चित्रलेख

  ११  

और दिन
चल पड़ा अपनी यात्रा पर
खुले आसमान में
सुख का प्रकाश भरता
पहाड़ियों में बिखेरता
सुबह का अहसास
पेड़ों की फुनगियों को
हवा से दुलराता
घर छतों में
भरता जागृति का विश्वास
आमंत्रित करता
सपनों का सच

 

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