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आज से एक साल पहले, एक शुभ दिन, अभिव्यक्ति ने
जन्म लिया। निकल पड़े थे, खुशी हासिल करने। सोचा
था, खुशी फैलायेंगे, अपनी खुशी खुद मिल जायेगी।
रास्ता कठिन था, मुश्किले हज़ार थी, मंज़िल धुंधली
सी थी। दोस्त ने दोस्त का हाथ थामा, चल पड़े,
कारवां बढ़ता गया। दिन बह गये पानी के रेले की तरह,
बिखरती गयी खुशी हर ओर, और अभिव्यक्ति हो गई एक
साल की।
सहारा लिया था साहित्य का, कला का, दार्शनिकता का।
निकल पड़े थे भूले बिसरे साहित्य को जीवंत करने,
नये साहित्य को जन्म देने, इन्सान के दिल की
गहराईयों को अभिव्यक्त करने, इन्सान को इन्सान के
करीब लाने, और राहे–जिन्दगी में हमसफर बनाने।
आज दिल खुशी से भरा–भरा है।
अभिव्यक्ति की सफलता अभिजनों से हैं।
हमारा हार्दिक आभार, कृतज्ञ है हम हर अभिजन के, जो
हमसफर बने हैं और जो बननेवाले हैं।
आशा है ये कारवां बढ़ता रहे
खुशी के पैमाने छलकते रहें...
जन्मदिन मुबारक! अभिव्यक्ति!! तुम जियो हज़ारो
साल!!!
—अश्विन गांधी
१५ अगस्त २००१ |