चित्रलेख
दिन की अगवानी में
अंधेरे में डूबी थी धरती दूर तक कुछ भी नज़र नहीं आता था तिमिर में खो गए थे घर पहाड़ियां सोई थीं काली चादर ताने परिन्दे अभी तक जागे नहीं थे छाया था हर ओर सन्नाटा दिन की अगवानी को निकली ही थी बादलों की चुस्त टोली, कि तभी दूर से झलकी सुबह की पहली किरन
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