपुर तक वह अपने बैलों को ललकारता रहा। हर ललकार के पहले वह अपने बैलों को बीती हुई बातों की याद दिलाता, याद नहीं, चौधरी की बेटी की बरात में कितनी गाड़ियाँ थीं; सबको कैसे मात किया था! हाँ, वह कदम निकालो। ले-ले-ले! नननपुर से फारबिसगंज तीन कोस! दो घंटे और!

नननपुर के हाट पर आजकल चाय भी बिकने लगी है। हिरामन अपने लोटे में चाय भरकर ले आया। कंपनी की औरत जानता है वह, सारा दिन, घड़ी घड़ी भर में चाय पीती रहती है। चाय है या जान!

हीरा हँसते-हँसते लोट-पोट हो रही है, ''अरे, तुमसे किसने कह दिया कि क्वारे आदमी को चाय नहीं पीनी चाहिए?''
हिरामन लजा गया। क्या बोले वह? लाज की बात। लेकिन वह भोग चुका है एक बार। सरकस कंपनी की मेम के हाथ की चाय पीकर उसने देख लिया है। बड़ी गर्म तासीर!
''पीजिए गुरु जी!'' हीरा हँसी!
''इस्स!''

नननपुर हाट पर ही दीया-बाती जल चुकी थी। हिरामन ने अपना सफरी लालटेन जलाकर पिछवा में लटका दिया। आजकल शहर से पाँच कोस दूर के गाँववाले भी अपने को शहरू समझने लगे हैं। बिना रोशनी की गाड़ी को पकड़कर चालान कर देते हैं। बारह बखेड़ा!

''आप मुझे गुरु जी मत कहिए।''
''तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखानेवाला भी गुरु और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!''
''इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! मैंने क्या सिखाया? मैं क्या?''

हीरा हँसकर गुनगुनाने लगी, ''हे-अ-अ-अ- सावना-भादवा के-र!''
हिरामन अचरज के मारे गूँगा हो गया। इस्स! इतना तेज जेहन! हू-ब-हू महुआ घटवारिन!

गाड़ी सीताधार की एक सूखी धारा की उतराई पर गड़गड़ाकर नीचे की ओर उतरी। हीराबाई ने हीरामन का कंधा धर लिया एक हाथ से। बहुत देर तक हिरामन के कंधे पर उसकी उँगलियाँ पड़ी रहीं। हिरामन ने नजर फिराकर कंधे पर केंद्रित करने की कोशिश की, कई बार। गाड़ी चढ़ाई पर पहुँची तो हीरा की ढीली उँगलियाँ फिर तन गई।

सामने फारबिसगंज शहर की रोशनी झिलमिला रही है। शहर से कुछ दूर हटकर मेले की रोशनी टप्पर में लटके लालटेन की रोशनी में छाया नाचती है आसपास। डबडबाई आँखों से, हर रोशनी सूरजमुखी फूल की तरह दिखाई पड़ती है।

फारबिसगंज तो हिरामन का घर-दुआर है!

न जाने कितनी बार वह फारबिसगंज आया है। मेले की लदनी लादी है। किसी औरत के साथ? हाँ, एक बार। उसकी भाभी जिस साल आई थी गौने में। इसी तरह तिरपाल से गाड़ी को चारों ओर से घेरकर बासा बनाया गया था।

हिरामन अपनी गाड़ी को तिरपाल से घेर रहा है, गाड़ीवान-पट्टी में। सुबह होते ही रीता नौटंकी कंपनी के मैनेजर से बात करके भरती हो जाएगी हीराबाई। परसों मेला खुल रहा है। इस बार मेले में पालचट्टी खूब जमी है। बस, एक रात। आज रात-भर हिरामन की गाड़ी में रहेगी वह। हिरामन की गाड़ी में नहीं, घर में!

''कहाँ की गाड़ी है? कौन, हिरामन! किस मेले से? किस चीज की लदनी है?''

गाँव-समाज के गाड़ीवान, एक-दूसरे को खोजकर, आसपास गाड़ी लगाकर बासा ड़ालते हैं। अपने गाँव के लालमोहर, धुन्नीराम और पलटदास वगैरह गाड़ीवानों के दल को देखकर हिरामन अचकचा गया। उधर पलटदास टप्पर में झाँककर भड़का। मानो बाघ पर नज़र पड़ गई। हिरामन ने इशारे से सभी को चुप किया। फिर गाड़ी की ओर कनखी मारकर फुसफुसाया- ''चुप! कंपनी की औरत है, नौटंकी कंपनी की।''
''कंपनी की,ई-ई-ई!''
'' ? ? ? ? !''

एक नहीं, अब चार हिरामन! चारों ने अचरज से एक-दूसरे को देखा। कंपनी नाम में कितना असर है! हिरामन ने लक्ष्य किया, तीनों एक साथ सटक-दम हो गए। लालमोहर ने जरा दूर हटकर बतियाने की इच्छा प्रकट की, इशारे से ही। हिरामन ने टप्पर की ओर मुँह करके कहा, ''होटिल तो नहीं खुला होगा कोई, हलवाई के यहाँ से पक्की ले आवें!''

''हिरामन, जरा इधर सुनो। म़ैं कुछ नहीं खाऊँगी अभी। लो, तुम खा आओ।''
''क्या है, पैसा? इस्स!'' पैसा देकर हिरामन ने कभी फारबिसगंज में कच्ची-पक्की नहीं खाई। उसके गाँव के इतने गाड़ीवान हैं, किस दिन के लिए? वह छू नहीं सकता पैसा। उसने हीराबाई से कहा, ''बेकार, मेला-बाजार में हुज्जत मत कीजिए। पैसा रखिए।'' मौका पाकर लालमोहर भी टप्पर के करीब आ गया। उसने सलाम करते हुए कहा, ''चार आदमी के भात में दो आदमी खुसी से खा सकते हैं। बासा पर भात चढ़ा हुआ है। हें-हें-हें ! हम लोग एकहि गाँव के हैं। गाँवो-गिरामिन के रहते होटिल और हलवाई के यहाँ खाएगा हिरामन?''
हिरामन ने लालमोहर का हाथ टीप दिया, ''बेसी भचर-भचर मत बको।''

गाड़ी से चार रस्सी दूर जाते-जाते धुन्नीराम ने अपने कुलबुलाते हुए दिल की बात खोल दी, ''इस्स! तुम भी खूब हो हिरामन! उस साल कंपनी का बाघ, इस बार कंपनी की जनानी!''

हिरामन ने दबी आवाज में कहा, ''भाई रे, यह हम लोगों के मुलुक की जनाना नहीं कि लटपट बोली सुनकर भी चुप रह जाए। एक तो पच्छिम की औरत, तिस पर कंपनी की!''
धुन्नीराम ने अपनी शंका प्रकट की, ''लेकिन कंपनी में तो सुनते हैं पतुरिया रहती है।''
''धत्!'' सभी ने एक साथ उसको दुरदुरा दिया, ''कैसा आदमी है! पतुरिया रहेगी कंपनी में भला! देखो इसकी बुद्धि। सुना है, देखा तो नहीं है कभी!''

धुन्नीराम ने अपनी गलती मान ली। पलटदास को बात सूझी, ''हिरामन भाई, जनाना जात अकेली रहेगी गाड़ी पर? कुछ भी हो, जनाना आखिर जनाना ही है। कोई जरूरत ही पड़ जाए!''

यह बात सभी को अच्छी लगी। हिरामन ने कहा, ''बात ठीक है। पलट, तुम लौट जाओ, गाड़ी के पास ही रहना। और देखो, गपशप जरा होशियारी से करना। हाँ!''

हिरामन की देह से अतर-गुलाब की खुशबू निकलती है। हिरामन करमसौड़ है। उस बार महीनों तक उसकी देह से बघाइन गंध नहीं गई। लालमोहर ने हिरामन की गमछी सूँघ ली, ''ए-ह!''

४४

हिरामन चलते-चलते रूक गया- ''क्या करें लालमोहर भाई, जरा कहो तो! बड़ी जि करती है, कहती है, नौटंकी देखना ही होगा।''
''फोकट में ही?''
''और गाँव नहीं पहुँचेगी यह बात?''

हिरामन बोला, ''नहीं जी! एक रात नौटंकी देखकर जिंदगी-भर बोली-ठोली कौन सुने? देसी मुर्गी विलायती चाल!''
धुन्नीराम ने पूछा, ''फोकट में देखने पर भी तुम्हारी भौजाई बात सुनाएगी?''

लालमोहर के बासा के बगल में, एक लकड़ी की दुकान लादकर आए हुए गाड़ीवानों का बासा है। बासा के मीर-गाड़ीवान मियाँजान बूढ़े ने सफरी गुड़गुड़ी पीते हुए पूछा, ''क्यों भाई, मीनाबाजार की लदनी लादकर कौन आया है?''

मीनाबाजार! मीनाबाजार तो पतुरिया-पट्टी को कहते हैं। क्या बोलता है यह बूढ़ा मियाँ? लालमोहर ने हिरामन के कान में फुसफुसाकर कहा, ''तुम्हारी देह मह-मह-महकती है। सच!''

लहसनवाँ लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान है। उम्र में सबसे छोटा है। पहली बार आया है तो क्या? बाबू-बबुआइनों के यहाँ बचपन से नौकरी कर चुका है। वह रह-रहकर वातावरण में कुछ सूँघता है, नाक सिकोड़कर। हिरामन ने देखा, लहसनवाँ का चेहरा तमतम गया है। कौन आ रहा है धड़धड़ाता हुआ?, ''कौन, पलटदास? क्या है?''

पलटदास आकर खड़ा हो गया चुपचाप। उसका मुँह भी तमतमाया हुआ था। हिरामन ने पूछा, ''क्या हुआ? बोलते क्यों नहीं?''
क्या जवाब दे पलटदास! हिरामन ने उसको चेतावनी दे दी थी, गपशप होशियारी से करना। वह चुपचाप गाड़ी की आसनी पर जाकर बैठ गया, हिरामन की जगह पर। हीराबाई ने पूछा, ''तुम भी हिरामन के साथ हो?'' पलटदास ने गरदन हिलाकर हामी भरी। हीराबाई फिर लेट गई। चेहरा-मोहरा और बोली-बानी देख-सुनकर, पलटदास का कलेजा काँपने लगा; न जाने क्यों। हाँ! रामलीला में सिया सुकुमारी इसी तरह थकी लेटी हुई थी। जै! सियावर रामचंद्र की जै! पलटदास के मन में जै-जैकार होने लगा। वह दास-वैस्नव है, कीर्तनिया है। थकी हुई सीता महारानी के चरण टीपने की इच्छा प्रकट की उसने, हाथ की उँगलियों के इशारे से; मानो हारमोनियम की पटरियों पर नचा रहा हो। हीराबाई तमककर बैठ गई, ''अरे, पागल है क्या? जाओ, भागो!''

पलटदास को लगा, गुस्साई हुई कंपनी की औरत की आँखों से चिनगारी निकल रही है-छटक्, छटक्! वह भागा।
पलटदास क्या जवाब दे! वह मेला से भी भागने का उपाय सोच रहा है। बोला, ''कुछ नहीं। हमको व्यापारी मिल गया। अभी ही टीसन जाकर माल लादना है। भात में तो अभी देर हैं। मैं लौट आता हूँ तब तक।''

खाते समय धुन्नीराम और लहसनवाँ ने पलटदास की टोकरी-भर निन्दा की। छोटा आदमी है। कमीना है। पैसे-पैसे का हिसाब जोड़ता है। खाने-पीने के बाद लालमोहर के दल ने अपना बासा तोड़ दिया। धुन्नी और लहसनवाँ गाड़ी जोतकर हिरामन के बासा पर चले, गाड़ी की लीक धरकर। हिरामन ने चलते-चलते रुककर, लालमोहर से कहा, ''जरा मेरे इस कंधे की सूँघो तो। सूँघकर देखो न?''

लालमोहर ने कंधा सूँघकर आँखे मूँद लीं। मुँह से अस्फुट शब्द निकला, ''ए, ह!''
हिरामन ने कहा, ''जरा-सा हाथ रखने पर इतनी खुशबू! समझे!'' लालमोहर ने हिरामन का हाथ पकड़ लिया, ''कंधे पर हाथ रखा था, सच? सुनो हिरामन, नौटंकी देखने का ऐसा मौका फिर कभी हाथ नहीं लगेगा। हाँ!''
''तुम भी देखोगे?'' लालमोहर की बत्तीसी चौराहे की रोशनी में झिलमिला उठी।
बासा पर पहुँचकर हिरामन ने देखा, टप्पर के पास खड़ा बतिया रहा है कोई, हीराबाई से। धुन्नी और लहसनवाँ ने एक ही साथ कहा, '' कहाँ रह गए पीछे? बहुत देर से खोज रही है कंपनी!''

हिरामन ने टप्पर के पास जाकर देखा- अरे, यह तो वही बक्सा ढोनेवाला नौकर, जो चंपानगर मेले में हीराबाई को गाड़ी पर बिठाकर अँधेरे में गायब हो गया था।

''आ गए हिरामन! अच्छी बात, इधर आओ। यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दच्छिना! पच्चीस-पच्चीस, पचास।''
हिरामन को लगा, किसी ने आसमान से धकेलकर धरती पर गिरा दिया। किसी ने क्यों, इस बक्सा ढोनेवाला आदमी ने। कहाँ से आ गया? उसकी जीभ पर आई हुई बात जीभ पर ही रह गई इस्स! दच्छिना! वह चुपचाप खड़ा रहा।

हीराबाई बोली, ''लो पकड़ो! और सुनो, कल सुबह रौता कंपनी में आकर मुझसे भेंट करना। पास बनवा दूँगी। ब़ोलते क्यों नहीं?''
लालमोहर ने कहा, ''इलाम-बकसीस दे रही है मालकिन, ले लो हिरामन! हिरामन ने कटकर लालमोहर की ओर देखा। ब़ोलने का जरा भी ढंग नहीं इस लालमोहरा को।

धुन्नीराम की स्वगतोक्ति सभी ने सुनी, हीराबाई ने भी, गाड़ी-बैल छोड़कर नौटंकी कैसे देख सकता है कोई गाड़ीवान, मेले में?

हिरामन ने रूपया लेते हुए कहा, ''क्या बोलेंगे!'' उसने हँसने की चेष्टा की। कंपनी की औरत कंपनी में जा रही है। हिरामन का क्या! बक्सा ढोनेवाला रास्ता दिखाता हुआ आगे बढ़ा, ''इधर से।'' हीराबाई जाते-जाते रुक गई। हिरामन के बैलों को संबोधित करके बोली, ''अच्छा, मैं चली भैयन।''

बैलों ने, भैया शब्द पर कान हिलाए।
''? ? !''

''भा-इ-यो, आज रात! दि रौता संगीत कंपनी के स्टेज पर! गुलबदन देखिए, गुलबदन! आपको यह जानकर खुशी होगी कि मथुरामोहन कंपनी की मशहूर एक्ट्रेस मिस हीरादेवी, जिसकी एक-एक अदा पर हजार जान फिदा हैं, इस बार हमारी कंपनी में आ गई हैं। याद रखिए। आज की रात। मिस हीरादेवी गुलबदन!''

नौटंकीवालों के इस एलान से मेले की हर पट्टी में सरगर्मी फैल रही है। हीराबाई? मिस हीरादेवी? लैला, गुलबदन? फिलिम एक्ट्रेस को मात करती है।

तेरी बाँकी अदा पर मैं खुद हूँ फिदा,
तेरी चाहत को दिलबर बयाँ क्या करूँ!
यही ख्वाहिश है कि इ-इ-इ तू मुझको देखा करे
और दिलोजान मैं तुमको देखा करूँ।

किर्र-र्र-र्र-र्र क़ड़ड़ड़डड़ड़ड़र्र-घन-घन-धड़ाम।
हर आदमी का दिल नगाड़ा हो गया है।
लालमोहर दौड़ता-हाँफता बासा पर आया- ''ऐ, ऐ हिरामन, यहाँ क्या बैठे हो, चलकर देखो जै-जैकार हो रहा है! मय बाजा-गाजा, छापी-फाहरम के साथ हीराबाई की जै-जैकार कर रहा हूँ।''
हिरामन हड़बड़ाकर उठा। लहसनवाँ ने कहा, ''धुन्नी काका, तुम बासा पर रहो, मैं भी देख आऊँ।''

धुन्नी की बात कौन सुनता है। तीनों जन नौटंकी कंपनी की एलानिया पार्टी के पीछे-पीछे चलने लगे। हर नुक्कड़ पर रुककर, बाजा बंद करके एलान किया जाना है। एलान के हर शब्द पर हिरामन पुलक उठता है। हीराबाई का नाम, नाम के साथ अदा-फिदा वगैरह सुनकर उसने लालमोहर की पीठ थपथपा दी, ''धन्न है, धन्न है! है या नहीं?''

लालमोहर ने कहा, ''अब बोलो! अब भी नौटंकी नहीं देखोगे?'' सुबह से ही धुन्नीराम और लालमोहर समझा रहे थे, समझाकर हार चुके थे, ''कंपनी में जा कर भेंट कर आओ। जाते-जाते पुरसिस कर गई है।'' लेकिन हिरामन की बस एक बात, ''धत्त, कौन भेंट करने जाए! कंपनी की औरत, कंपनी में गई। अब उससे क्या लेना-देना! चीन्हेगी भी नहीं!''

वह मन-ही-मन रूठा हुआ था। एलान सुनने के बाद उसने लालमोहर से कहा, ''जरूर देखना चाहिए, क्यों लालमोहर?''

दोनों आपस में सलाह करके रौता कंपनी की ओर चले। खेमे के पास पहुँचकर हिरामन ने लालमोहर को इशारा किया, पूछताछ करने का भार लालमोहर के सिर। लालमोहर कचराही बोलना जानता है। लालमोहर ने एक काले कोटवाले से कहा, ''बाबू साहेब, जरा सुनिए तो!''
काले कोटवाले ने नाक-भौं चढ़ाकर कहा- ''क्या है? इधर क्यों?''
लालमोहर की कचराही बोली गड़बड़ा गई, तेवर देखकर बोला, ''गुलगुल नहीं-नहीं बुल-बुल नहीं।''

हिरामन ने झट-से सम्हाल दिया, ''हीरादेवी किधर रहती है, बता सकते हैं?'' उस आदमी की आँखें हठात लाल हो गई। सामने खड़े नेपाली सिपाही को पुकारकर कहा, ''इन लोगों को क्यों आने दिया इधर?''

''हिरामन!'' वही फेनूगिलासी आवाज किधर से आई? खेमे के परदे को हटाकर हीराबाई ने बुलाया, यहाँ आ जाओ, अंदर! देखो, बहादुर! इसको पहचान लो। यह मेरा हिरामन है। समझे?''

नेपाली दरबान हिरामन की ओर देखकर जरा मुस्कराया और चला गया। काले कोटवाले से जाकर कहा, ''हीराबाई का आदमी है। नहीं रोकने बोला!''
लालमोहर पान ले आया नेपाली दरबान के लिए, ''खाया जाए!''

''इस्स! एक नहीं, पाँच पास। चारों अठनिया! बोली कि जब तक मेले में हो, रोज रात में आकर देखना। सबका खयाल रखती है। बोली कि तुम्हारे और साथी है, सभी के लिए पास ले जाओ। कंपनी की औरतों की बात निराली होती है! है या नहीं?''

लालमोहर ने लाल कागज के टुकड़ों को छूकर देखा, ''पा-स! वाह रे हिरामन भाई! लेकिन पाँच पास लेकर क्या होगा? पलटदास तो फिर पलटकर आया ही नहीं है अभी तक।''

हिरामन न कहा, ''जाने दो अभागे को। तकदीर में लिखा नहीं। हाँ, पहले गुरुकसम खानी होगी सभी को, कि गाँव-घर में यह बात एक पंछी भी न जान पाए।''

लालमोहर ने उत्तेजित होकर कहा, ''कौन साला बोलेगा, गाँव में जाकर? पलटा ने अगर बदनामी की तो दूसरी बार से फिर साथ नहीं लाऊँगा।''
हिरामन ने अपनी थैली आज हीराबाई के जिम्मे रख दी है। मेले का क्या ठिकाना! किस्म-किस्म के पाकिटकाट लोग हर साल आते हैं। अपने साथी-संगियों का भी क्या भरोसा! हीराबाई मान गई। हिरामन के कपड़े की काली थैली को उसने अपने चमड़े के बक्स में बंद कर दिया। बक्से के ऊपर भी कपड़े का खोल और अंदर भी झलमल रेशमी अस्तर! मन का मान-अभिमान दूर हो गया।

लालमोहर और धुन्नीराम ने मिलकर हिरामन की बुद्धि की तारीफ की; उसके भाग्य को सराहा बार-बार। उसके भाई और भाभी की निंदा की, दबी जबान से।

हिरामन के जैसा हीरा भाई मिला है, इसीलिए! कोई दूसरा भाई होता तो।''
लहसनवाँ का मुँह लटका हुआ है। एलान सुनते-सुनते न जाने कहाँ चला गया कि घड़ी-भर साँझ होने के बाद लौटा है। लालमोहर ने एक मालिकाना झिड़की दी है, गाली के साथ- ''सोहदा कहीं का!''

धुन्नीराम ने चुल्हे पर खिचड़ी चढ़ाते हुए कहा, ''पहले यह फैसला कर लो कि गाड़ी के पास कौन रहेगा!''
''रहेगा कौन, यह लहसनवाँ कहाँ जाएगा?''
लहसनवाँ रो पड़ा, ''ऐ-ए-ए मालिक, हाथ जोड़ते हैं। एक्को झलक! बस, एक झलक!
हिरामन न उदारतापूर्वक कहा, ''अच्छा-अच्छा, एक झलक क्यों, एक घंटा देखना। मैं आ जाऊँगा।''

नौटंकी शुरू होने के दो घंटे पहले ही नगाड़ा बजना शुरू हो जाता है। और नगाड़ा शुरू होते ही लोग पतिंगों की तरह टूटने लगते हैं। टिकटघर के पास भीड़ देखकर हिरामन को बड़ी हँसी आई, ''लालमोहर, उधर देख, कैसी धक्कमधुक्की कर रहे हैं लोग!''
''हिरामन भाय!''
''कौन, पलटदास! कहाँ की लदनी आए?'' लालमोहर ने पराए गाँव के आदमी की तरह पूछा।
पलटदास ने हाथ मलते हुए माफी माँगी, ''कसूरबार हैं; जो सजा दो तुम लोग, सब मंजूर है। लेकिन सच्ची बात कहें कि सिया सुकुमारी।''
हिरामन के मन का पुरइन नगाड़े के ताल पर विकसित हो चुका है। बोला, ''देखो पलटा, यह मत समझना कि गाँव-घर की जनाना है। देखो, तुम्हारे लिए भी पास दिया है; पास ले लो अपना, तमासा देखो।''
लालमोहर ने कहा, ''लेकिन एक सर्त पर पास मिलेगा। बीच-बीच में लहसनवाँ को भी।''
पलटदास को कुछ बताने की जरूरत नहीं। वह लहसनवाँ से बातचीत कर आया है अभी।
लालमोहर ने दूसरी शर्त सामने रखी, ''गाँव में अगर यह बात मालूम हुई किसी तरह!''
''राम-राम!'' दाँत से जीभ को काटते हुए कहा पलटदास ने।
पलटदास ने बताया- ''अठनिया फाटक इधर है!'' फाटक पर खड़े दरबान ने हाथ से पास लेकर उनके चेहरे को बारी-बारी से देखा, बोला, ''यह तो पास है। कहाँ से मिला?''

अब लालमोहर की कचराही बोली सुने कोई! उसके तेवर देखकर दरबान घबरा गया- ''मिलेगा कहाँ से? अपनी कंपनी से पूछ लीजिए जाकर। चार ही नहीं, देखिए एक और है।'' जेब से पाँचवा पास निकालकर दिखाया लालमोहर ने।

एक रुपयावाले फाटक पर नेपाली दरबान खड़ा था। हिरामन ने पुकारकर कहा, ''ए सिपाही दाजू, सुबह को ही पहचनवा दिया और अभी भूल गए?''
नेपाली दरबान बोला, ''हीराबाई का आदमी है सब। जाने दो। पास हैं तो फिर काहे को रोकता है?''
अठनिया दर्जा!

तीनों ने 'कपड़घर' को अंदर से पहली बार देखा। सामने कुरसी-बेंचवाले दर्जे हैं। परदे पर राम-बन-गमन की तसवीर है। पलटदास पहचान गया। उसने हाथ जोड़कर नमस्कार किया, परदे पर अंकित रामसिया सुकुमारी और लखनलला को। ''जै हो, जै हो!'' पलटदास की आँखें भर आई।

५५

हिरामन ने कहा, ''लालमोहर, छापी सभी खड़े हैं या चल रहे हैं?''
लालमोहर अपने बगल में बैठे दर्शकों से जान-पहचान कर चुका है। उसने कहा, ''खेला अभी परदा के भीतर है। अभी जमिनका दे रहा है, लोग जमाने के लिए।''

पलटदास ढोलक बजाना जानता है, इसलिए नगाड़े के ताल पर गरदन हिलाता है और दियासलाई पर ताल काटता है। बीड़ी आदान-प्रदान करके हिरामन ने भी एकाध जान-पहचान कर ली। लालमोहर के परिचित आदमी ने चादर से देह ढकते हुए कहा, ''नाच शुरू होने में अभी देर है, तब तक एक नींद ले लें। सब दर्जा से अच्छा अठनिया दर्जा। सबसे पीछे सबसे ऊँची जगह पर है। जमीन पर गरम पुआल! हे-हे! कुरसी-बेंच पर बैठकर इस सरदी के मौसम में तमासा देखनेवाले अभी घुच-घुचकर उठेंगे चाह पीने।''

उस आदमी ने अपने संगी से कहा, ''खेला शुरू होने पर जगा देना। नहीं-नहीं, खेला शुरू होने पर नहीं, हिरिया जब स्टेज पर उतरे, हमको जगा देना।''

हिरामन के कलेजे में जरा आँच लगी। हिरिया! बड़ा लटपटिया आदमी मालूम पड़ता है। उसने लालमोहर को आँख के इशारे से कहा, ''इस आदमी से बतियाने की जरूरत नहीं।''

घन-घन-घन-धड़ाम! परदा उठ गया। हे-ए, हे-ए, हीराबाई शुरू में ही उतर गई स्टेज पर! कपड़घर खचमखच भर गया है। हिरामन का मुँह अचरज में खुल गया। लालमोहर को न जाने क्यों ऐसी हँसी आ रही है। हीराबाई के गीत के हर पद पर वह हँसता है, बेवजह।

गुलबदन दरबार लगाकर बैठी है। एलान कर रही है; जो आदमी तख्तहजारा बनाकर ला देगा, मुँहमाँगी चीज इनाम में दी जाएगी। अजी, है कोई ऐसा फनकार, तो हो जाए तैयार, बनाकर लाए तख्तहजारा-आ! किड़किड़-किर्रि-! अलबत्त नाचती है! क्या गला है! मालूम है, यह आदमी कहता है कि हीराबाई पान-बीड़ी, सिगरेट-जर्दा कुछ नहीं खाती! ठीक कहती है। बड़ी नेमवाली रंडी है। कौन कहता है कि रंडी है! दाँत में मिस्सी कहाँ है। पौडर से दाँत धो लेती होगी। हरगिज नहीं। कौन आदमी है, बात की बेबात करता है! कंपनी की औरत को पतुरिया कहता है! तुमको बात क्यों लगी? कौन है रंडी का भड़वा? मारो साले को! मारो! तेरी।

हो-हल्ले के बीच, हिरामन की आवाज कपड़घर को फाड रही है- ''आओ, एक-एक की गरदन उतार लेंगे।''
लालमोहर दुलाली से पटापट पीटता जा रहा है सामने के लोगों को। पलटदास एक आदमी की छाती पर सवार है, ''साला, सिया सुकुमारी को गाली देता है, सो भी मुसलमान होकर?''

धुन्नीराम शुरू से ही चुप था। मारपीट शुरू होते ही वह कपड़घर से निकलकर बाहर भागा।

काले कोटवाले नौटंकी के मैनेजर नेपाली सिपाही के साथ दौड़े आए। दारोगा साहब ने हंटर से पीट-पीट शुरू की। हंटर खाकर लालमोहर तिलमिला उठा; कचराही बोली में भाषण देने लगा, ''दारोगा साहब, मारते हैं, मारिए। कोई हर्ज नहीं। लेकिन यह पास देख लीजिए, एक पास पाकिट में भी हैं। देख सकते हैं हुजूर। टिकट नहीं, पास!'' तब हम लोगों के सामने कंपनी की औरत को कोई बुरी बात करे तो कैसे छोड़ देंगे?''

कंपनी के मैनेजर की समझ में आ गई सारी बात। उसने दारोगा को समझाया, ''हुजूर, मैं समझ गया। यह सारी बदमाशी मथुरामोहन कंपनीवालों की है। तमाशे में झगड़ा खड़ा करके कंपनी को बदनाम नहीं हुजूर, इन लोगों को छोड़ दीजिए, हीराबाई के आदमी है। बेचारी की जान खतरे में हैं। हुजूर से कहा था न!''

हीराबाई का नाम सुनते ही दारोगा ने तीनों को छोड़ दिया। लेकिन तीनों की दुआली छीन ली गई। मैनेजर ने तीनों को एक रुपएवाले दरजे में कुरसी पर बिठाया,
''आप लोग यहीं बैठिए। पान भिजवा देता हूँ।'' कपड़घर शांत हुआ और हीराबाई स्टेज पर लौट आई।

नगाड़ा फिर घनघना उठा।
थोड़ी देर बाद तीनों को एक ही साथ धुन्नीराम का खयाल हुआ, अरे, धुन्नीराम कहाँ गया?
''मालिक, ओ मालिक!'' लहसनवाँ कपड़घर से बाहर चिल्लाकर पुकार रहा है, ''ओ लालमोहर मा-लि-क!''

लालमोहर ने तारस्वर में जवाब दिया-''इधर से, उधर से! एकटकिया फाटक से।'' सभी दर्शकों ने लालमोहर की ओर मुड़कर देखा। लहसनवाँ को नेपाली सिपाही लालमोहर के पास ले आया। लालमोहर ने जेब से पास निकालकर दिखा दिया। लहसनवाँ ने आते ही पूछा, ''मालिक, कौन आदमी क्या बोल रहा था? बोलिए तो जरा। चेहरा दिखला दीजिए, उसकी एक झलक!''

लोगों ने लहसनवाँ की चौड़ी और सपाट छाती देखी। जाड़े के मौसम में भी खाली देह! चेले-चाटी के साथ हैं ये लोग!
लालमोहर ने लहसनवाँ को शांत किया।

तीनों-चारों से मत पूछे कोई, नौटंकी में क्या देखा। किस्सा कैसे याद रहे! हिरामन को लगता था, हीराबाई शुरू से ही उसीकी ओर टकटकी लगाकर देख रही है, गा रही है, नाच रही है। लालमोहर को लगता था, हीराबाई उसी की ओर देखती है। वह समझ गई है, हिरामन से भी ज्यादा पावरवाला आदमी है लालमोहर! पलटदास किस्सा समझता है। किस्सा और क्या होगा, रमैन की ही बात। वही राम, वही सीता, वही लखनलाल और वही रावन! सिया सुकुमारी को राम जी से छीनने के लिए रावन की तरह-तरह का रूप धरकर आता है। राम और सीता भी रूप बदल लेते हैं। यहाँ भी तख्त-हजारा बनानेवाला माली का बेटा राम है।

गुलबदन मिया सुकुमारी है। माली के लड़के का दोस्त लखनलला है और सुलतान है रावन। धुन्नीराम को बुखार है तेज! लहसनवाँ को सबसे अच्छा जोकर का पार्ट लगा है चिरैया तोंहके लेके ना जइवै नरहट के बजरिया! वह उस जोकर से दोस्ती लगाना चाहता है। नहीं लगावेगा दोस्ती, जोकर साहब?

हिरामन को एक गीत की आधी कड़ी हाथ लगी है, ''मारे गए गुलफाम!'' कौन था यह गुलफाम? हीराबाई रोती हुई गा रही थी- ''अजी हाँ, मरे गए गुलफाम!''
टिड़िड़िड़ि बेचारा गुलफाम!

तीनों को दुआली वापस देते हुए पुलिस के सिपाही ने कहा, ''लाठी-दुआली लेकर नाच देखने आते हो?''

दूसरे दिन मेले-भर में यह बात फैल गई, मथुरामोहन कंपनी से भागकर आई है हीराबाई, इसलिए इस बार मथुरामोहन कंपनी नहीं आई हैं। उसके गुंडे आए हैं। हीराबाई भी कम नहीं। बड़ी खेलाड़ औरत है। तेरह-तेरह देहाती लठैत पाल रही है। 'वाह मेरी जान' भी कहे तो कोई! मजाल है!

दस दिन दिन-रात!

दिन-भर भाड़ा ढोता हिरामन। शाम होते ही नौटंकी का नगाड़ा बजने लगता। नगाड़े की आवाज सुनते ही हीराबाई की पुकार कानों क पास मँडराने लगती, भैया... मीता हिरामन उस्ताद गुरु जी! हमेशा कोई-न-कोई बाजा उसके मन के कोने में बजता रहता, दिन-भर। कभी हारमोनियम, कभी नगाड़ा, कभी ढोलक और कभी हीराबाई की पैजनी। उन्हीं साजों की गत पर हिरामन उठता-बैठता, चलता-फिरता। नौटंकी कंपनी के मैनेजर से लेकर परदा खींचनेवाले तक उसको पहचानते हैं। हीराबाई का आदमी है।

पलटदास हर रात नौटंकी शुरू होने के समय श्रद्धापूर्वक स्टेज को नमस्कार करता, हाथ जोड़कर। लालमोहर, एक दिन अपनी कचराही बोली सुनाने गया था हीराबाई को। हीराबाई ने पहचाना ही नहीं। तब से उसका दिल छोटा हो गया है। उसका नौकर लहसनवाँ उसके हाथ से निकल गया है, नौटंकी कंपनी में भर्ती हो गया है। जोकर से उसकी दोस्ती हो गई है। दिन-भर पानी भरता है, कपड़े धोता है। कहता है, गाँव में क्या है जो जाएँगे! लालमोहर उदास रहता है। धुन्नीराम घर चला गया है, बीमार होकर।

हिरामन आज सुबह से तीन बार लदनी लादकर स्टेशन आ चुका है। आज न जाने क्यों उसको अपनी भौजाई की याद आ रही है। धुन्नीराम ने कुछ कह तो नहीं दिया है, बुखार की झोंक में! यहीं कितना अटर-पटर बक रहा था, गुलबदन, तख्त-हजारा! लहसनवाँ मौज में है। दिन-भर हीराबाई को देखता होगा। कल कह रहा था, हिरामन मालिक, तुम्हारे अकवाल से खूब मौज में हूँ। हीराबाई की साड़ी धोने के बाद कठौते का पानी अत्तरगुलाब हो जाता है। उसमें अपनी गमछी डुबाकर छोड़ देता हूँ। लो, सूँघोगे? हर रात, किसी-न-किसी के मुँह से सुनता है वह, हीराबाई रंडी है। कितने लोगों से लड़े वह! बिना देखे ही लोग कैसे कोई बात बोलते हैं! राजा को भी लोग पीठ-पीछे गाली देते हैं! आज वह हीराबाई से मिलकर कहेगा, नौटंकी कंपनी में रहने से बहुत बदनाम करते हैं लोग। सरकस कंपनी में क्यों नही काम करती? सबके सामने नाचती है, हिरामन का कलेजा दप-दप जलता रहता है उस समय।

सरकस कंपनी में बाघ को उसके पास जाने की हिम्मत कौन करेगा! सुरक्षित रहेगी हीराबाई! किधर की गाड़ी आ रही है?
''हिरामन, ए हिरामन भाय!'' लालमोहर की बोली सुनकर हिरामन ने गरदन मोड़कर देखा। क्या लादकर लाया है लालमोहर?
''तुमको ढूँढ़ रही है हीराबाई, इस्टिमन पर। जा रही है।'' एक ही साँस में सुना गया। लालमोहर की गाड़ी पर ही आई है मेले से।
''जा रही है? कहाँ? हीराबाई रेलगाड़ी से जा रही है?''
हिरामन ने गाड़ी खोल दी। मालगुदाम के चौकीदार से कहा, ''भैया, जरा गाड़ी-बैल देखते रहिए। आ रहे हैं।''
''उस्ताद!'' जनाना मुसाफिरखाने के फाटक के पास हीराबाई ओढ़नी से मुँह-हाथ ढ़ककर खड़ी थी। थैली बढ़ाती हुई बोली, ''लो! हे भगवान! भेंट हो गई, चलो, मैं तो उम्मीद खो चुकी थी। तुमसे अब भेंट नहीं हो सकेगी। मैं जा रही हूँ गुरु जी!''

बक्सा ढोनेवाला आदमी आज कोट-पतलून पहनकर बाबूसाहब बन गया है। मालिकों की तरह कुलियों को हुकम दे रहा है, ''जनाना दर्जा में चढ़ाना। अच्छा?''

हिरामन हाथ में थैली लेकर चुपचाप खड़ा रहा। कुरते के अंदर से थैली निकालकर दी है हीराबाई ने। चिड़िया की देह की तरह गर्म है थैली।
''गाड़ी आ रही है।'' बक्सा ढोनेवाले ने मुँह बनाते हुए हीराबाई की ओर देखा। उसके चेहरे का भाव स्पष्ट है- इतना ज्यादा क्या है?
हीराबाई चंचल हो गई। बोली, ''हिरामन, इधर आओ, अंदर। मैं फिर लौटकर जा रही हूँ मथुरामोहन कंपनी में। अपने देश की कंपनी है। वनैली मेला आओगे न?''

हीराबाई ने हिरामन के कंधे पर हाथ रखा, इस बार दाहिने कंधे पर। फिर अपनी थैली से रूपया निकालते हुए बोली, ''एक गरम चादर खरीद लेना।''
हिरामन की बोली फूटी, इतनी देर के बाद, ''इस्स! हरदम रूपैया-पैसा! रखिए रूपैया! क्या करेंगे चादर?''
हीराबाई का हाथ रुक गया। उसने हिरामन के चेहरे को गौर से देखा। फिर बोली, ''तुम्हारा जी बहुत छोटा हो गया है। क्यों मीता? महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद जो लिया है गुरु जी!''

गला भर आया हीराबाई का। बक्सा ढोनेवाले ने बाहर से आवाज दी, ''गाड़ी आ गई।'' हिरामन कमरे से बाहर निकल आया। बक्सा ढोनेवाले ने नौटंकी के जोकर-जैसा मुँह बनाकर कहा, ''लाटफारम' से बाहर भागो। बिना टिकट के पकड़ेगा तो तीन महीने की हवा।''
हिरामन चुपचाप फाटक से बाहर जाकर खड़ा हो गया। टीसन की बात, रेलवे का राज! नहीं तो इस बक्सा ढोनेवाले का मुँह सीधा कर देता हिरामन।

हीराबाई ठीक सामनेवाली कोठरी में चढ़ी। इस्स! इतना टान! गाड़ी में बैठकर भी हिरामन की ओर देख रही है, टुकुर-टुकुर। लालमोहर को देखकर जी जल उठता है, हमेशा पीछे-पीछे; हरदम हिस्सादारी सूझती है।
गाड़ी ने सीटी दी। हिरामन को लगा, उसके अंदर से कोई आवाज निकलकर सीटी के साथ ऊपर की ओर चली गई, कू-ऊ-ऊ! इ-स्स!

-छी-ई-ई-छक्क! गाड़ी हिली। हिरामन ने अपने दाहिने पैर के अँगूठे को बाएँ पैर की एड़ी से कुचल लिया। कलेजे की धड़कन ठीक हो गई। हीराबाई हाथ की बैंगनी साफी से चेहरा पोंछती है। साफी हिलाकर इशारा करती है अब जाओ। आखिरी डिब्बा गुजरा; प्लेटफार्म खाली स़ब खाली खोखले मालगाड़ी के डिब्बे! दुनिया ही खाली हो गई मानो! हिरामन अपनी गाड़ी के पास लौट आया।

हिरामन ने लालमोहर से पूछा, ''तुम कब तक लौट रहे हो गाँव?''
लालमोहर बोला, ''अभी गाँव जाकर क्या करेंगे? यहाँ तो भाड़ा कमाने का मौका है! हीराबाई चली गई, मेला अब टूटेगा।''
- ''अच्छी बात। कोई समान देना है घर?''

लालमोहर ने हिरामन को समझाने की कोशिश की। लेकिन हिरामन ने अपनी गाड़ी गाँव की ओर जानेवाली सड़क की ओर मोड़ दी। अब मेले में क्या धरा है! खोखला मेला!

रेलवे लाइन की बगल से बैलगाड़ी की कच्ची सड़क गई है दूर तक। हिरामन कभी रेल पर नहीं चढ़ा है। उसके मन में फिर पुरानी लालसा झाँकी, रेलगाड़ी पर सवार होकर, गीत गाते हुए जगरनाथ-धाम जाने की लालसा। उलटकर अपने खाली टप्पर की ओर देखने की हिम्मत नहीं होती है। पीठ में आज भी गुदगुदी लगती है। आज भी रह-रहकर चंपा का फूल खिल उठता है, उसकी गाड़ी में। एक गीत की टूटी कड़ी पर नगाड़े का ताल कट जाता है, बार-बार!

उसने उलटकर देखा, बोरे भी नहीं, बाँस भी नहीं, बाघ भी नहीं, परी देवी मीता हीरादेवी महुआ घटवारिन, को-ई नहीं। मरे हुए मुहूर्तो की गूँगी आवाजें मुखर होना चाहती है। हिरामन के होंठ हिल रहे हैं। शायद वह तीसरी कसम खा रहा है, कंपनी की औरत की लदनी।

हिरामन ने हठात अपने दोनों बैलों को झिड़की दी, दुआली से मारे हुए बोला, ''रेलवे लाइन की ओर उलट-उलटकर क्या देखते हो?'' दोनों बैलों ने कदम खोलकर चाल पकड़ी। हिरामन गुनगुनाने लगा- ''अजी हाँ, मारे गए गुलफाम!''

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अगस्त २००१

 
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