चित्रलेख

    

नीलाभ हो उठा गगन
अंतरिक्ष पर
ठहर गया रंगों का कारवा
बादलों के समंदर में
तिरने लगी दिवस की नाव
लहरों को मिलने लगे अनमोल आकार
अनजानी आकृतियों में
ढलने लगा आकाश
धरती की पलकें मुंदी थीं अभी भी
पर आकाश में बिखर रहा था
रंगों का सैलाब
सजने लगी थी
प्रकाश की तोरण

 

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।