चित्रलेख

  १२  

सूरज ने
गृहण किया आसन
तेजस्वी किरणे देने लगीं
धरती को जीवन
हर गहरे बादल को
मिल गयी रूपहली रेखा
चेतना का जीवनदायी स्रोत
बह निकला
निद्रा का हुआ अंत
जाग्रत हुआ जगत
दिशाआें को मिला विस्तार
और दुनिया को
नया दिन!

 

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